कई सदियों बाद एक ऐसा सपना साकार होने जा रहा है जिसके लिए लाखों लोगों ने अपनी जिंदगियां खपा दीं और लाखों लोगों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया सिर्फ ये दिन देखने के लिए कि अयोध्या में एक न एक दिन भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा। आज की पीढ़ी बहुत ही सौभाग्यशाली है जिसे श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। आज की पीढ़ी गर्व से कह सकती है कि हमने भव्य राम मंदिर की एक-एक ईंट को लगते देखा है। सबसे ज्यादा सौभाग्य की बात है कि आज की पीढ़ी कह सकती है कि हमने अपने आराध्य राम को टेंट के मंदिर से भव्य राम मंदिर में विराजमान होते देखा है। ये दिन देखने के लिये ना जाने कितनी पीढ़ियों ने संघर्ष किया होगा और न जाने कितने रामभक्तों ने अपना लहू बहाया होगा। आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे वनवास पूरा करके मर्यादा पुरुषोतम प्रभु श्रीराम अपने घर को लौट रहे हैं। 05 अगस्त 2020 को प्रस्तावित श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण भूमि पूजन में कोरोना महामारी के चलते सिर्फ कुछ ही प्रमुख लोग शामिल होंगे। इस भूमि पूजन कार्यक्रम में आम जनमानस की उपस्थिति कोरोना महामारी के चलते निषेध है। बेशक लोग इस महत्वपूर्ण और गर्व से भरे हुये पल के साक्षी न बन पायें लेकिन राम अनादि से अनन्त तक हैं और समस्त विश्व के राम भक्त राम में ही समाये हुए हैं इसलिए वो जहां भी होंगे इस कार्यक्रम में भागीदार हो जायेंगे। राम भक्तों के लिये भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होने से ज्यादा भव्य राम मंदिर बनने की अनुभूति और प्रसन्नता है। क्योंकि भव्य राम मंदिर का निर्माण ही हमें सैंकड़ों वर्षों की दासता के दंश से मुक्त करेगा।
भगवान श्री राम चन्द्र जी समस्त सनातन धर्म के आदर्श पुरुष और इष्टदेवता हैं। भगवान राम को सनातन धर्म में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। कई सदियों से बड़े दुख और शर्म की बात रही कि जिन भगवान राम का उनके जन्मस्थान अयोध्या में भव्य राम मंदिर होना चाहिए था, वहां पर उन्हें कई सदियों तक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ी। अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है, जो कि सैंकड़ों वर्ष पुराना विवाद है। इस विवाद का मूल मुद्दा हिंदू इष्टदेवता भगवान् श्रीराम चंद्र जी की जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है। इसके अलावा विवाद का कारण यह भी रहा कि उस स्थान पर हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया। इस विवाद के मूल में जाया जाये तो इसकी शुरुआत मुगलकाल से होती है।
इस विवाद में सबसे अहम भूमिका विदेशी आक्रमणकारी जहिर उद-दिन मुहम्मद बाबर की रही है जोकि भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। बाबर के मुगल सेनापति मीरबाकी द्वारा ही सन् 1528 में बाबर के कहने पर राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। जिसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इसी को लेकर पिछले सैंकड़ों वर्षों से राम जन्म भूमि विवाद का कारण रही है। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस स्थल को लेकर पहली बार 1853 में विवाद हुआ। इस विवाद को देखते हुए अंग्रेजों ने सन् 1859 में नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा और अंदर वाले हिस्से में अंग्रेजी हुकूमत ने लोहे से घेराबंदी लगाते हुए हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया था। यहीं से अंग्रेजों द्वारा इस मामले को और उलझा दिया गया। इस बात से हिंदुओं की आस्था और भावनाएं आहत हुईं। यहीं से ये मामला उलझता गया और इस स्थल को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद की खाई चौड़ी होती गयी। सन् 1949 में अंदर वाले हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। हिंदुओं और मुसलामानों के बीच तनाव और विवाद को बढ़ता देख तत्कालीन नेहरू सरकार ने इसके गेट में ताला लगवा दिया। सन् 1986 में फैजाबाद जिला जज ने उक्त स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। इसके बाद सदियों से अपने इष्टदेवता श्रीराम चंद्र जी के जन्म स्थान पर लगे प्रश्नचिन्ह से आहत और आक्रोशित हिन्दू समाज के लाखों की तादात में कारसेवकों ने पुलिस प्रतिरोध के वावजूद 06 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया। और उस स्थान पर भगवान श्री राम की मूर्ति की स्थापना कर दी। इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार ने 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरातत्व विशेषज्ञों की एक टीम भेजकर उस स्थान का उत्खनन कराया गया, जिससे कि मंदिर या मस्जिद होने का प्रमाण मिल सके। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में विवादित बाबरी मस्जिद के नीचे 10वीं शताब्दी के मंदिर की उपस्थिति का संकेत दिया। लेकिन मुस्लिम समूहों ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।
विवादित मामले को लेकर उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा 30 सितंबर 2010 को विशेष पीठ के तीन जजों जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने बहुमत से निर्णय दिया और विवादित स्थल को तीन भागों में बाँट दिया। फैसले में कहा गया कि विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां से रामलला की मूर्तियों को न हटाने का आदेश दिया। जिसमें से एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर के लिए रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले हिंदुओं को देने का फैसला सुनाया गया और एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को देने का फैसला सुनाया और साथ ही एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया। इस फैसले में बेशक विभिन्न पक्षों के दावों को लेकर विवादित स्थल वाली 2.7 एकड़ भूमि को तीन भागों में बांटा गया हो, लेकिन अदालत द्वारा एक महत्वपूर्ण पुष्टि जो अपने निर्णय में की गयी वह भगवान श्रीराम चंद्र जी के जन्म स्थान को लेकर की गयी, जिसमें कहा गया कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है और सबसे बड़ी बात निर्णय में कहा गया कि मुगल बादशाह बाबर द्वारा बनवाई गई विवादित मस्जिद इस्लामी कानून के खिलाफ थी और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं थी। यह फैसला सदियों से आहत हिंदुओं के लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन था। अदालत ने बेशक इस फैसले में उस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण का आदेश न दिया हो लेकिन इस फैसले से सदियों से आहत हिंदुओं की भावनाओं और उनके लंबे संघर्ष को सम्मान मिला। लेकिन कुछ पक्षकारों ने इस फैसले को नहीं माना और यह मामला उच्चतम न्यायालय में चला गया। इसी कड़ी में 09 नवंबर 2020 को उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक है।
अयोध्या में विवादित जमीन पर रामलला का हक बताते हुए कोर्ट के 5 जजों की विशेष बेंच (चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर) ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर मन्दिर निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया। 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें सदियों पुराने विवाद का खात्मा हो गया और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त हो गया। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी जगह मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जगह दी जाए। उच्चतम न्यायलय का यह फैसला अत्यन्त ऐतिहासिक फैसला था। सभी देशवासिओं ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का शान्ति और सौहाद्रपूर्ण तरीके से स्वागत किया। हिन्दुओं के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के निर्णय की मुस्लिम समुदाय ने भी सराहना की। यह फैसला किसी भी पक्ष की हार-जीत नहीं थी क्योंकि जहाँ राम नाम होता है वहां सबकी जीत ही होती है, इसलिए उच्चतम न्यायालय का राम मन्दिर के पक्ष में यह फैसला हिन्दुस्तान के प्रत्येक व्यक्ति की जीत है।
कई दशकों से हमारे आराध्य भगवान् श्रीराम टेंट में विराजमान थे, उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद से ही जनमानस में प्रसन्नता का माहौल है। उच्चतम न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले बाद केंद्र सरकार द्वारा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया गया। राम जन्मभूमि न्यास परिषद के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास को ट्रस्ट का अध्यक्ष और विश्व हिंदू परिषद के चंपत राय को महासचिव बनाया गया। अब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर ही राम मन्दिर निर्माण का पूरा दायित्व है। इसी कड़ी में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 05 अगस्त 2020 को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का भूमिपूजन का कार्यक्रम रखा है। 05 अगस्त 2020 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कर कमलों द्वारा श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का भूमिपूजन और कार्यारम्भ करेंगे। इसी दिन से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण की शुरुआत हो जायेगी। जिन-जिन लोगों ने राम मंदिर आंदोलन में अपने प्राण न्योछावर कर दिए, ऐसे हजारों रामभक्तों की आत्मा आज स्वर्ग में अपने आप को गौरवान्वित और प्रसन्न महसूस कर रही होगी। ऐसे रामभक्तों के बलिदानों की बदौलत ही हमें यह सुखद दिन देखने को मिल रहा है। राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख चेहरों के योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता है क्योंकि इन लोगों ने ही राम मंदिर आंदोलन की दिशा और दशा तय की। यह देश रामलला का है, रामलला इस देश के कण-कण में विराजमान हैं। हमें अपने आप को धन्य महसूस करना चाहिये कि हमने राम और कृष्ण के देश में जन्म लिया है।
अब समय आ गया है कि हम सब भारतवासी सभी विवादों और कटुता को पीछे छोड़ दें। सद्भाव और शांति को गले लगाएं। इसी दिशा में देश के समस्त वर्गों को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण को उत्सव की तरह मनाना चाहिये और सम्पूर्ण विश्व में देश की एकता और अखण्डता का सन्देश देना चाहिये। भगवान श्रीराम चंद्र जी के जीवन से सभी को भक्तिभाव के पथ पर चलने की सीख लेनी चाहिए और मर्यादा का पाठ सीखना चाहिए। भगवान श्रीराम चंद्र जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया, इसीलिए भगवान विष्णु ने सातवें अवतार के रूप में अयोध्या में जन्म लिया और दुष्ट रावण का वध कर उसके पापों से लोगों को मुक्ति दिलाई। भगवान राम के जीवन से हमें एक बेदाग और मर्यादा पूर्ण जीवन जीने की सीख मिलती है। भगवान राम का उदाहरण लोगों को उनके नक्शेकदम पर चलने और हमें अपने विचारों, शब्दों एवं कर्म में उत्कृष्टता पाने के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करता है। भगवान श्रीराम चंद्र जी का जीवन सभी लोगों को हमेशा से उत्तम उच्च आदर्शों और उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता रहा है।
- - रीता पांडेय स्नेहा