अधूरी इक कहानी लिख रहा हूँ ।
गयी बीती पुरानी लिख रहा हूँ ।।
निकाला जा भी सकता हूँ नगर से।
कि मैं अब हक़बयानी लिख रहा हूँ ।।
सुई ज्यों कर रही टिक-टिक घड़ी की ।
समय की यूँ रवानी लिख रहा हूँ ।।
सुनाऊँ कैसे मैं सरगम बताओ ।
अभी मैं आग-पानी लिख रहा हूँ ।।
तिरा चिहरा, तिरे रुख़सार-वो-लब।
रटा था जो, जुबानी लिख रहा हूँ ।।
पलटकर आ गया है "ग़ैर " जब से ।
फ़ज़ा को शादमानी लिख रहा हूँ ।।
अनुराग" ग़ैर"