चंडीगढ़ 17 अगस्त 2020 इन्दु/नवीन बंसल (राजनीतिक संपादक) राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों को देशद्रोही करने वाले बीजेपी के बयान की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि देश की 130 करोड़ जनसंख्या एक सुर में जय जवान और जय किसान का नारा लगाती है। जवान और किसान दोनों एक ही परिवार से आते हैं। किसान देश के खेतों को अपने पसीने से सींचता है तो उसका बेटा सैनिक बनकर देश की सीमा की रक्षा के लिए अपना ख़ून बहाता है। लेकिन देश को ख़ून-पसीने से सींचने वाले किसान वर्ग को बीजेपी ने देशद्रोही कहने का घोर पाप किया है। बीजेपी के इस बयान से पूरे हरियाणा के किसानों और बॉर्डर पर खड़े उनके बेटों में रोष है। बरोदा की जनता किसान को देशद्रोही करने वालों को उपचुनाव में सबक सिखाएगी। क्योंकि बरोदा किसानों और जवानों की धरती है। दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हमारी सरकार के दौरान ख़ुद बीजेपी नेता किसान बनकर अर्धनग्न प्रदर्शन करते थे, लेकिन उन्हें किसी ने देशद्रोही नहीं कहा। लेकिन आज वहीं लोग सत्ता में बैठकर, लोकतांत्रिक तरीक़े से विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को देशद्रोही कह रहे हैं। इससे दुर्भाग्यपुर्ण कुछ भी नहीं हो सकता।
सांसद दीपेंद्र ने अपनी किसान विरोधी नीतियों की वजह से ही बीजेपी लगातार ऐसे फ़ैसले ले रही है जिससे किसानों को नुकसान हो। इसी दिशा में संसद को बाइपास करके करोना काल में 3 नए अध्यादेश लाए गए हैं। इन 3 अध्यादेशों के ज़रिए सरकार सरकार ख़रीद तंत्र को ध्वस्त कर पूंजीपतियों और जमाखोरी को बढ़ावा देना चाहती है। ये सरकार किसानों को MSP देने से पीछे हट रही है। इसी वजह से पिछले 6 साल में हुड्डा सरकार के मुक़ाबले MSP में खट्टर सरकार ने ना के बराबर बढ़ोत्तरी की है। दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आंकड़ों के साथ बताया कि हुड्डा सरकार के दौरान धान के रेट में हर साल औसतरन 14-15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी करते हुए 800 रुपये बढ़ाए। इसके अलावा खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट की वजह से हुड्डा सरकार के दौरान किसानों को MSP से कहीं ज़्यादा 4000 से 6000 रुपये तक धान का रेट मिला। दूसरी तरफ खट्टर सरकार में MSP बढ़ोत्तरी दर भी घटकर सिर्फ 6 प्रतिशत सालाना रह गई। गेहूं के रेट में हुड्डा सरकार के दौरान कुल 127 प्रतिशत यानी हर साल औसतन 13 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई। लेकिन खट्टर सरकार में ये बढ़ोत्तरी घटकर सिर्फ 5 प्रतिशत रह गई। गन्ने के रेट को भी हुड्डा सरकार के दौरान करीब 3 गुणा बढ़ोत्तरी करते हुए 117 से 310 रुपये तक पहुंचाया गया। लेकिन खट्टर सरकार ने 6 साल में महज़ 20 से 30 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई। उसकी भी बरसों से पेमेंट रुकी हुई है।
किसानों के बाद राज्यसभा सांसद ने बेरोज़गारी के मुद्दे पर खट्टर सरकार को आईना दिखाया। उन्होंने नौकरियों के आंकड़ों को मीडिया के साथ सांझा करते हुए सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि CMIE के आंकड़ों से पता चला है कि हरियाणा इस महीने भी पूरे देश में बेरोज़गारी में नंबर वन है। क्योंकि खट्टर सरकार युवाओं को नौकरी देने की बजाए उनका रोज़गार छीनने में लगी है। हुड्डा कार्यकाल से मुक़ाबला किया जाए तो खट्टर कार्यकाल सरकारी क्षेत्र में रोज़गार देने के मामले में उसके सामने कहीं नहीं टिकती। खट्टर सरकार ने 6 साल में कुल जितनी नौकरियां दी हैं, उससे ज्यादा तो हुड्डा सरकार के दौरान सिर्फ शिक्षा महकमें में नौकरियां दी गईं। दीपेंद्र हुड्डा ने बाकायदा कांग्रेस कार्यकाल में हुई भर्तियों के विज्ञापन व साल का ब्यौरा मीडिया से सांझा किया। इस दौरान शिक्षा महकमे में HSSC, HPSC, कॉलेज-यूनिवर्सिटी काडर व अन्य की करीब 51,000 भर्तियां हुईं। अगर इनमें गेस्ट टीचर्स, कंप्यूटर टीचर्स और लैब अटेंडेंट को भी जोड़ दिया जाए तो नौकरियों का आंकड़ा करीब 80,000 बनता है। भर्तियों में अगर शिक्षा महकमें के ही एडमिनिस्ट्रेशन, टेक्निकल, ग्रुप डी और कॉन्ट्रेक्चुअल स्टाफ को भी जोड़ा जाए तो ये आंकड़ा करीब एक लाख का बनता है। इस आंकड़े में उस दौरान स्थापित हुए प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालयों की नौकरियां शामिल नहीं हैं। फिर भी ये आंकड़ा इतना बड़ा है कि खट्टर सरकार की सारी भर्तियों पर भारी पड़ता है। बीजेपी सरकार के 6 साल में जेबीटी की एक भी भर्ती नहीं हुई, जबकि हुड्डा सरकार के दौरान करीब 20 हज़ार भर्तियां निकाली गईं।
इसके बाद राज्यसभा सांसद ने हुड्डा कार्यकाल में साल दर साल हुई भर्तियों का ब्यौरा सामने रखा। उन्होंने बताया कि अलग-अलग महकमे में भर्ती संस्थाओं की तरफ से करीब 1,46,000 भर्तियां की गई। अगर इसमें सेमी रेगुलर गेस्ट टीचर, कंप्यूटर टीचर्स, आशा वर्कर्स, आंगनबाड़ी वर्कर्स, मिड डे मील वर्कर्स जैसी नौकरियों को भी जोड़ा जाए तो ये आंकड़ा करीब 2,30,000 बनता है। अगर हेल्थ वर्कर्स, डीसी रेट व अनुंबधित कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया जाए तो हुड्डा सरकार के दौरान सरकारी महकमों में कुल नौकरियां देने का आंकड़ा करीब 3 लाख बनता है। जबकि खट्टर सरकार के दौरान अबतक बमुश्किल 50 हज़ार भर्तियां ही की गई।
ये सरकार युवाओं को रोज़गार देने में इसलिए भी विफल रही क्योंकि प्राइवेट निवेश ना के बराबर हुआ। बीजेपी सरकार के दौरान हरियाणा में ना कोई बड़ा प्रोजेक्ट आया, ना कोई संस्थान और ना ही कोई परियोजना। इसलिए सरकारी या निजी, दोनों ही क्षेत्रों ने सरकार रोज़गार देने में विफल रही।
सांसद ने कहा कि खट्टर सरकार ने अपने कार्यकाल में कुल जितनी नौकरियां दी हैं, उससे ज्यादा तो कर्मचारी हर साल रिटायर हो जाते हैं। सरकार की तरफ से हर महकमे में छंटनी की जा रही हैं वो अलग। यानी ये सरकार जॉब क्रिएशन में ज़ीरो है। सरकार की तरफ से 1983 पीटीआई को सिर्फ राजनीति के चलते शिकार बनाया गया। अगर सरकार कोर्ट को पीटीआई की वैकेंसी बारे सही जानकारी देती तो इनका रोज़गार बच सकता था। खेल कोटे से ग्रुप-डी में भर्ती हुए 1518 कर्मचारियों को भी ये सरकार नौकरी से निकाल रही है। ये पहली बार है कि अपने ही भर्ती किए गए कर्मचारियों के खिलाफ केस हारने के बाद सरकार ख़ुद सिंगल बैंच के बाद डबल बैंच में जा रही है। आयुष डाक्टरों, टूरिज्म निगम कर्मचारियों, असिस्टेंट प्रोफेसरों, युनिवर्सिटीज़-कॉलेज से कच्चे कर्मचारियों, सफाई कर्मचारियों और कंप्यूटर आपरेटरों को सरकार अपनी छंटनी नीति का शिकार बना रही है। इससे पहले 5000 शिक्षा प्रेरकों को भी खट्टर सरकार ने आते ही नौकरी से निकाल दिया गया था।