(संध्या दीक्षित) बढ़ती जनसंख्या किसी भी देश के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है। जब भी किसी देश की जनसंख्या अनियमित गति से बढ़ती है तो सबसे पहले उस देश के भौतिक सुख-सुविधाओ में कमी होने लगती है क्योंकि प्राकृतिक संसाधन एक निश्चित मात्रा में ही उपलब्ध होते हैं, लेकिन उनका उपयोग करने वाले उस तुलना में कहीं अधिक बढ़ जाते हैं। ऐसे में किसी भी देश के लिए ऐसी स्थिति विकराल समस्या का रूप ले लेती है। वास्तव में विश्व जनसंख्या दिवस को मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब हम बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरूक रवैया अपनाएं और इसके विभिन्न पहलुओं व हितों पर ध्यान देते हुए जनसंख्या विस्फोट में कमी लाने का प्रयास करें। हमारी सुविधाएं सिकुड़ने लगी हैं और दैनंदिन जीवन मुश्किल में पड़ने लगा है। भारत की राजधानी जनसंख्या विस्फोट से उबलने लगी है। देश के मेट्रो शहरों का हाल भी बहुत खराब है। दिल्ली में आए दिन लगने वाले ट्रैफिक जाम ने जीना हराम कर दिया है। वाहन रेंगने की स्थिति में पहुंच गए हैं। लोगों को पैदल चलना अधिक मुनासिब लग रहा है। विकास का स्थान विनाश ने ले लिया है। भारत की जनसंख्या लगभग एक अरब 35 करोड़ है, जो कि 1947 में लगभग तैंतीस करोड़ थी। आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से भी ज्यादा है। भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरूकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। स्थिति यह है कि अगर भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक नहीं लगाई तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। संपूर्ण विश्व में चीन को अपनी 1.3 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। संभावना है कि 2050 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जाएगी। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 17.5 फीसदी है। भूभाग के लिहाज से हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। चार फीसद जल संसाधन हैं, जबकि विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है, उसका 20 फीसदी अकेले भारत पर है। वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। इतना ही नहीं, विश्व समुदाय के समक्ष माइग्रेशन भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी ओर भारत भी अपनी 1.35 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जाएगा। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सन् 2025 तक भारत चीन को भी पछाड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। उच्च जन्मदर और बेहतर सफाई व स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते घट रही मृत्यु दर उच्च जनसंख्या वृद्धि दर की मुख्य वजहें हैं। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। एक अरब भारतीयों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे। परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएं अधिक बढ़ती जा रही हैं। भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही है जबकि विश्व की जनसंख्या की 16.7 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ जाएगा। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा लाखों लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लाभों एवं समाज के उत्पादक सदस्य होने के अवसर से वंचित हो जाएंगे। भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण वर्ष 2015-16 के अनुसार विवाहित महिलाओं (15 से 49 वर्ष) में परिवार नियोजन उपायों का वर्तमान उपयोग 53.5 फीसदी है तथा परिवार नियोजन की आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति 12.9 फीसदी थी। परिवार नियोजन की आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति, उन महिलाओं को संदर्भित करती है जिनमें प्रजनन क्षमता और यौन सक्रियता है, लेकिन वे गर्भनिरोधक के किसी भी उपाय का उपयोग नहीं करती हैं। भारत के समक्ष तेजी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। हालांकि जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है, किंतु इसके नियंत्रण के लिए कानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है, उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिए।
-संध्या दीक्षित