नयी दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर को जमानत दे दी। सफूरा गर्भवर्ती हैं और संशोधित नगारिकता कानून (CAA) के विरोध के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक हिंसा के मामले में उन्हें गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, सफूरा की जमानत का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मानवीय आधार पर विरोध नहीं किया।
जम्मू में जन्मी सफूरा ज़रगर जामिया मिलिया की छात्रा हैं जो सोशियोलॉजी में एमफिल कर रही हैं। साथ ही साथ 27 साल की सफूरा जामिया समन्वय समिति की सदस्य भी हैं। इसके पहले सफूरा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपना ग्रेजुएशन किया था और विश्वविद्यालय के विमेन डेवलपमेंट सेल की सदस्य थीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर से छपने वाली एक पत्रिका के लिए भी काम किया है।
सफूरा ज़रगर का नाम तब सामने आया जब उन्होंने केंद्र सरकार के विवादित नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद सफूरा ज़रगर को ट्रोलर्स ने भी काफी ज्यादा निशाना बनाया। उनके धर्म, उनके रिश्ते और परिवार के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। यहां तक की उन्हें चरित्रहीन भी कहा गया।
सफूरा से जुड़ी हुई भ्रामक खबरें फैलाई गई। जिसमें दावा किया गया कि वह अविवाहित है लेकिन जब जेल में उनका मेडिकल टेस्ट हुआ तो उनके गर्भवती होने की बात सामने आई। जबकि सच्चाई बिल्कुल उलट थी। इतना ही नहीं सफूरा के गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता की पहचान को लेकर भी अभद्र भाषाओं का इस्तेमाल किया गया।
क्या है ज़रगर की सच्चाई
सफूरा ज़रगर की शादी साल 2018 में एक कश्मीरी युवक के साथ हुई थी। सोशल मीडिया में उनकी अविवाहिता को लेकर जो दावे किए जा रहे थे सभी के सभी फर्जी और झूठे थे। बता दें कि साल 2018 में सफूरा की शादी हो जाने की वजह से उनका परिवार यह जानता था कि सफूरा उम्मीद से हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सफूरा की गर्भावस्था की बात परिवार को पता थी तभी तो वकील ने गर्भावस्था को ही ध्यान में रखकर शुरुआती दौर में ही जमानत की गुहार लगाई थी।
सफूरा को 10 अप्रैल के दिन गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्हें जमानत मिल गई। हालांकि बाद में उन्हें गैर कानून गतिविधि रोकथाम कानून के तहत दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता ने सफूरा की जमानत पर विरोध भी दर्ज कराया था।
बता दें कि सफूरा ज़रगर को हाई कोर्ट ने जमानत दे दी। अदालत में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस का पक्ष रखते हुए मेहता ने कहा कि सफूरा को मानवीय आधार पर नियमित जमानत दी जा सकती है और फैसला मामले के तथ्यों के आधार पर नहीं लिया जाना चाहिए और न ही इसे नजीर बनानी चाहिए। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई करते हुए 23 हफ्ते से गर्भवती सफूरा को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पेश करने पर रिहा करने का आदेश दिया।
अदालत ने कहा कि सफूरा मामले से जुड़ी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगी और न ही जांच या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगी। वहीं एक दिन पहले दिल्ली पुलिस ने जमानत का पुरजोर विरोध किया था। मिली जानकारी के मुताबिक पुलिस ने तिहाड़ जेल में पिछले 10 साल में हुई 39 डिलीवरी का जिक्र किया था और कहा था कि सफूरा को जमानत देने के लिए गर्भावस्था कोई आधार नहीं है।