लेख । एक वायरस ने संपूर्ण मानव जाति को यकायक पुनः कुदरत के आगे बौना बना दिया। उसकी संपूर्ण साइंस, टेक्नोलॉजी, औद्योगिक क्रांति, सदियों का ज्ञान, उसकी संपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक और हर प्रकार की व्यवस्था ने इस घातक वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं। वह मानव जो कल तक कुदरत को अपनी मुट्ठी में कैद हुआ प्रतीत कर रहा था, आज वही मानव कुदरत से उत्पन्न एक घातक वायरस के आगे असहाय और लाचार है। उसके बड़े-बड़े अस्पताल, उसकी तमाम साइंस और टेक्नोलॉजी, संपूर्ण प्रगति व उन्नति सब इस समय बेमानी हो चुकी हैं।
जरा गौर कीजिए, इटली के लोमब्रोडी इलाके में दो-तीन दिन के भीतर कोरोना वायरस के इतने मरीज आ गए कि वहां के बड़े-बड़े अस्पतालों ने यह फैसला किया कि वह 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, अगर बूढ़े मरते हैं तो उनको मरने दो। ऐसी ही कुछ खबरें चीन से आईं। इटली यूरोप का एक प्रगतिशील देश है और चीन संसार की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। परंतु एक मामूली वायरस के आगे इटली और चीन दुनिया के लिए आज बंद है।
और अब लगभग पूरा यूरोप और उत्तरी अमेरिका भी ‘लॉकडाउन’ हो चुका है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली और उन्नतिशील देश अमेरिका में इस समय रोजमर्रा के खाने-पीने के सामान की कमी होती जा रही है। अमेरिका जो सारे संसार को मिनटों में अपने सशक्त हथियारों से समाप्त कर सकता है, वह कोरोना वायरस के आगे इतना लाचार है कि उसको इस छोटे से वायरस से बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है।
अरे! एक अमेरिका क्या, सारे संसार और संपूर्ण मानव जाति की समझ से बाहर है कि वह इस वायरस से बचे तो बचे कैसे। क्योंकि यह केवल एक बीमारी नहीं है। इस महाकाल ने तो मानव जाति की सदियों की मशक्कत से बनाई हर व्यवस्था को तीन माह के अंदर छिन्न-भिन्न कर दिया है। आज अमेरिका, यूरोप और चीन ही क्या सारी दुनिया की दौलत इस महाकाल के आगे बेकार है। केवल इतना ही नहीं, यह बीमारी सारे संसार में लगभग हर धंधे और व्यवसाय को इस कदर चौपट कर सकती है कि जिसकी आप अभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
यदि संसार में केवल नागरिक उड्डयन, होटल और ट्रेवल इंडस्ट्री ही बैठ गई तो सारी दुनिया में कितने सौ करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे, यह अभी नहीं बताया जा सकता है। फिर अर्थव्यवस्था बैठी तो बैंक डूबेंगे, तो केवल हमारे और आपके पैसे ही नहीं डूबेंगे बल्कि अमेजॉन, फेसबुक, एप्पल जैसी बैंक के कर्जों पर चलने वाली न जाने कितनी विश्वव्यापी कंपनियां डूब जाएंगी और दुनिया के बड़े-बड़े बैंक दिवालिया हो जाएंगे। यह तो महान देशों और बड़ी अर्थव्यवस्था की दुर्दशा होगी।
अब जरा सोचिए, इन परिस्थितियों में सारी दुनिया के गरीबों का क्या हाल होगा? वह खोंमचेवाला, पटरीवाला जो हमारे और आप के बाहर निकलने पर ही अपना सामान बेचकर अपनी जीविका चलाता है, उसका क्या होगा जब देश के देश लॉकडाऊन हो जाएंगे। कल को चीन के शहरों के समान दिल्ली की सड़कों पर उल्लू बोलने लगे तो यहां के खोंमचवाले, रेड़ीवाले, आटो एवं रिक्शा ड्राइवर, रोज की दिहाड़ी करने वाला मजदूर, हमारे और आपके घरों में खाना पकाने वाली महिला ये सब और इनके जैसे करोड़ों लोग जो रोज कुआं खोदकर अपना पेट पालते हैं, वे कहां जाएंगे और उनका क्या होगा?
अरे उनको तो भीख देने वाला भी कोई नहीं होगा क्योंकि जब सड़कों पर हू का आलम होगा तो कौन किसको भीख देगा। इसीलिए सारे संसार में यह शोर मच रहा है कि गरीबों को तुरंत पैसा पहुंचाओ। यह है कुदरत से उत्पन्न एक अदने वायरस की शक्ति जिसने ट्रंप, शी जिनपिंग, मैकरां, पुतिन और मोदी जैसे ताकतवर नेताओं को लाचार कर दिया है। इन नेताओं की क्या हस्ती, इस समय तो संपूर्ण मानव जाति, उसकी संपूर्ण उन्नति और प्रगति ही असहाय है। वो साइंस और टेक्नोलॉजी, जिसको मानव अपना सबसे सबल हथियार समझता था, वह भी लाचार है। वह अपार दौलत और वह परमाणु हथियार जिनको मनुष्य अपनी सुरक्षा का कवच समझते थे, वे सब इस समय असहाय हैं। इस भीषण अंधकार में अगर आशा की किरण है तो वह केवल यह कि वह मानव जिसने अपने को देशों, धर्मों, जाति, कबीलों, भाषाओं, औरत, मर्द, प्रगतिशील एवं पिछड़ों, विभिन्न भाषाओं और न जाने कितने खानों में बांट लिया था, वह संपूर्ण मानव जाति फिर से एकजुट होकर कोरोना वायरस महाकाल से लड़ने को इकट्ठा हो जाए, तो तब ही शायद वह इस भीषण प्रलय से बच सकता है। परंतु इसके लिए उसको डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी जैसों की घृणा की राजनीति त्यागकर महात्मा गांधी की मानवता और प्रेम की राजनीति और उस व्यवस्था को गले लगाना होगा, जिसमें हर मानव दूसरे की ‘पीर पराई जाने रे’ सिद्धांत का पालने करे। कदापि कुदरत भी यही चाहती है और वह कोरोना महाकाल से मानवता को यही चेता रही है।
-दीपक कौल