इस दुनिया में एक ही तथ्य निश्चित है, वह है- परिवर्तन। कल तक जो मनुष्य इस अहंकार में जी रहा था कि वह अपने बौद्धिक कुशलता से किसी भी समस्या का चुटकी बजाते ही हल ढूँढ़ सकता है, उसे कोरोना की महामारी ने धूल फाँकने पर मजूबर कर दिया। समय बड़ा बलवान है। कब, कहाँ, कैसे और क्यों क्या कुछ हो जाए यह कोई नहीं बता सकता। इसलिए समय के साथ स्वयं को बदलना चाहिए। इस विपदा की घड़ी में सारा संसार जहाँ-तहाँ थम-सा गया है। इससे भारत भी अछूता नहीं है। इस स्थिति में रोटी, कपड़ा और मकान जो हमारी मूलभूत आवश्यकताएँ हैं उनकी आपूर्ति करना सरकार की पहली प्राथमिकता है। किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अनुसार प्रारंभिक शिक्षा 6-14 वर्षों यानी कक्षा एक से आठ तक के बच्चों का मूलभूत अधिकार है। इसे किसी भी स्थिति में नहीं रोकना चाहिए। यही कारण है कि एक ओर जहाँ केंद्र सरकार केंद्रीय स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारें अपने-अपने ढंग से इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए कमर कस रही हैं।
कल तक जो यह माना जाता था कि औपचारिक शिक्षा मात्र निश्चित स्थानों, पाठ्यक्रमों, संसाधनों द्वारा संभव है, उसे कोरोना की संकट घड़ी ने गलत साबित किया है। बच्चों के शिक्षा रूपी मौलिक अधिकार को पूरा करने के लिए पाठशाला की धारणा बदलकर घर को शिक्षाभ्यास का केंद्र बना दिया गया। पाठ्यक्रम के भार को पूरी तरह से बगल में रखते हुए मात्र सीखने की संप्राप्तियों पर ध्यान केंद्रित करना, संसाधनों के नाम पर श्यामपट, चॉकपीस, पोंछक जैसी रूढ़ी संसाधन सामग्री के स्थान पर ई-सामग्री व ई-समूहों को स्थान देना आज की बदलती शिक्षा का परिचायक बन गया है। प्रशिक्षण के दौरान प्रायः हम जिन बातों को पढ़कर व्यवहार के धरातल पर आते-आते नगण्य कर देते थे आज वही फिर से सच साबित हो रहे हैं। बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर है, पहली गुरु उसकी माँ है, तो देखिए वही अवधारणा कोरोना के चलते साकार हो रही है। सत्य तो यही है कि गुरु बच्चे और ज्ञान के बीच पहले भी सेतु था, आज भी सेतु है और कल भी सेतु ही रहेगा। वह अपने फेसिलिटेटर रूप से कभी बाहर आ ही नहीं सकता।
कोरोना के चलते शिक्षा ने अपना मंच बदला है। पहले जहाँ वह श्यामपट, कापी-पुस्तकों तक सीमित थी आज वह मोबाइल, टैब, लैपटाप, कंप्यूटर के जरिए जहाँ-तहाँ पहुँच गयी है। यही कारण है कि देश की अब तक की जितनी भी शिक्षा नीतियाँ हैं, वे तकनीकी व सांकेतिक रूप से शिक्षा को सुदृढ़ बनाने पर जोर देती रहीं। आज उनके सुझाव कसौटी की माँग पर खरे उतर रहे हैं। कुछ शब्द जो कोरोना से पूर्व हमारे लिए मायने नहीं रखते थे आज वही सर्वस्व बन चुके हैं। जूम, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल आदि के ऑनलाइन प्लाटफार्म सीखने का वर्चुअल केंद्र बनकर उभरे हैं। निश्चित तौर पर निकट भविष्य में इन्हीं का वर्चस्व रहेगा। चलिए अब हम वर्तमान में देश के विभिन्न प्रांतों में प्रारंभिक शिक्षा के लिए उठाए गए क़दमों की समीक्षा करते हैं-
उत्तर भारत
उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली आदि सभी प्रांतों में ई-पाठशाला, दीक्षा एप और स्वयं से पठन पाठन की सामग्री, स्कूल के व्हाट्सएप समूह से बच्चों / अभिभावक को जोड़कर पढ़ाया जा रहा है। अलग-अलग विषय के लिए पाठ को समझाने के लिए वाईस मैसेज का भी प्रयोग किया जा रहा है। बच्चों द्वारा नोट बुक में कार्य करने के बाद फ़ोटो संबंधी व्हाट्सएप ग्रुप में डाले जा रहे हैं और अध्यापक उसकी जाँच कर रहे हैं। त्रुटियाँ सुधार कर पुनः फ़ोटो को अपडेट कर रहे हैं। साथ ही ध्यानाकर्षण, आधारशिला और शिक्षण संग्रह पर अध्यापकों के लिए क्विज का आयोजन किया जा रहा है। इससे अध्यापक अपडेट रहते हैं। दीक्षा एप पर टीचर ट्रेनिंग चल रही है। साथ में मिशन प्रेरणा व मिशन कायाकल्प के कार्यक्रम भी संचालित हैं, जिसके लिए जनपद स्तर /ब्लॉक स्तर पर पर अलग -अलग कई व्हाट्सएप समूह बनाए गए हैं। हर व्हाट्सएप समूह अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया है। विशेष बात यह है कि उत्तर प्रदेश में व्हाट्सएप्प ग्रुपों की सहायता से छात्रों व अध्यापकों को जोड़ने का जो प्रयास किया जा रहा है, वह काफी रंग ला रहा है। जबकि झारखंड में दूरदर्शन की सहायता से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है। इससे इंटरनेट की बचत वैकल्पिक उपाय ढूँढ़े जा रहे हैं। पंजाब में गूगल ड्राइव के लिंकों की सहायता से शिक्षार्थियों को सीधे-सीधे लाभ पहुँचाया जा रहा है। राजस्थान में शिक्षावाणी नाम से नवीन प्रयास किए जा रहे हैं। दिल्ली तथा उत्तराखंड में वीडियो पाठ, जूम कक्षाएँ, उत्तर सहित वर्कशीट्स, क्रियाकलाप, श्रव्य सामग्री, कठपुतलियों द्वारा खेल-खेल में शिक्षा, बच्चों के साझा अनुभवों के माध्यम से ई-शिक्षण दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है।
दक्षिण भारत जहाँ शिक्षा का प्रतिशत भारत में सबसे अधिक है, वहाँ के केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पांडिचेरी, अंडमान व निकोबार आदि सभी प्रांतों में विशेष शैक्षिक वेबसाइटों से जोड़कर बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। वर्कशीट्स, रिविजन शीट्स, आडियो-वीडियो पठन सामग्री के अतिरिक्त यूट्यूब पर विशेष कक्षाओं का प्रसारण किया जा रहा है। इससे बच्चे अपनी सुविधानुसार पाठ देख व सुन सकते हैं। चूंकि दक्षिण में शैक्षिक जागरूकता अधिक है, इसलिए यहाँ पर परिणाम त्वरित गति में निकलकर आ रहे हैं। आंध्र प्रदेश में जहां अम्मा ओडि, तेलंगाना में बंगारु बडुलु, कर्नाटक में नम्मा बड़ी शीर्षकीय शैक्षिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं वहीं केरल, तमिलनाडु, पांडिचेरी व अंडमान में दूरदर्शन, क्यूआर कोड युक्त ई-पुस्तकों, दीक्षा एप्प तथा प्रांत विशेष के एप्पों द्वारा बच्चों को सरल व सुगम ढंग से शिक्षा पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।
पूर्वी भारत
पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, असोम, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम आदि सभी प्रांतों में विशेष शैक्षिक पहल से जोड़कर बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। दूरदर्शन, यूट्यूब आदि पर कक्षावार आडियो-वीडियो सामग्री, खेल, पहेलियों आदि की सहायता से शिक्षण किया जा रहा है। इन राज्यों में अन्य राज्यों की भांति नवोन्मेषणात्मक शैक्षिक कार्यक्रमों के न केवल प्रति दिलचस्पी दिखायी है बल्कि उसे अमलीजामा भी पहनाया है। त्रिपुरा जैसे राज्यों में नोतुन दिशा नामक कार्यक्रम से बच्चों की शिक्षा के प्रति जो गंभीरता दर्शाने का प्रयास किया गया है वह वाकई प्रशंसनीय है।
पश्चिमी भारत
पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दियु दामन आदि सभी प्रांतों में दूरदर्शन, यूट्यूब आदि पर कक्षावार आडियो-वीडियो सामग्री, खेल, पहेलियों आदि की सहायता से शिक्षण किया जा रहा है। इन राज्यों में ऑनलाइन अभ्यास व उपक्रम की व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रांत विशेष द्वारा विकसित एप्प के माध्यम से ई-शिक्षा तक पहुँचाने का प्रबंध किया गया है। इनके अतिरिक्त कक्षावार, विषयवार, पाठवार शैक्षिक लिंकों की सहायता से अपनी सुविधानुसार अधिगम करने के प्रबंध किए गए हैं। आमची बियाणे बैंक, आजच्या पुस्तकाचे नावः शूर मित्र, पोस्टर कलरमध्ये वस्तुचित्रातील बकेट रंगवणे, ऋतू कसे निर्माण होतात?, घन ठोकळ्यांची मांडणी आदि शीर्षकीय पाठों से प्रतिदिन अभ्यास कार्य तैयार किए जा रहे हैं। इनके अतिरिक्त बच्चों को सुनाने के लिये 'एक पाऊल वाचन समृद्धीकडे' अंतर्गत प्रतिदिन एक कहाणी भेजी जाती है। इसके लिये व्हाट्सएप, यूट्यूब चैनल व फेसबुक का उपयोग करते हैं। विशेष बात यह है कि जिन अभिभावकों के पास एंड्रायड मोबाईल फोन नहीं है उनके लिये कैवल्य फाउंडेशन के टोल फ्री नंबर 1800-572-8585 पर सुबह नौ से शाम पांच बजे तक बिना किसी शुल्क के कहानी सुन सकते हैं।
मध्य भारत
मध्य भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों में जूम एप्प के माध्यम से प्रतिदिन तीन घंटों की कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन व आकाशवाणी का विशेष रूप से उपयोग किया जा रहा है। कोरोना के इस विपदाकाल में दूरदर्शन व आकाशवाणी रामबाण साबित हो रहे हैं। वीडियो पाठ, जूम कक्षाएँ, उत्तर सहित वर्कशीट्स, क्रियाकलाप, श्रव्य सामग्री की सहायता से प्रारंभिक शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने बंद के दौरान स्कूली बच्चों को घर पर ही रहकर पढ़ने के लिए पढ़ई तुंहर दुआर पोर्टल का शुभारंभ किया है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत भर में सभी राज्य ई-शिक्षा के माध्यम से बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के प्रति अत्यंत गंभीर हैं। वे अपनी हरसंभव कोशिशों से बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ले जाने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं। दूरदर्शन, आकाशवाणी, सोशल मीडिया प्लेटफार्म, जूम, माइक्रोसाफ्ट, गूगल वीडियो एप्स हों या फिर अन्य सामग्री की सहायता से बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने की पहल प्रशंसनीय है। हाँ यह अलग बात है कि इन सब प्रयासों के बावजूद भारत में इंटरनेट की स्पीड एक बड़ी समस्या है। ब्रॉडबैंड स्पीड विश्लेषण करने वाली कंपनी ऊकला की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 में भारत मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में 128वें स्थान पर रहा। भारत में डाउनलोड स्पीड 11.18 एमबीपीएस और अपलोड स्पीड 4.38 एमबीपीएस रही। ऐसे में वीडियो क्लासेज लेते समय इंटरनेट स्पीड का कम ज्यादा होना समस्या पैदा करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट स्पीड की हालत और बुरी है, बिजली चले जाने पर इंटरनेट या तो बद हो जाता है या फिर 2जी की स्पीड पर कुछ देख सुन नहीं सकते। इसके अलावा देश के बहुतायत विद्यार्थियों के पास ऑनलाइन पढ़ने और पढ़ाने के संसाधन ही उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थितियों में कैसे ऑनलाइन शिक्षा दी या ली जा सकती है।
इनके अतिरिक्त तकनीकी साक्षरता हम काफी पिछड़े हैं। अगर तकनीकी शिक्षा से जुड़े अध्यापकों और विद्यार्थियों को छोड़ दें तो बाकी लगभग सभी विषयों से जुड़े शिक्षकों और शिक्षार्थिंयों को तकनीकी समस्या का सामना करना पड़ता है। प्रारंभिक शिक्षा स्तर पर यह समस्या बहुत बड़ी समस्या है। आजकल छोटे—छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को टेबलेट, लेपटॉप, डेस्कटॉप और स्मार्ट फोन के सहारे पढ़ाया जा रहा है। ऐसे में अगर तकनीकी समझ किसी भी स्तर पर हावी होता है तो सीखने की क्षमता पर बड़ा प्रभाव डालता है। सरकार शिक्षकों की तकनीकी समझ बढ़ाने के लिए लगी तो रहती है लेकिन जमीनी स्तर में अगर स्थितियों को देखें तो मामला उल्टा ही नजर आता है। अधिक ऑनलाइन शिक्षा का शारीरिक और मानसिक रूप से भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
अतः किसी भी प्रयास का सीमा के भीतर रहकर, बोधगम्यता के स्तर पर जाकर प्रयास किया जाए तो वह लाभकारी सिद्ध होगा। अतः वर्तमान किए जा रहे प्रयासों में से उसके नफ़ा-नुकलानों पर विजय प्राप्त कर ली जाए तो निश्चित तौर पर प्रारंभकि शिक्षा स्तर पर किए जा रहे प्रयास निकट भविष्य में उज्ज्वलमय परिणाम लाएँगे।
-- डॉ रीता पाण्डेय "स्नेहा"