संपादकीय । पिछले कुछ महीनों से विभिन्न देशों द्वारा कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। कई देशों ने लॉकडाउन को एक कारगर हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया तो कइयों ने इसके लिए आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया है। संक्रमण की चेन तोड़ने के इन्हीं प्रयासों में ऐसी आधुनिक तकनीकों में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा कुछ मोबाइल एप के जरिये करोड़ों लोगों की पल-पल ट्रैकिंग किया जाना भी शामिल है। विश्व बैंक की दक्षिण आर्थिक केन्द्रित रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि कोरोना के प्रसार की निगरानी के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है तथा बड़े पैमाने पर आबादी को शिक्षित करने और संक्रमण को ट्रेस करने में ये तकनीकें मददगार हो सकती हैं। भारत में कोरोना पर नियंत्रण पाने के लिए जहां ‘आरोग्य सेतु एप’ का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं दुनिया के कई अन्य देश भी ऐसी ही अलग-अलग तकनीकों के सहारे कोरोना पर लगाम कसने के प्रयासों में जुटे हैं। सिंगापुर तथा ताइवान में सार्वजनिक स्थानों पर मोबाइल एप तथा क्यूआर स्कैन कोड के जरिये नए आगंतुकों की सतत निगरानी की जा रही है जबकि चीन के कई शहरों में हैल्थ कोड सिस्टम का प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें कलर कोड के माध्यम से कोरोना संक्रमण के खतरे के स्तर का पता लगाया जाता है।
कोरोना से जंग में संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए गूगल तथा एपल जैसी दुनिया की प्रख्यात टैक कम्पनियां भी मैदान में कूद चुकी हैं। दोनों कम्पनियों ने स्मार्टफोन के लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है, जो कांटैक्ट ट्रेसिंग में मदद करने के साथ यूजर्स को सूचित भी करेगा कि वे कोविड-19 संक्रमित व्यक्तियों के सम्पर्क में आए हैं या नहीं। एपल तथा गूगल द्वारा मिलकर एक ऐसा विशेष प्लेटफॉर्म ‘एक्सपोजर नोटिफिकेशन एपीआई कांटैक्ट ट्रेसिंग’ भी लॉन्च किया जा चुका है, जिससे कोरोना संक्रमितों का पता लगाना आसान हो जाएगा। यह प्लेटफॉर्म ऐसे लोगों के सम्पर्क में आने वालों को चेतावनी भेजेगा। 22 देश तथा अमेरिका के कई राज्य इस प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल करने की इजाजत मांग चुके हैं। किसी भी देश की सरकार ही अपनी एप को इस प्लेटफॉर्म से जोड़ सकती है और इसका इस्तेमाल सरकार तथा उसका स्वास्थ्य विभाग ही कर सकता है।
एपल तथा गूगल का कहना है कि प्राइवेसी और सरकार द्वारा लोगों के डाटा को इस्तेमाल करने से बचाना उनकी प्राथमिकता है। दरअसल यह सिस्टम ब्लूटूथ सिग्नल के जरिये ही काम करेगा और इसमें यूजर्स की निजता भंग होने से बचाने के लिए जीपीएस लोकेशन तथा उसके डाटा के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक रहेगी। हालांकि यह केवल एक प्लेटफॉर्म है, कोई एप नहीं और इसे दुनियाभर की स्वास्थ्य एजेंसियां अपने एप के साथ जोड़ सकती हैं। एपल के सीईओ टिम कुक के मुताबिक यह तकनीक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए कोरोना संक्रमितों की पहचान करने में मददगार साबित होगी। वैसे भारत के इलैक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक सिंह का कहना है कि भारत का आरोग्य सेतु एप इससे कहीं ज्यादा समृद्ध है।
मैप्स की मदद से गूगल अब ऐसी व्यवस्था भी बना रहा है, जिससे यूजर्स जान सकेंगे कि किस सड़क पर अथवा बिल्डिंग में कितनी भीड़ है ताकि लोग वहां जाने को लेकर निर्णय कर सकें। सरकारें इसका उपयोग यह जानने में कर सकती हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का सही तरीके से पालन हो रहा है या नहीं। पहले से ही दुनियाभर में करोड़ों यूजर्स की गतिविधियों को ट्रैक करती रही गूगल, फेसबुक तथा ऐसी ही कुछ जानी-मानी कम्पनियों की मदद से अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी ‘माई हैल्थ’ नामक एक एप बना रहा है। इस एप की मदद से डब्ल्यूएचओ बताने में सक्षम हो सकेगा कि कहां-कहां बीमारियां फैल चुकी हैं और कहां फैलने वाली हैं। बहरहाल, दुनियाभर में लाखों लोगों की जान ले चुके कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है लेकिन कई स्थानों पर इसके लिए उपयोग रही एप के जरिये डाटा और निजता की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में तकनीक के सहारे कोरोना पर प्रहार करने के लिए विभिन्न एप का इस्तेमाल करते हुए डाटा और निजता की सुरक्षा को लेकर भी तमाम सरकारों द्वारा अपेक्षित कदम उठाए जाने चाहिए।