उत्तर प्रदेश के कानपुर में विकास दुबे नामक अपराधी ने जिस प्रकार 8 पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी, उससे देशभर में रोष फैल गया। यहां वहां, हर जगह उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसकी तलाशी में जाल बिछा दिया और अंततः महाकाल के पावन तीर्थ यानी उज्जैन से उसे हिरासत में लिया गया। फिर उज्जैन पुलिस ने उसे उत्तर प्रदेश एसटीएफ को हैंड ओवर किया और 24 घंटे के भीतर क्रिमिनल विकास दुबे का उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने एनकाउंटर कर दिया।
निश्चित रूप से एक अपराधी के प्रति किसी की भी सहानुभूति नहीं हो सकती, लेकिन हमारे देश में कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी अपराधी के अपराध साबित होने तक उसे खुद को निर्दोष साबित करने का हक है। ऐसे में एनकाउंटर, पुलिस के पास कोई विशेषाधिकार नहीं है।
हां! इतना जरूर माना जाता है कि आत्मरक्षा में, यानी मुठभेड़ के दौरान अपनी रक्षा करने के लिए पुलिस पार्टी फायरिंग अवश्य कर सकती है। चूंकि एनकाउंटर पर हमेशा से ही फर्जी होने के आरोप लगते रहे हैं, और इस सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमें पता चले कि भारतीय कानून की 'मुठभेड़' के सन्दर्भ में क्या स्पष्टता है...
संविधान के संदर्भ में अगर बात की जाए, तो आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि एनकाउंटर नामक शब्द इंडियन कांस्टीट्यूशन में कहीं भी नहीं लिखा गया है, लेकिन सीआरपीसी की धारा 46 में यह जिक्र जरूर किया गया है कि अगर कोई क्रिमिनल पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पार्टी पर जवाबी हमला करता है तो इस दौरान पुलिस भी जवाबी कार्रवाई कर सकती है। जाहिर तौर पर तमाम एनकाउंटर में पुलिस यही थ्योरी बतलाती है।
हालांकि इस संदर्भ में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन और माननीय उच्चतम न्यायालय ने गाइडलाइंस जरूर जारी की है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार एनकाउंटर में हुई हत्याओं को 'एक्स्ट्रा ज्यूडिशल किलिंग' कहा जाता है और इस बारे में पुलिस पार्टी के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं।
23 सितंबर 2014 में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा और न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की बेंच द्वारा इसका जिक्र किया गया था, जिसके अनुसार किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधि की सूचना पुलिस द्वारा लिखित रूप में दर्ज की जानी चाहिए या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से दर्ज होनी चाहिए। इसी प्रकार इन नियमों में बताया गया है कि अगर किसी की डेथ हो जाती है या पुलिस की गोलाबारी में कोई मारा जाता है तो इस पर धारा 157 के अंतर्गत कोर्ट में तत्काल एफ आई आर दर्ज होनी चाहिए, बिना किसी देरी के।
किसी भी एनकाउंटर की एक स्वतंत्र जांच सुनिश्चित होनी चाहिए, जो कोई दूसरा पुलिस स्टेशन कर सकता है या फिर कोई सीआईडी कर सकती है। इस जांच की अध्यक्षता सीधे कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करेगा। यह भी स्पष्ट किया गया है कि जिस पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में एनकाउंटर की जांच हो, वह एनकाउंटर में शामिल अधिकारियों से कम से कम एक रैंक ऊपर होना चाहिए।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आगे इसमें जोड़ा है कि धारा 176 के अंतर्गत पुलिस फायरिंग में हुई किसी भी मौत की मजिस्ट्रेट द्वारा जांच अनिवार्य है और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भी इसकी रिपोर्ट जानी आवश्यक है।
ह्यूमन राइट के संदर्भ में यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक कोई शक पैदा ना हो, तब तक नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन को इंक्वायरी में शामिल करना जरूरी नहीं है, लेकिन नेशनल और स्टेट के ह्यूमन राइट्स कमीशन के पास प्रत्येक एनकाउंटर की रिपोर्ट अवश्य जानी चाहिए।
बता दें कि यह सभी निर्देश इंडियन कांस्टीट्यूशन के अनुच्छेद 141 के तहत दिए गए हैं। इस अनुच्छेद में माननीय सुप्रीम कोर्ट को यह ताकत दी गई है कि वह कोई भी नियम या कानून बना सकता है।
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन भी इस मामले में स्पष्ट है और उसके निर्देशों के अनुसार किसी भी पुलिस एनकाउंटर की जानकारी तुरंत ही रजिस्टर में दर्ज की जानी चाहिए। ह्यूमन राइट्स कमीशन आगे कहता है कि अगर जांच में पुलिस के अधिकारी दोषी साबित होते हैं तो मारे गए व्यक्तियों के सगे - संबंधियों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके बाद नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने साफ कहा है कि अगर पुलिस पर किसी नागरिक के गैर इरादतन हत्या का आरोप लगाया जाता है तो उसके खिलाफ भी आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए और 3 महीने के भीतर मजिस्ट्रेट द्वारा जांच की जानी चाहिए।
खास बात यह भी है कि एनकाउंटर के दौरान हुई तमाम डेथ इंसीडेंट्स की 48 घंटे के भीतर एनएचआरसी को रिपोर्ट दी जानी चाहिए। इस रिपोर्ट में इंसीडेंट की पूरी इंफॉर्मेशन के साथ-साथ, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच की गई रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट की जांच को शामिल किया जाना अनिवार्य है।
जाहिर तौर पर किसी भी अपराधी के साथ किसी भी व्यक्ति की सहानुभूति नहीं हो सकती, लेकिन पुलिस को भी यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी व्यक्ति का एनकाउंटर करें।
कानून के विशेषज्ञ यह बात बखूबी जानते हैं कि कानून में मौजूद लूप होल्स का इस्तेमाल अपराधी खूब करते हैं तो इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पुलिस पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है।
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