बस्ती। जनपद के गौशालाओं में पशु बेमौत मर रहे हैं, महकमे की बेरहमी बेजुबानों पर भारी पड़ रही है। न तो उनके इलाज का उचित प्रबंध किया गया है और न ही चारा दाना का। 80 फीसदी गो आश्रय स्थलों में चारे की व्यवस्था नही है। दाना इतना कि ऊंट के मुंह मे जीरा। डाक्टर तो कहने के लिये हैं, बगैर इलाज मरना बेजुबानों की तकदीर बन गयी है। मरणासन्न पशुओं के लिये जरूरी सुविधायें मुहैया कराने की बजाय महकमे के अफसर खबर छापने वाले पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा रहे हैं।
जबकि आम आदमी जो गौशालाओं की व्यवस्था, फण्डिंग आदि के बारे में बहुत गहरी जानकारी नही रखता वह भी सवाल पूछता है कि गो आश्रय स्थलों की व्यवस्था सरकार की मंशा के अनुसार चल रही है तो अनेकों पशु रोड पर क्या कर रहे हैं। गो आश्रय स्थलों को स्थापित करने के पीछे सरकार की मंशा थी कि आवारा पशुओं से किसानों की फसलों को बचाया जाये साथ ही उनकी हत्या भी रूके। लेकिन सरकार की इस मंशा के विपरीत काम हो रहा है। करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद भी किसानों की फसलों पर आवारा पशुओं का संकट है, दूसरी ओर जितने पशुओं की हत्यायें होती थीं उससे ज्यादा पशु महकमे की बेरहमी से बेमौत मर रहे हैं। शनिवार को हमारे संवाददाता बीपी लहरी ने बनकटी ब्लाक के घुक्सा गांव में संचालित गौ आश्रय स्थल की पड़ताल की।
यहां प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम था। गावंशों को समुचित व्यवस्था मयस्सर नहीं है। कुल छोटे बडे 17 गौवंश मौजूद मिले। जिसकी देखरेख में दो शिफ्ट में चार सफाई कर्मियों की ड्यूटी लगायी गयी हैं। पहला शिफ्ट सुबह 10 से दोपहर 02 बजे तक और दूसरा 02 से शाम 06 बजे तक तय है। बचे हुये समय में गौवंश राम भरोसे रहते हैं। इस बीच पशु मरें या कहीं भाग जाये कोई गारण्टी नहीं। 17 के सापेक्ष गौवंशों के खाने के लिये सिर्फ दस हउदी है। 7 को अपना निवाला छीनकर खाना है। सफाईकर्मी भी कर्तव्यों के प्रति लापरवाह देखे गये। दूसरे शिफ्ट वाला सफाईकर्मी डेढ़ घण्टे देर से आया।
यहां एक गोवशं कुपोषण से बीमार एंव दयनीय स्थित में पाया गया। उसे उपचार नहीं मिला तो वह एक दो दिन में काल के गाल में समा सकता है। इतना ही नहीं आश्रय स्थल पर मौजूद सभी गौवन्शों को देखने से ही लगता है कि इनका पेट नहीं भरता है। गोवंशों को खाने के लिए कुछ भूसा व लगभग पाँच किग्रा कपिला पशु आहार एक कमरे में रक्खा मिला। यह 17 पशुओं का निवाला है, जबकि हराचारे के रूप में कुछ भी नहीं है। अब सवाल उठता है कि जहाँ दुधारू मवेशियों को बहुत मुश्किल से कपिला पशुआहार मयस्सर होता है वहीं नाकाबिल गोवंशों को कपिला आहार दे पाना नामुमकिन भी है। इसी कड़ी में कलवारी संवाददाता दिलीप श्रीवास्तव ने थाना क्षेत्र के रामजानकी मार्ग पर स्थित कुसौरी गौ आश्रय स्थल की पड़ताल किया।
यहां गो आश्रय स्थल की बाउण्ड्रीवाल या बाड़़ नहीं है। चार कर्मचारियों की तैनाती है जो दो शिफ्ट में डियूटी करते हैं। डियूटी पर तैनात सफाईकर्मी ने बताया कि गौशाला में 7 जानवर हैं। लेकिन मौके पर 3 ही जानवर पाये गये। इलाज के नाम पर डाक्टर महीने में कभी कभी आते रहते हैं। शुक्रवार को दुबौलिया विकास खण्ड के रमना तौफीक गांव में स्थित गौशाला में जिस गोवंश की मरणासन्न स्थिति बताई गयी थी, उसकी आज मौत हो गयी। खबर को सज्ञान लेकर विभागीय अफसर ने उसके इलाज का प्रबंधक किया होता तो उसकी जान बच सकती थी। पशुओं के निवाले के लिये भूसा है लेकिन चारा दाना नदारद है। बनकटी के बखरिया स्थित गोआश्रय स्थल का भी यही हाल है। बताया जा रहा है कि जिन गोवंशों को खाने और रहने की उत्तम व्यवस्था के लिये मुख्यमन्त्री ने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारा वह विभागीय हुक्मरानों की संवेदनहीनता की शिकार हो गयी है।