महिलाओ व आम नागरिकों के जीवन कि रक्षा के संकल्पित होकर स्वस्थ्य एवं जागरूकता के क्षेत्र में काम कर रही स्वयंसेवी संस्था ह्यूमन सेफ लाईफ फाउंडेशन द्वारा स्तनपान के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में कोरोना महामारी को देखते हुए सोशल मीडीया का सहारा लेकर फेसबुक, व्हट्ट्साप, ट्विटर आदि के माध्यम से समाज को जागरूक किया गया। समापन के अंतिम दिन फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं रेडक्रॉस प्रशिक्षक रंजीत श्रीवास्तव ने क़हा कि स्तनपान सप्ताह के दौरान माँ के दूध के महत्त्व की जानकारी दी जाती है। नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है। माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी बीमारियों से बचाता है। स्तनपान को बढ़ावा देकर शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। शिशुओं को जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध पिलाने के लिए महिलाओं को इस सप्ताह के दौरान विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। स्तनपान शिशु के जन्म के पश्चात एक स्वाभाविक क्रिया है। भारत में अपने शिशुओं का स्तनपान सभी माताऐं कराती हैं, परन्तु पहली बार माँ बनने वाली माताओं को शुरू में स्तनपान कराने हेतु सहायता की आवश्यकता होती है। स्तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में जानकारी न होने के कारण बच्चों में कुपोषण का रोग एवं संक्रमण से दस्त हो जाते हैं, उन्होंने बताया कि गर्भ में 9 महीने रहने के बाद शिशु का माता के साथ गहरा जुड़ाव कायम हो जाता है। इसलिए जन्म के तुरंत बाद शिशु को प्राकृतिक रूप से स्तनपान का वरदान प्राप्त होता है। जन्म के शुरुआती 2 घंटों तक शिशु अधिक सक्रिय रहते हैं। इसलिए शुरुआती एक घंटे के भीतर ही स्तनपान शुरू कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु सक्रिय रूप से स्तनपान करने में सक्षम होता है। साथ ही 6 माह तक केवल स्तनपान भी जरूरी होता है। इस दौरान स्तनपान के आलावा बाहर से कुछ भी नहीं देना चाहिए, ऊपर से पानी भी नहीं।
उन्होने फाउंडेशन की प्रदेश सलाहकार समिति सदस्य स्वाती श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ सिम्मी भाटिय़ा, जिला उपाध्यक्ष रीता पाण्डेय, नीलम मिश्रा, शबीहा खातून, ईना लखमानी, ज्योति पाण्डेय, विनीता लखमानी, जिला अध्यक्ष एलके पाण्डेय, अपूर्व शुक्ला सहित देश के कई राज्यों में लोगों को फाउंडेशन के माध्यम से जागरूक कर रहे सभी पदाधिकारी एवं सदस्यो का आभार व्यक्त किया।
फाउंडेशन की चिकित्सा प्रकोष्ठ की सद्स्य डॉ श्वेता श्रीवास्तव ने बताया कि सिजेरियन प्रसव में भी एक घंटे के अंदर स्तनपान जरूरी होता है।
जन्म के शुरुआती 1 घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती 2 घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में 1 घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। इससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। डॉ पी के श्रीवास्तव ने क़हा कि शुरुआती समय में एक चम्मच से अधिक दूध नहीं बनता है। यह दूध गाढ़ा एवं पीला होता है। जिसे क्लोसट्रूम कहा जाता है। इसके सेवन करने से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, लेकिन अभी भी लोगों में इसे लेकर भ्रांतियां है। कुछ लोग इसे गंदा या बेकार दूध समझकर शिशु को नहीं देने की सलाह देते हैं। दूसरी तरफ शुरुआती समय में कम दूध बनने के कारण कुछ लोग यह भी मान लेते हैं कि मां का दूध नहीं बन रहा है। यह मानकर बच्चे को बाहर का दूध पिलाना शुरू कर देते हैं। जबकि यह केवल सामाजिक भ्रांति है। बच्चे के लिए यही गाढ़ा पीला दूध जरूरी होता है एवं मां का शुरुआती समय में कम दूध बनना भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया ही है। डॉ़ अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार वर्ष 2005-06 में बिहार में केवल 4 प्रतिशत बच्चे ही एक घंटे के भीतर स्तनपान कर पाते थे। जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर लगभग 35 प्रतिशत हो गयी। 6 माह तक केवल स्तनपान नहीं करने वाले बच्चों में 6 माह तक केवल स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में पहले 6 महीने में 14 गुना अधिक मृत्यु की सम्भावना होती है। स्तनपान से बच्चों के मृत्यु दर में कमी आती है संक्रमण से होने वाले 88 प्रतिशत बाल मृत्यु दर में स्तनपान से बचाव होता है। सम्पूर्ण स्तनपान से शिशुओं में 54 प्रतिशत डायरिया के मामलों में कमी आती है। स्तनपान से शिशुओं में 32 प्रतिशत श्वसन संक्रमण के मामलों में कमी आती है। शिशुओं में डायरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 72 प्रतिशत मामलों में स्तनपान बचाव करता है। शिशुओं में श्वसन संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 57 प्रतिशत मामलों में स्तनपान बचाव करता है।