नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप और हत्या के चारो दोषियों को फांसी की सजा होने के बावजूद कानूनी दांव-पेंच के कारण उनकी फांसी टलती जा रही है। निर्भया के परिवार के साथ पूरे देश की निगाहें निर्भया के दोषियों की फांसी पर टिकी हुई हैं। सभी के मन में ये ही सवाल उठ रहा है कि आखिर चारो दरिंदों को फांसी कब होगी? निर्भया केस की तरह कई ऐसी घटनाएं जिन्होंने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। उन दरिंदों की भी राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर दी गयी थी। इसके बावजूद वो दरिंदें भी बचाव के कानूनी विकल्प का रास्ता अख्तियार करते हुए अभी तक फंदे से बचे हुए हैं। जानिए वो चर्चित केस और उनकी दरिंदगी ...
पहले बता दें हैदराबाद गैंगरेप और हत्या मामले के बाद आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में रेपिस्टों को मौत की सजा के लिए 'दिशा' कानून बनाया गया। ताकि ट्रायल जल्द पूरा करके जल्द सजा हो सके। लेकिन निर्भया जैसे मामले के चारदोषी अभी भी फंदे तक नहीं लटकाए जा सके हैं। दोषी को फंदे से लटकाया जाए उससे पहले उन्हें हर मुमकिन मौका दिया जाता है ताकि वे सभी संभावित कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर सकें। यहीं कारण है कि भारत भर की विभिन्न जेलों में ऐसे कई दरिंदें बंद है जो इन्हीं का प्रयोग करके फांसी टाल रहे हैं।
आखिरी वक्त पर फंदे से बच गया था निठारी कांड का गुनहगार कोली
2006 में पूरे देश को झकझोर देने वाले नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड में आरोपी मनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा मिली थी। उन दोनों के खिलाफ रेप और मर्डर के 16 केस दर्ज हुए थे। कोली को 11 मामलों में ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा दी जबकि 5 केस अभी भी लंबित हैं। 2011- कोली ने दया याचिका दी जिसे 2014- राष्ट्रपति ने खारिज कर दी। ट्रायल कोर्ट ने ब्लैक वॉरंट यानी फाइनल ऑर्डर जारी किया और सितंबर में फांसी पर लटकाने की सारी तैयारियां पूरी हो गईं। कोली के वकील रात में ही कोर्ट पहुंचे, सुप्रीम कोर्ट ने रात 2 बजे यह कहते हुए फांसी पर रोक लगा दी कि रिव्यू पिटिशन लंबित है। अक्टूबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पिटिशन को खारिज कर दिया। 2015- कोली और एक एनजीओ की याचिकाओं पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दया याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। तब से कोली 10 दूसरे मामलों में दोषी करार दिया जा चुका है जिनमें उसे फांसी की सजा हुई है। एक में तो इसी साल अप्रैल में उसे मौत की सजा हुई है लेकिन कानूनी दांव पेंच से वो अभी भी फांसी से बच रहे हैं।
क्या था निठारी कांड
बता दें साल 2006 में नोएडा का निठारी गांव की कोठी नंबर डी-5 से जब नरकंकाल मिलने शुरू हुए, तो पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। सीबीआई को जांच के दौरान मानव हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था। कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को पुलिस ने धर दबोचा। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब 7 मई 2006 में पायल नाम की लड़की लापता हो गई थी। वह मोनिंदर पंढेर की कोठी में रिक्शे से आई थी। लेकिन वहां से बाहर नहीं निकली। इसके बाद पायल की एफआईआर के बाद निठारी के नर पिशाच का काला सच सबके सामने आया। आरोप है कि वह कोठी से गुजरने वाले बच्चों को पकड़ कर उनके साथ कुकर्म करता और फिर उनकी हत्या कर देता। निठारी गांव के लोगों का कहना है कि पंढेर की कोठी से शरीर के अंगों का व्यापार होता था। उनका कहना है कि वे बच्चों को मारकर उनके अंग निकाल लेते थे। उसे विदेशों में बेंचा जाता था। सुरेंद्र कोली जेल में हैं। इतने सारे बच्चों के हत्यारें अभी भी कानून की आड़ में जिंदा हैं।
परिवार के 8 लोगों की हत्या करने वाली सोनिया और पति संजीव
हरियाणा की सोनिया ने पिता समेत आठ लोगों की थी निर्मम हत्या सोनिया के पिता हिसार के विधायक रेलूराम थे। प्रॉपर्टी की लालच में 23 अगस्त 2001 को सोनिया और उसके पति संजीव ने मिलकर रेलूराम व उसके परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद 2004 को सेशन कोर्ट ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। जिसे बाद में 2005 को हाई कोर्ट उम्रकैद में बदल दिया था। बाद में 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने वापस से सेशन कोर्ट की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सोनिया व संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया के लिए याचिका लगाई। जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दया याचिका खारिज कर दी है। लेकिन दया याचिका खारिज होने के बावजूद मौजूद कानूनी विकल्पों के सहारे स्वयं को फांसी से बचाने में लगातार कामयाब हो रही हैं। सोनिया तो दो बार जेल से भागने का भी असफल प्रयास कर चुकी है।
7 लोगों को मौत के घाट उतारने वाली शबनम और उसका प्रेमी
यूपी की शबनम ने परिवार के 7 लोगों की की थी निर्मम हत्या शबनम ने 15 अप्रैल, 2008 को यूपी के अमरोहा डिस्ट्रिक्ट में 7 लोगों का क़त्ल कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश के अमरोहा के बावनखेड़ी गांव में रात के लगभग डेढ़ दो बजे प्रेम में अंधी शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के 7 लोगों का गला रेत दिया था उसमें एक बच्चा भी शामिल था। सभी की मौके पर ही मौत हो गई थी। सलीम के साथ मिलकर अपने पूरे परिवार का सफाया करने वाली शबनम ने जब अपने परिवार वालों की हत्या की तो शबनम 7 सप्ताह की गर्भवती भी थी। शुरूआत में उसने यह दलील देकर खुद को बचाने की कोशिश की कि लुटेरों ने उसके परिवार पर हमला कर दिया था और बाथरूम में होने की वजह से वह बच निकलने में कामयाब रही लेकिन परिवार में सुख वही एकमात्र जिंदा बची थी। शबनम और सलीम को 2 साल बाद अमरोहा की सत्र अदालत ने मौत की सजा सुनाई। निचली अदालत के फैसले के बाद इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी मोहर लगा दी। पिछले कई वर्षों से वो मुरादाबाद जेल में बंद है। प्रेमी सलीम आगरा सेंट्रल जेल में बंद है। दया याचिका खारिज होने के बावजूद वो दोनों कानूनी दांव पेंच से फांसी से बचे हुए हैं।
42 बच्चों की हत्या करने वाली ये दो कैदी
पुणे में यरवदा जेल में बंद दो औरतें 23 साल से बंद है। ये दोनों सगी बहनें बड़ी रेणुका और सीमा है दोनों भी दया याचिका खारिल होने के बाद फांसी टालने के लिए लगातार कानूनी दांव खेल रही हैं। 1990 से लेकर 1996 के बीच यानी छह साल में 42 बच्चों की हत्या की थी। वो बच्चों को चुराती और उन्हें गोद में लेकर अन्य चोरियां करती थी। अगर वो पकड़ जाती थी तो बच्चे को जमीन पर पटक देती ताकि लोगों का ध्यान चोरी से भटक जाए। ज्यादातर को पटक-पटक मार देतीं इसके अलावा बच्चों को ऐसे तरीके इन्होंने अपनाएं जिसको सुनकर ही दिल दहल जाए। यह सीरियल किलिंग का मामला भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे खतरनाक और दर्दनाक मामलों में से एक था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के समय में क्षमा याचना की लेकिन साल 2014 में प्रणव मुखर्जी ने दोनों बहनों पर कोई रहम नहीं किया। और अदालत के फैसले से ही सहमति जताई। इस तरह दोनों बहनों के लिए फांसी की सजा पर आखिरी मुहर लग चुकी है। लेकिन वो भी निर्भया के हत्यारों की तरह लगातार अपने को फांसी से बचाने के लिए कामयाब हो रही हैं।
भागलपुर जेल में ऐसे ही है 12 अपराधी
भागलपुर की जेल में भी ऐसे लगभग 12 अपराधी है जिन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें सात ऐसे हैं, जिन्होंने दुष्कर्म के बाद बेरहमी से पीडि़ता का कत्ल कर दिया था। अदालत ने उन दरिंदों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया। इनमें ज्यादातर की सजा उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखी। अब सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई लंबित है। इन्हीं में से वैशाली के राघोपुर निवासी जगत राय है जिसकी दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी थी। इसने सात लोगों को जलाकर मार डाला था। जगत का डेथ वारंट भी जारी कर दिया गया था। उसे फांसी दी जाती, इससे पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की एक संस्था ने न्यायालय में अर्जी दे दी। जिसकी सुनवाई होने तक फांसी टाल दी गई है।
वहीं फांसी की सजा पाए 12 कैदियों में दीपक राय उर्फ विपत राय, निरंजन कुमार उर्फ अलखदेव कुमार, मुन्ना पांडेय, मनीष कुमार उर्फ नेपाली मंडल, शेरू उर्फ ओंकार नाथ सिंह, जगत राय, अजीत कुमार, ध्रुव सहनी, सोनू कुमार, रूपेश कुमार मंडल, प्रशांत कुमार मेहता, जियाउद्दीन उर्फ धन्नो शामिल है। इनमें मुन्ना, मनीष, ध्रुव, सोनू, प्रशांत, जियाउद्दीन और रूपेश दुष्कर्म के बाद हत्या का दोषी है। मुन्ना पांडेय ने भागलपुर जिले के सबौर थाना क्षेत्र में 31 मई 2015 को एक बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या कर दी थी। 23 मार्च 2017 को पॉक्सो की विशेष अदालत ने दोषी को फांसी की सजा सुनाई। अभियुक्त को हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिली और अब अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
बता दें देश भी जेलों में ऐसे ही कई अपराधी बंद है जो दया याचिका के रद्द होने के बाद भी लगातार फांसी से बचते आ रहे हैं। मालूम हो किट्रायल कोर्ट में फांसी की सजा पर ऊपरी अदालतों की मंजूरी जरूरी है। निचली अदालतों में लंबे वक्त तक केस चलता है। हालांकि, महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के जल्द निपटारे की कोशिशें हो रही हैं। निचली अदालत से मौत की सजा के बाद ऊपरी अदालत से उसकी मंजूरी जरूरी है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के लिए कोई समयसीमा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से भी मौत की सजा के बाद दोषी 30 दिनों में रिव्यू पिटिशन दे सकता है। रिव्यू पिटिशन भी खारिज हो जाए तो क्यूरेटिव पिटिशन का ऑप्शन है। इसके लिए भी कोई समयसीमा तय नहीं है। क्यूरेटिव पिटिशन के भी खारिज होने के बाद दोषी के पास दया याचिका का विकल्प होता है।