नई दिल्ली- मैं मानती हूं कि अयोध्या स्थित भगवान श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का पूरा इतिहास शब्दों में समेटना किसी के लिए संभव नहीं है। क्योंकि, इसके ऐतिहासिक और कानूनी महत्त्व को तो फिर भी काफी हद तक समेटा जा सकता है, लेकिन इसके असीमित धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं और उनसे जुड़े तथ्यों को शब्दों में सहेजना असंभव है। फिर भी यहां पर हमने इस पवित्र मंदिर के बारे में उसके हर पहलुओं को कुछ गिनती के शब्दों में समेटने की कोशिश की है, जिसकी शुरुआत धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं से की जा रही है।
पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के आधार पर तय हुई परंपरागत धारणाओं के अनुसार अयोध्या के पवित्र श्री रामजन्मभूमि मंदिर के इतिहास का विवरण कुछ इस प्रकार है। जब भगवान श्रीराम प्रजा सहित बैकुंठ धाम चले गए तो पूरी अयोध्या नगरी (मंदिर-राज महल-घर-द्वार) सरयू में समाहित हो गई। मात्र अयोध्या का भू-भाग ही बच गया और वर्षों तक यह भूमि यूं ही पड़ी रही। बाद में कौशांबी के महाराज कुश ने अयोध्या को फिर से बसाया। इसका वर्णन कालिदास के ग्रंथ 'रघुवंश' में मिलने की बात कही जाती है। लोमश रामायण के अनुसार उन्होंने ही सर्वप्रथम पत्थरों के खंभों वाले मंदिर का अपने परम पिता की पूज्य जन्मभूमि पर निर्माण करवाया। वहीं जैन परंपराओं के मुताबिक अयोध्या को ऋषभदेव ने फिर से बसाया था।
भविष्य पुराण के अनुसार उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व में एक बार फिर से (दूसरी बार) उजड़ चुकी अयोध्या का निर्माण करवाया। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के लक्ष्मण घाट को आधार बनाकर 360 मंदिरों का निर्माण करवाया था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और इसीलिए उन्होंने ही श्रीराम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। हिंदू पक्ष का दावा रहा है कि बाबर से पहले भी 1033 में मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद ने जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। उसके बाद गहड़वाल वंश के राजाओं द्वारा इस पवित्र मंदिर का फिर से निर्माण (तीसरी बार) करवाया गया था।
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर विवाद की कहानी की 1528 से शुरू हुई। हिंदुओं का दावा रहा है कि मुगल आक्रमणकारी बाबर ने उस पवित्र जगह को तोड़कर उसपर मस्जिद का निर्माण करवा दिया। अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर अपना ऐतिहासिक फैसला देते समय सुप्रीम कोर्ट ने उन सिख ग्रंथों को भी अहम सबूत माना है, जिसके मुताबिक सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी आक्रमणकारी बाबर के भारत आने से पहले ही भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे थे। गुरु नानक देव जी 1510 से 1511 के बीच अयोध्या आए थे, जबकि बाबरी मस्जिद 1528 में बनाई गई थी।इतिहासकारों के अनुसार वहां पर बाबर के कहने पर उसके एक सूबेदार ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।
1859 में राम चबूतरे पर फिर से पूजा की मिली इजाजत
1859 में राम चबूतरे पर फिर से पूजा की मिली इजाजत
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को लेकर जन्मभूमि के आसपास के इलाके में पहली बार 1853 में दंगों का जिक्र मिलता है। 1859 में अंग्रेजों ने इस विवाद को रोकने लिए मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं का राम चबूतरे पर पूजा-अर्चना की इजाजत दी। 1885 में पहली बार महंत रघबीर दास बाबरी मस्जिद के पास मंदिर निर्माण को लेकर फैजाबाद कोर्ट में एक याचिका लगाई, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया।
23 दिसंबर, 1949 को राम जन्मभूमि मंदिर के इतिहास में एक बार से जबर्दस्त मोड़ आ गया। उस दिन रामलला की प्रतिमा मस्जिद के अंदर अचानक से विराजमान पाई गई। यह विवाद इतना बढ़ा कि आखिरकार तत्कालीन सरकार उस ढांचे को विवादित मानकर उसपर ताला लगवा देना पड़ा। ढांचे के अंदर नमाज रुक गई, लेकिन बाहर राम चबूतरे और परिसर के बाकी हिस्सों में पूजा-अर्चना निरंतर चलती रही।
1950 से तात्कालिक विवादित परिसर को लेकर कानूनी जंग शुरू हुई। गोपाल विशारद और रामचंद्र दास ने ढांचे के अंदर रामलला की पूजा की इजाजत और उनकी प्रतिमा वहीं रहने देने की अनुमति के लिए फिरोजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने भी तीसरी अर्जी लगा दी। इसके जवाब में 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह पर कब्जा लेने और ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटाने की अर्जी लगाई। 25 साल बाद 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी, 1986 के ऐतिहासिक फैसले में विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया और हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति भी दे दी।
अगस्त 1989 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैजाबाद जिला अदालत से टाइटल सूट अपने हाथों में ले लिया और विवादित जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। यानि पूजा-अर्चना निरंतर जारी रही। नवंबर, 1989 में तत्कालीन सरकार ने विश्व हिंदू परिषद के विवादित भूमि के पास ही शिलान्यास की इजाजत दे दी। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े लाखों कार सेवक जुटे थे। उन्होंने ही उस विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया। भगवान रामलला ढांचे से निकलकर अस्थाई टेंट में आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने उस विवादित जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया और 6 दिसंबर, 1992 से लेकर 9 नवंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक रामलला उसी अस्थाई टेंट में विराजमान रहे, लेकिन उनकी पूजा-अर्चना और दर्शन का कार्य निरंतर संपन्न होता रहा। 1993 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित जमीन के आसपास की 67 एकड़ अतिरिक्त जमीन को भी अधिग्रहित कर लिया।
अप्रैल 2002 से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन के मालिकाना हक पर सुनवाई शुरू की। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2-1 जजों के बहुमत के फैसले से विवादित संपत्ति को तीन दावेदारों में बांटने का फैसला सुनाया जन्मभूमि समेत एक-तिहाई हिस्सा हिंदुओं को, एक-तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कई याचिकाओं को देखने के बाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। बाद के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में मध्यस्थता की कोशिशें भी की गईं, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला।
आखिरकार तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर, 2019 को दशकों पुराने इस कानूनी विवाद पर फैसला सुरक्षित रख लिया। अंत में 9 नवंबर, 2019 का वह ऐतिहासिक दिन आया जब सुप्रीम कोर्ट ने सदियों पुराने इस विवाद को हमेशा-हमेशा के लिए निपटारा कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने संपूर्ण विवादित परिसर पर भगवान रामलला का मालिकाना हक दे दिया और उनके भव्य मंदिर निर्माण के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। अदालत ने सरकार को मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में किसी महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। अदालत के इसी आदेश के बाद श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 5 अगस्त, 2020 को वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन और आधारशिला का कार्यक्रम तय किया गया है।