इस सप्ताह के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों की बात करें तो कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों में भारत लंबी छलाँग लगाते हुए दुनिया में चौथे नंबर पर पहुँच गया। हालाँकि आबादी के अनुपात में देखें तो भारत अब भी बहुत बेहतर स्थिति में है और हमारे यहाँ मृत्यु दर भी दुनिया में सबसे कम है। यही नहीं भारत में कोरोना से जंग जीतने वालों की संख्या संक्रमितों की संख्या से ज्यादा हो गयी है जोकि सकारात्मक संकेत है। इस सप्ताह यह भी चर्चा रही कि देश में अब कुछ राज्यों में कम्युनिटी स्प्रैड शुरू हो गया है लेकिन सरकार ने इससे इंकार कर दिया।
इस बीच देश में जमकर राजनीति भी हो रही है। भाजपा जहाँ जन संवाद रैलियों के माध्यम से मोदी सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच पहुँच रही है वहीं कांग्रेस की ओर से देश की रक्षा नीति, विदेश नीति और अर्थ नीति को लेकर सरकार पर लगातार निशाना साधा जा रहा है। सरकार का कहना है कि राहुल गांधी को मुद्दों की संवेदनशीलता का अहसास नहीं है इसीलिए वह टि्वटर के माध्यम से ऐसी बातों को उठाते हैं। इस सप्ताह चीन और नेपाल को लेकर तनाव की और बातचीत के माध्यम से हल निकालने की भी खबरें आती रहीं।
दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ स्थानीय लोगों का इलाज करवाने के राज्य सरकार के फैसले को उपराज्यपाल ने पलट दिया तो एक बार फिर सरकार और उपराज्यपाल के बीच खिंचाव दिखा। लेकिन मामला जल्द ही सुलझा लिया गया। हालांकि दिल्ली सहित देश के विभिन्न अस्पतालों में सुविधाओं और बेडों की कमी का मुद्दा एक बार फिर प्रभावी रूप से उठा। सरकारों के दावों और जमीनी हकीकत के बीच अंतर होने के चलते ही सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकारों को जमकर लताड़ा।
इसके अलावा राज्यसभा चुनावों से पहले रिजॉर्ट पॉलिटिक्स की भी धूम रही। गुजरात में कांग्रेस के 8 विधायकों ने 19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनावों से पहले इस्तीफा दे दिया तो सतर्क कांग्रेस ने अपने विधायकों को गुजरात और राजस्थान के रिजॉर्ट में भेज दिया। लेकिन राजस्थान में जब खुद ही कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मँडराने लगे तो गुजरात के विधायकों को वापस भेज दिया गया और राजस्थान के कांग्रेस विधायकों को दिल्ली-जयपुर रोड स्थिति रिजॉर्ट लाया गया। बहरहाल अब देखना यह है कि चुनाव परिणाम क्या रहता है और कहीं राजस्थान में कांग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान की तो शिकार नहीं हो जायेगी।
--संध्या दीक्षित