समीक्षा । इस सप्ताह के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों की बात करें तो लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियाँ और कोरोना वायरस के फैलते प्रकोप से देश जूझता रहा। लॉकडाउन के इस दूसरे सप्ताह में हालांकि लोगों को यह काफी हद तक समझ आ गया कि यह व्यवस्था लोगों के हित में की गयी है इसीलिए जहाँ पहले सप्ताह में लोग सड़कों पर दिख रहे थे वैसा नजारा इस सप्ताह देखने को नहीं मिला। केंद्र और राज्य सरकारों ने लॉकडाउन के नियमों का पालन कराने के लिए जो सख्ती अपनाई है वह भी काफी हद तक कारगर रही। केंद्र और राज्य जिस एकजुटता के साथ इस महामारी से निबटने के प्रयास कर रहे हैं, यकीनन वह जल्द ही सफल होंगे।
इस सप्ताह तबलीगी जमात के एक धार्मिक आयोजन के चलते कोरोना वायरस देश के कोने-कोने में पहुँच गया और अब तक इस धार्मिक आयोजन के चलते 650 लोगों को कोरोना वायरस हो चुका है और जमात के कार्यक्रम में जाने वाले लगभग 9000 लोग या तो क्वारांटइन में रखे गये हैं या फिर निगरानी में हैं। इस जमात ने देश के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं क्योंकि अब तक इस महमारी से निबटने के प्रयास ठीकठाक चल रहे थे लेकिन इन लोगों की वजह से मामला बिगाड़ दिया गया है।
राजनीतिक रूप से देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब रविवार 5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे 9 मिनट तक दीये जलाने, मोमबत्ती जलाने या टार्च से रोशनी करने का आह्वान किया तो उस पर सियासत शुरू हो गयी। कांग्रेस नेताओं ने कह दिया कि प्रधानमंत्री हालात से निबटने में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं और देशवासियों से कभी ताली और थाली बजवा रहे हैं तो कभी दीये जलवा रहे हैं। कई अन्य विपक्षी दलों के भी बयान इसी से मिलते-जुलते रहे। कांग्रेस कार्यसमिति ने तो प्रधानमंत्री पर यह भी आरोप लगाया है कि लॉकडाउन का निर्णय बिना रणनीति बनाये ले लिया गया जिससे लाखों प्रवासी श्रमिकों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस के इस आरोप की भाजपा नेताओं ने निंदा करते हुए इस कठिन समय में सरकार के साथ खड़े रहने का सुझाव दिया है।
इसके अलावा आरबीआई की ओर से आम जनता को दी गयी रियायतों को इस सप्ताह बैंकों ने जन सामान्य तक पहुँचाया। फिलहाल तो राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन 14 अप्रैल तक के लिए है लेकिन अगर यह आगे बढ़ा तो लोगों को कई अन्य प्रकार की दिक्कतें भी शुरू हो सकती हैं।
-रीता पाण्डेय "स्नेहा"