आप सब इस बात से वाकिफ हैं कि राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत अच्छे मित्र हैं। जब कभी भी राहुल राजनीतिक, सामाजिक तौर पर अटके हैं तो सिंधिया ने ही उनकी गाड़ी को पार लगाया था और अब दोनों की राहें जुदा हो गईं।
(दीपक कौल)।महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल छा गए। हालांकि बीते दिनों कमलनाथ के मंत्री जीतू पटवारी संकट को हरने के लिए कर्नाटक पहुंचे थे। जहां पर वह अपने विधायकों को तलाश रहे थे, लेकिन पुलिसकर्मियों के साथ धक्का-मुक्की हो गई। खैर, सत्ता का सुख और दुख कुछ ऐसा ही होता है। एक तरफ पूर्ण विश्वास के साथ कमलनाथ मीडियाकर्मियों से मिलते हैं और बहुमत का दावा करते हैं। जबकि दूसरी तरफ एक मित्र ने दूसरे मित्र के चले जाने को राजनीतिक डर बताया है। आज इसी विषय पर चर्चा करेंगे।
आप सब इस बात से वाकिफ हैं कि राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत अच्छे मित्र हैं। जब कभी भी राहुल राजनीतिक, सामाजिक तौर पर अटके हैं तो सिंधिया ने ही उनकी गाड़ी को पार लगाया था और अब दोनों की राहें जुदा हो गईं। सिंधिया ने अपने धुरविरोधी भाजपा का दामन थाम लिया तो राहुल ने चुप्पी साध ली। हालांकि फिर राहुल का बयान सामने आया।
इस पर चर्चा करने से पहले आपको एक दिलचस्प बात बता देते हैं कि राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर 13 दिसंबर 2018 को एक फोटो शेयर की थी। जिसमें राहुल के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ दिख रहे हैं। अब राहुल ने इस ट्वीट को पिन किया है। आसान भाषा में बताएं तो सबसे ऊपर लगा दिया है। और फोटो शेयर करते हुए राहुल ने लियो टॉल्स्टॉय को कोट किया कि दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में न तो धैर्य दिख रहा है और न ही समय बचा है। और तो और सिंधिया और कमलनाथ भी साथ नहीं हैं।
खैर राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक सफर पर अगर हम गौर करें तो पाएंगे कि एक साथ ही दोनों राजनीति में सक्रिय हुए। माधवराव सिंधिया के निधन के बाद 2001 में ज्योतिरादित्य तो 2003 में राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा। फिर राहुल की ही टीम में सिंधिया दिखाई दिए, जहां से इनकी दोस्ती की शुरुआत हुई। एक ही विचारधारा पर दोनों नेता आगे बढ़े। फिर मंत्री सिंधिया मंत्री बने और राहुल को अक्सर यह कहते कि अपना दायरा बढ़ाओ मगर राहुल कांग्रेस के भीतर ही सिमट से गए। कांग्रेस के भीतर सिमटने का मतलब है कि पार्टी के समीकरण में भी फंस गए और अपनी पहुंच आम जन तक नहीं बना सके।
और आपको अगर याद हो तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिंधिया ने अपनी पूरी ताकत उत्तर-प्रदेश में झोंक दी और अपनी संसदीय सीट गुना को पत्नी और बेटे के हवाले कर दिया। फिर चुनाव हार गए और फिर पार्टी उन पर ज्यादा ध्यान देते हुए नहीं दिखी।
सिंधिया के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद भी राहुल ने अपने मित्र को मित्र बताया और कहा कि कांग्रेस जैसा सम्मान भाजपा में नहीं मिलेगा। मगर राहुल यह तो भूल गए कि सिंधिया जो सम्मान चाहते थे उन्हें वह कांग्रेस में नहीं मिला तभी तो 18 सालों का साथ छोड़कर वह भाजपा के हो लिए। हां, राहुल गांधी ने अपने बयान में एक दमदार बात जरूर बोली है कि सिंधिया अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर डरे हुए थे। लिहाज़ा उन्होंने अपनी विचारधारा को जेब में रख दिया और आरएसएस के साथ चले गए। इसे हम इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जिस कांग्रेस के अब तक थे सिंधिया उसका कोई चेहरा ही नहीं है। चेहरा नहीं है तो बात किसकी मानना है यह भी तय नहीं है और सिंधिया यह भी समझ गए थे कि राहुल और सोनिया कांग्रेस को बदलने में असमर्थ हैं और वही पुराने रवैये के साथ पार्टी आगे बढ़ रही है।
राहुल ने पूरे बयान को सिंधिया तक ही समेटे रखा। हां ये बात अलग है कि उन्होंने वही पुरानी लाइनें दोहराईं कि ये विचारधारा की लड़ाई है। एक तरफ कांग्रेस तो दूसरी तरफ आरएसएस और भाजपा... हम तो बस इतना ही कहेंगे कि राहुल गांधी को अब ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि कांग्रेस को गांधी परिवार से अलग युवा नेतृत्व की खास जरूरत है और यह भी मान लेना चाहिए कि अब सिंधिया कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी हो गए हैं।
इतना ही नहीं पार्टी को राहुल गांधी के उस बयान का भी सम्मान करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति कांग्रेस पार्टी की कमान न संभाले। इसके बावजूद पार्टी नेताओं ने राहुल गांधी के बयान का सम्मान नहीं रखा और सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी। चर्चा ये भी है कि राहुल के मना करने के बाद अब कांग्रेस नेता प्रियंका को अध्यक्ष पद पर बैठाने के बारे में विचार कर रहे हैं।
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल पहुंचे तो भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनका जमकर स्वागत किया। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आवास पर खाना भी खाया। और जब शिवराज सिंह चौहान का नाम आ ही गया है तो ये भी बता दें कि उन्होंने सिंधिया को विभीषण कहा और कमलनाथ को रावण बताया। लेकिन सीता कौन है ? यह सवाल भी अहम है। फिर हमने पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखा तो पाया कि यहां पर लड़ाई तो मध्य प्रदेश की कुर्सी हासिल करने की है, यहां जुबानी युद्ध इसीलिए हो रहा है। जबकि रामायण में भगवान राम सीता की रक्षा के लिए युद्ध लड़े थे।