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बस्ती । सोमवार को अनुरोध कुमार श्रीवास्तव कृत ‘ जिन्दगी के साज पर’ काव्य संकलन पर संक्षिप्त परिचर्चा का आयोजन एक रेस्टोरेन्ट में शारीरिक दूरी का पालन करते हुये किया गया। वरिष्ठ कवि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि ‘ जिन्दगी के साज पर’ का रचना संसार मानव मन के कई सन्दर्भो, जीजिविषा की समर्थ पड़ताल करता है। ‘आजकल कुछ खफा-खफा सी जिन्दगी, उड़ रही है कुछ धुंआ धुआ सी जिन्दगी’ ‘गांव से चल के जब से शहर वो गया, अजनबी ही मिले छूट घर अब गया’ जैसी रचनायें अनुरोध के कविता संसार को जन केन्द्रित बनाती है।
कवि डा. अजीत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि ‘उमड़ घुमड़, नित आवत बदरा, आसमान में बैठो बदरा, सावन में कजरी गायेंगे, सावन तक रूक जाओ बदरा’ जैसी कवितायें उनके रचना संसार के विविधता और प्रकृति प्रेम को प्रदर्शित करती है।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद अध्यक्ष मस्तराम वर्मा ने ‘ जिन्दगी के साज पर’ की कविताओं को जन उपयोगी बताते हुये कहा कि रचनाकार अनुरोध ने जीवन में जो घटित होते हुये देखा उसे शव्दों में ढाल दिया जो कविता के रूप में मुखरित हुई।
रचनाकार अनुरोध कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि कविता लिखी नहीं जाती मानव मन की करूणा, संवेदनायें जब भीतर तक झकझोरती है तो वे कविता के रूप में कल-कल करती नदी की तरह प्रवाहित होती हैं। प्रयास होगा कि नये संग्रह में रचनाओं के नये धरातल से पाठकों को परिचित कराया जाय जिससे मानव मन की संवेदनाओं के साथ ही देश, समाज को कवितायें नया आयाम दे सके। इस प्रथम कृति को ओंकारेश्वर प्रेस नोयडा ने प्रकाशित किया है।