(रक्षाबंधन पर विशेष)
राखी श्रावण पूर्णिमा पर सावन के अंतिम सोमवार और रक्षाबंधन का विशेष संयोग बन रहा है। भाई बहन का त्यौहार रक्षाबंधन इस बार बेहद खास होगा। इस बार ना ग्रहण की छाया है ना भद्रा का दीर्घकालिक झंझट आयुष्मान योग में भाइयों की कलाई पर बहने राखी बाधेंगी।
ज्योतिषाचार्य पं० आत्माराम पांडेय "काशी" का कहना है कि राखी बांधने के लिए सोमवार 3 अगस्त को सुबह 8:30 के बाद दिन भर का समय मिल रहा है भद्रा रविवार 2 अगस्त को रात्रि 8:36 से शुरू होकर 3 अगस्त सोमवार को सुबह 8:29बजे तक है , इसलिए सोमवार को सुबह 8:30 बजे से दिन भर रक्षाबंधन मनाया जाएगा । दिन में 7:49 बजे से दीर्घायु कारक आयुष्मान योग लग रहा है जो इस साल रक्षाबंधन में विशेष संयोग बना रहा है बहन भाई के दाहिने हाथ में रक्षा बंधन बांधे ।
रक्षा बंधन से वर्ष भर तक पुत्र पोत्रादि सहित सभी सुखी रहते हैं ।
*"येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल: तेन त्वा मनु बधनामि रक्षे मा चल मा चल ।।"*
अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।
रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं परंतु पुत्री द्वारा पिता को, दादा को, चाचा को आथवा कोई भी किसी को भी सम्बन्ध मधुर बनाने की भावना से, सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बाँध सकता है | प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है | सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती |
प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिष्ठान होते हैं। पहले अभीष्ट देवता और कुल देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है भाई बहन को उपहार आथवा शुभकामना प्रतिक धन देता है और उनकी रक्षा की प्रतिज्ञा लेता है। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है | रक्षाबंधन के अनुष्ठान के पूरा होने तक व्रत रखने की भी परंपरा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह ही यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें राखी बांधते हैं और बदले में धन वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं।
गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरू को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को।
धार्मिक प्रसंग - अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरुपूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग भी पूरा होता है। इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेला भी लगता है | व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मंदिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबंधन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं।
पौराणिक प्रसंग - राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह सामर्थ माना जाता है। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है।
कब बांधे रक्षाबंधन - रक्षाबंधन शास्त्रोक्त विधि से बांधना ही उचित होता है, क्योंकि भद्रा के आने से शुभ और अशुभ का विचार करना होता है। ध्यान रहे कि रक्षाबंधन, भैय्या दूज आदि पर्वो में पंचक नक्षत्र का कहीं भी विचार नहीं किया जाता है। भद्रा में रक्षासूत्र बांधने से हो सकती है परेशानी - निर्णय सिंधु के अनुसार "भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी" अर्थात भद्रा में रक्षाबंधन बांधने से प्रजा का अशुभ होता है और होलिका दहन करने से राजा के लिए अशुभ होता है।
*लेखक- पण्डित आत्माराम पांडेय "काशी" वाराणसी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं।*