छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बधेल के नाम संजय द्विवेदी का खुला पत्र
सेवा में,
श्री भूपेश बधेल जी
मुख्यमंत्रीः छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
आदरणीय भूपेश जी,
सादर नमस्कार,
आशा है आप स्वस्थ एवं सानंद हैं। यह पत्र विशेष प्रयोजन से लिख रहा हूं। मुझे समाचार पत्रों से पता चला कि आपके मंत्रिमंडल ने रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय का नाम बदलकर अब चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय करने का निर्णय लिया है। राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते और लोकतंत्र में जनादेश प्राप्त राजनेता होने के नाते आपका निर्णय सिर माथे। लेकिन आपके इस फैसले पर मेरे मन में कई प्रश्न उठे हैं, जिन्हें आपसे साझा करना जागरूक नागरिक होने के नाते अपना कर्तव्य समझता हूं।
मैंने 1994 से लेकर 2009 तक अपनी युवा अवस्था का एक लंबा समय पत्रकार होने के नाते छत्तीसगढ़ की सेवा में व्यतीत किया है। रायपुर और बिलासपुर में अनेक अखबारों के माध्यम से मैंने छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा और उसके भूमिपुत्रों को न्याय दिलाने के लिए सतत लेखन किया है। मेरी पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रमों में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, अजीत जोगी, डा. रमन सिंह, सत्यनारायण शर्मा, बृजमोहन अग्रवाल, चरणदास महंत, धर्मजीत सिंह,स्व. नंदकुमार पटेल, स्व.बी.आर. यादव जैसे नेता आते रहे हैं। आपसे भी विधायक और मंत्री के नाते मेरा व्यक्तिगत संवाद रहा है। आपके गांव भी आपके साथ एक आयोजन में जाने का अवसर मिला और क्षेत्र में आपकी लोकप्रियता, संघर्षशीलता का गवाह रहा हूं।
योद्धा हैं आप-
आपसे हुए अनेक संवादों में आपके व्यक्तित्व, उदारता और लोगों को साथ लेकर चलने की आपकी क्षमता तथा छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आपके मन में पल रहे सुंदर सपनों को जानने-समझने का अवसर मिला। मैं आपकी संघर्षशीलता, अंतिम व्यक्ति के प्रति आपके अनुराग को प्रणाम करता हूं। आप सही मायने में योद्धा हैं, जिन्होंने स्व. नंदकुमार पटेल के छोड़े हुए काम को पूरा किया। सत्ता में आने के बाद आपका रवैया आपको एक अलग छवि दे रहा है, जिसके बारे में शायद ‘आपके सलाहकार’ आपको नहीं बताते हैं। आप राज्य के मुख्यमंत्री हो चुके हैं और मैं अदना सा लेखक हूं, सो आपसे मित्रता का दावा तो नहीं कर सकता। किंतु आपका शुभचिंतक होने के नाते मैं आपसे यह निवेदन करना चाहता हूं कि आप कटुता, बदले की भावना और निपटाने की राजनीति से बचें। यह कांग्रेस का रास्ता नहीं है, देश का रास्ता नहीं है और छत्तीसगढ़ का रास्ता तो बिल्कुल नहीं।
नाम में क्या रखा है-
विश्वविद्यालय का नाम आदरणीय चंदूलाल चंद्राकर के नाम पर रखकर आप उनका सम्मान नहीं कर रहे, बल्कि एक महानायक को विवादों में ही डाल रहे हैं। चंदूलाल जी छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा हैं। वे पांच बार दुर्ग क्षेत्र से लोकसभा के सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस के प्रवक्ता और राष्ट्रीय महासचिव जैसे पदों पर रहे हैं। वे छत्तीसगढ़ के पहले पत्रकार हैं जिन्हें ‘दैनिक हिंदुस्तान’ जैसे राष्ट्रीय अखबार का संपादक होने का अवसर मिला। ऐसे महत्त्वपूर्ण पत्रकार, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के नाम पर आप कुछ बड़ा कर सकते थे। एक बड़ी लकीर खींच सकते थे किंतु आपको चंदूलाल जी का सम्मान नहीं, एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता कुशाभाऊ ठाकरे का नाम हटाना ज्यादा प्रिय है। मुझे लगता है इससे आपने अपना कद छोटा ही किया है।
मृत्यु के बाद कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता पूरे समाज का होता है। राजनीतिक आस्थाओं के नाम पर उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। समाज के प्रति उसका प्रदेय सब स्वीकारते और मानते हैं। स्वयं चंदूलाल जी यह पसंद नहीं करते कि उनकी स्मृति में ऐसा काम हो, जिसके लिए किसी का नाम मिटाना पड़े।
कुशाभाऊ जी एक सात्विक वृत्ति के राजनीतिक नायक थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की अहर्निश सेवा की। उनका नाम एक विश्वविद्यालय से हटाकर आप उसी अतिवाद को पोषित करेगें, जिसके तहत कुछ लोग जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नाम बदलने की बात करते हैं। नाम बदलने की प्रतियोगिता हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। यह देश की संस्कृति नहीं है। हमें यह भी सोचना चाहिए कि सत्ता आजन्म के लिए नहीं होती। काल के प्रवाह में पांच साल कुछ नहीं होते। कल अगर कोई अन्य दल सत्ता में आकर चंदूलाल जी का नाम इस विश्वविद्यालय से फिर हटाए तो क्या होगा ? हम अपने नायकों का सम्मान चाहते हैं या उनके नाम पर राजनीति यह आपको सोचना है। इस बहाने शिक्षा परिसरों को हम अखाड़ा बना ही रहे हैं, जो वस्तुतः अपराध ही है।
मैं आपको सिर्फ स्मरण दिलाना चाहता हूं कि डा. रमन सिंह की सरकार ने तीन विश्वविद्यालय साथ में खोले थे स्वामी विवेकानंद टेक्नीकल विश्वविद्यालय, पं. सुंदरलाल शर्मा खुला विश्वविद्यालय और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय। इनमें सुंदरलाल शर्मा आजन्म कांग्रेसी रहे, जिनसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी प्रभावित थे। इससे क्या डा. रमन सिंह का कद घट गया। चंदूलाल चंद्राकर जी के नाम पर जनसंपर्क विभाग के पुरस्कार दिए जाते रहे, पंद्रह साल राज्य में भाजपा की सरकार रही तो क्या भाजपा ने उनके नाम पर दिए जा रहे पुरस्कारों को बदल दिया। नायक मृत्यु के बाद राजनीति का नहीं, समाज का होता है।तत्कालीन रमन सरकार ने इसी भावना को पोषित किया। इसके साथ ही महाकवि गजानन माधव मुक्तिबोध की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए राजनांदगांव में डा. रमन सिंह ने जो कुछ किया, उसकी देश के अनेक साहित्यकारों ने सराहना की। क्या हम अपने नायकों को भी दलगत राजनीतिक का शिकार बन जाने देगें। मुझे लगता है यह उचित नहीं है। कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में ठाकरे जी की प्रतिमा भी स्थापित है। अनेक वर्षों में सैकड़ों विद्यार्थी यहां से अपनी डिग्री लेकर जा चुके हैं। उनकी डिग्रियों पर उनके विश्वविद्यालय का नाम है। इस नाम से एक भावनात्मक लगाव है। मुझे लगता है कि इतिहास को इस तरह बदलना जरूरी नहीं है। एक नए विश्वविद्यालय के साथ जो अभी ठीक से अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं है, इस तरह के प्रयोग उसे कई नए संकटों में डाल सकते हैं। यह कहा जा रहा है कि कुछ पत्रकारों की मांग पर ऐसा किया गया, आप आदेश करें तो मैं देश भर के तमाम संपादकों के पत्र आपको भिजवा देता हूं जो इस नाम को बदलने का विरोध करेंगे। राजनीति में इस तरह के प्रपंचों को आप बेहतर समझते हैं, इस प्रायोजिकता का कोई मूल्य नहीं है। मूल्य है उन विचारों का जिससे आगे का रास्ता सुंदर और विवादहीन बनाया जा सकता है।
गांधी परिवार पर हमले के लिए अवसर-
आपके ‘विद्वान सलाहकार’ आपको नहीं बताएंगे क्योंकि उनकी प्रेरणाभूमि भारत नहीं है, नेहरू और गांधी नहीं हैं। प्रतिहिंसा और विवाद पैदा करना उनकी राजनीति है। आज वे कांग्रेस के मंच पर आकर यही सब करना चाहते हैं, जिसके चलते उनकी समूची विचारधारा पुरातात्विक महत्त्व की चीज बन गयी है। वे आपको यह नहीं बताएंगें कि ऐसे कृत्यों से आप गांधी- नेहरू परिवार के अपमान के लिए नई जमीन तैयार कर रहे हैं। देश में अनेक संस्थाएं पं. जवाहरलाल नेहरू,श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री फिरोज गांधी, श्री राजीव गांधी, श्री संजय गांधी के नाम पर हैं। इस बहाने गांधी परिवार के राजनीतिक विरोधियों को इनकी गिनती करने और मृत्यु के बाद इन नायकों पर हमले करने का अवसर मिलता है। मेरा मानना है यह एक ऐसी गली में प्रवेश है, जहां से वापसी नहीं है। अपने राजनीतिक चिंतन का विस्तार करें, इन छोटे सवालों में आप जैसे व्यक्ति का उलझना ठीक नहीं है। छत्तीसगढ़ के अनेक नायकों के लिए आपको कुछ करना चाहिए पं. माधवराव सप्रे,कवि-पत्रकार-राजनेता श्रीकांत वर्मा,सरस्वती के संपादक रहे पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, रंगकर्मी सत्यदेव दुबे जैसे अनेक नायक हैं जिनकी स्मृति का संरक्षण जरूरी है। लेकिन यह काम किसी का नाम पोंछकर न हो।
सेवा के अवसर को यूं न गवाएं-
महिमामय प्रभु ने बहुत भाग्य से आपको छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा का अवसर दिया है। छत्तीसगढ़ को देश का अग्रणी राज्य बनाना और उसके सपनों में रंग भरने की जिम्मेदारी इतिहास ने आपको दी है। इस समूचे भूगोल की सेवा और इसके नागरिकों को न्याय दिलाना आपका कर्तव्य है। इन विवादित कदमों से बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में कोई मदद नहीं मिलेगी। छत्तीसगढ़ के स्वभाव को आप मुझसे ज्यादा जानते हैं। यहां‘अतिवाद की राजनीति’ के लिए कोई जगह नहीं है। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी अपनी तमाम योग्यताओं के बावजूद भी राज्य की जनता वह स्नेह नहीं पा सके, जिसके वे अधिकारी थे। आप सोचिए कि ऐसा क्यों हुआ ? राज्य की जनता ने डा. रमन सिंह को सेवा के लिए तीन कार्यकाल दिए। यह छत्तीसगढ़ है जहां लोग अपने जैसे लोगों को,सरल और सहज स्वभाव को स्वीकारते हैं। यहां नफरतें और कड़वाहटें लंबी नहीं चल सकतीं।
इस माटी के प्रति मेरा सहज अनुराग मुझे यह कहने के लिए बाध्य कर रहा है कि आप राज्य के स्वभाव के विपरीत न चलें। प्रतिहिंसा, विवाद और वितंडावाद यहां के स्वभाव का हिस्सा नहीं है। अभी तीन दिन पहले बस्तर में सुरक्षाबलों के 17 लोग शहीद हुए हैं। करोना से सारा देश जूझ रहा है। ऐसे समय में बस्तर की शांति, छत्तीसगढ़ के नागरिकों का स्वास्थ्य आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। मुझे आपको कर्तव्यबोध कराने का साहस नहीं करना चाहिए किंतु आपके प्रति सद्भाव और मेरे प्रति आपका स्नेह मुझे यह हिम्मत दे रहा है। छत्तीसगढ़ महतारी की मुझ पर अपार कृपा रही है। बिलासपुर में बैठी मां महामाया, बस्तर की मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी से मैं नवरात्रि के दिनों में यह प्रार्थना करता हूं वे आपको शक्ति,साहस दें कि आप अपना मार्ग प्रशस्त कर सकें। बेहतर होगा कि आप अपने मंत्रिमंडल द्वारा लिए इस फैसले को वापस लेकर सद्भाव की राजनीतिक परंपरा को अक्षुण्ण रखेंगें। भारतीय नववर्ष पर आपको सुखी और सार्थक जीवन के लिए मंगलकामनाएं।
जय जोहार!
सादर आपका शुभचिंतक
- संजय द्विवेदी,
कार्यकारी संपादकः मीडिया विमर्श, भोपाल