मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बेनिया के स्काप्जे में हुआ था। उनका वास्तिवक नाम गोंझा बोयाजिजू था। अल्बेनियई जुबान में गोंझा का मतलब कली होता है। लेकिन इंसानियत की उस सबसे खूबसूरत कली का बचपन बेबसी में निकला था। आठ साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया।
लेख (दीपक कौल) चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसत तिलक देत रघुबीर जब संत शब्द सुनते हैं, तो दिमाग में ऐसे व्यक्ति का खाका खिंच जाता है जो दुनियादारी से दूर है। ‘कुछ लेना न देना मगन रहना’ वाली बात हो जिसमें। कबीर को संत कहते हैं लोग। कोई निर्मोही सा आदमी हुआ तो उसे कह देते हैं बड़ा संत आदमी है, किसी को कुछ नहीं कहता। लेकिन इसका जो अंग्रेजी शब्द है, सेंट, उसके पीछे की कहानी और इस शब्द का मतलब बहुत अलग है। भारत में मदर टेरेसा को भी संत कहा जाता है। धर्म अगर बांटने के लिए इस्तेमाल किया जाए तो हमेशा कहीं न कहीं अटकता है। लेकिन वही धर्म अगर समेटकर किसी का भला करने के लिए आगे बढ़ाया जाए तो उसकी प्रतीक मदर टेरेसा बनती हैं। लगभग सच्चाई इन्हीं बातों में छिपी हुई है। आपको बताते हैं कैसे एक आम महिला से मदर टेरेसा और मदर टेरेसा से संत टेरेसा बनीं अदग्नेश बोया गोंझां जिजू। साथ ही मदर टेरेसा को लेकर अक्सर ये कहा जाता है कि क्रिस्टैनिटी और कन्वर्जन को लेकर इतने सारे विवाद हैं उनके बारे में भी बात करेंगे।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बेनिया के स्काप्जे में हुआ था। उनका वास्तिवक नाम गोंझा बोयाजिजू था। अल्बेनियई जुबान में गोंझा का मतलब कली होता है। लेकिन इंसानियत की उस सबसे खूबसूरत कली का बचपन बेबसी में निकला था। आठ साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया। मां के सिर पर पांच बच्चों की परवरिश का बोझ था। ऐसा माना जाता है कि वो जब मात्र 12 साल की थी तब ही उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। 18 साल की उम्र में उन्होंने सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो में शामिल होने का फैसला ले लिया। इसके बाद वो आयरलैंड गईं और अंग्रेजी भाषा सीखी। सिस्टर टेरेसा 6 जनवरी 1929 को कोलकाता में लोरेटो कान्वेंट पहुंचीं और 1944 में हेडमिस्ट्रेस बनीं। दूसरे विश्व युद्ध के साये में बंगाल का सामना सबसे भयंकर अकाल से था। लाखों लोग भूख से मर गए। म्यांमार पर जापान के हमले के बाद लोग भागकर कोलकाता की सड़कों पर आ गए। लाखों लोग बेघर हो गए और साथ ही बे-पेट भूखे भी।मदर टेरेसा ने स्कूल से इस्तीफा दे दिया और गरीबों की सेवा के लिए निकल पड़ी। कुछ दिनों बाद ही देश का बंटवारा हुआ और मानव इतिहास में इंसानों की सबसे अदला-बदली हुई। लेकिन उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थीं। 1943 के अकाल में शहर में बड़ी संख्या में मौतें हुईं और लोग गरीबी से बेहाल हो गए। ऐसी हालत में 1946 में सिस्टर टेरेसा ने गरीबों, लाचारों, बीमारों और असहायों की जीवन भर मदद करने का मन बना लिया।
इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फैमली अस्पताल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं। 7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वेटिकन से मिशनरी ऑफ़ टैरेटी की स्थापना की अनुमति मिल गई। 14 दिसंबर 1951 को मदर टेरेसा अल्बेनिया की नागरिकता छोड़कर भारत की नागरिक बन गईं। इसके बाद अनाथ और दिव्यांग बच्चों के लिए शिशु भवन शुरू किया। तो बुजुर्गों के लिए शांति नगर। वो बहुत कम सोती थीं। रात को बारह बजे भी किसी जरूरतमंद ने दरवाजा खटखटाया तो वो हाजिर रहती थीं और सुबह के 3 बजे भी। तभी तो 25 साल में उनकी मिशनरी ऑफ़ चेरेटी में 704 सिस्टर जुड़ गईं। जबकि उनकी मौत के वक्त यानी 1997 तक 120 देशों में उनकी मिशनरी 594 आश्रमों में और 3480 सिस्टर के रूप में फैल चुकी थीं। मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए भारत सरकार ने पहले 1962 में पद्मश्री और बाद में 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। हर सम्मान के आईने में मदर टेरेसा को बेबस, लाचार लोगों का उदास चेहरा दिखता था। जिस पर मुस्कान लाना उनकी जिंदगी का मकसद बन चुका था। मदर टेरेसा को 1979 को नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला। दुनिया के सवोच्च सम्मानों के शिखर पर खड़ीं मदर टेरेसा की सेहत 1997 को खराब होने लगी। लगातार खराब सेहत के कारण 13 मार्च 1997 को उन्होंने मिशनरी ऑफ़ चेरेटी के मुखिया का पद अपनी सहयोगी सिस्टर निर्मला को दे दिया। 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई। मान सेवा और गरीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पॉल द्वतीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में धन्य घोषित किया। 15 मार्च 2016 को पोप फ्रांसेस ने कार्डेना परिषद में संत की उपाधि देने की घोषणा की।
मानवता की मिसाल
पोप से गिफ्ट मिली कार नीलाम कर जुटाए पैसे।
1965 में पोप पॉल-6 ने भारत दौरे पर दी थी गिफ्ट।
सेवा कार्य में व्यस्त टेरेसा पोप से मिली भी नहीं थीं।
नोबल प्राइज भोज से इंकार कर कहा- पैसे दे दो।
संत टेरेसा ने कहा था- 15 हजार लोगों के खाने की फिक्र।
एक बार फ्लाईट से यात्रियों का छोड़ा खाना समेट लाई।
गरीबों को खिलाया फ्लाईट से लाया खाना।
संत होने का मतलब
संत घोषित होने का मतलब व्यक्ति स्वर्ग में है।
व्यक्ति सीधे ईश्वर के संपर्क में है।
संत के आदर्श और ईश्वर की बातें।
संत के आदर्शों का अनुसरण, ईश्वर का अनुसरण।
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ब्रिटिश भारतीय लेखक और डॉक्टर अरूप चटर्जी मदर टेरेसा के बड़े आलोचक रहे हैं। एक समय में मदर टेरेसा के कोलकाता स्थित सेवाघर में काम कर चुके अरूप ने टेरेसा के खिलाफ अपनी ही जांच का हवाला देते हुए किताब लिखी थी 'मदर टेरेसा : दि अनटोल्ड स्टोरी', जिसने काफी हंगामा खड़ा किया था। इस किताब में चटर्जी ने लिखा था कि प्रचार किया जाता है कि मदर टेरेसा के सेवाघरों में कई हज़ार बीमारों व लाचारों का इलाज व सेवा की गई, जबकि ऐसे लाचारों की संख्या 700 से ज़्यादा नहीं रही। इसके अलावा चटर्जी ने कुछ दस्तावेज़ जारी करते हुए मदर टेरेसा की संस्थाओं को मिलने वाले डोनेशन के साथ ही उनके बैंक अकाउंट्स में आने वाली रकम के स्रोतों को लेकर भी सवाल खड़े किए थे और कहा था कि जाली और चार सौ बीस लोग इन संस्थाओं में पैसा लगाते हैं।
इमरजेंसी का समर्थन
भारत में 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने जब इमरजेंसी लगाई थी, तब मदर टेरेसा ने कहा था 'लोग इससे खुश हैं। उनके पास ज़्यादा रोज़गार है और हड़तालें भी कम हो रही हैं। इस बयान के बाद मदर टेरेसा पर कांग्रेस के हिमायती होने के आरोप भी लगे थे।
अनैतिक धर्म परिवर्तन के इल्ज़ाम
ब्रिटिश अमेरिकी लेखक व पत्रकार क्रिस्टोफर हिचेन्स ने अपने टीवी शो और किताब 'द मिशनरी पोज़िशन: मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस' में गंभीर आरोप लगाए जिसके मुताबिक मदर टेरेसा की संस्थाओं में मरने की हालत में पहुंचे मरीज़ों का अनैतिक ढंग से धर्म परिवर्तन किया जाता था। 'मरीज़ों से पूछा जाता था कि क्या वो सीधे स्वर्ग जाना चाहते हैं और उनकी हां को धर्म परिवर्तन के लिए मंज़ूरी माना जाता था'। इसके बाद सेवा कर रहीं ननें उन मरीज़ों का बप्तिस्मा कर उन्हें ईसाई बनाती थीं।
इसके अलावा शिकागो में मदर टेरेसा के आध्यात्मिक सलाहकार जेसुइट पादरी डोनल्ड जे मग्वायर ने एक अमेरिकी लड़के का यौन शोषण किया था। यह बात जानकर हैरानी होगी कि पादरी ने ऐसा एक बार नहीं बल्कि हजारों बार किया, कई राज्यों और कई देशों में घूम-घूम कर किया। एसोसिएटेड प्रेस को दिए साक्षात्कार में 61 वर्षीय गोल्डबर्ग ने अपने साथ हुए यौन शोषण की पूरी कहानी बताई। उन्होंने बताया कि वह 11 साल की उम्र से यौन शोषण का शिकार हो रहे थे, जब वो पादरी डोनल्ड जे मग्वायर (अब मर चुका है) के लिए काम करते थे। मग्वायर की मौत 2017 में जेल में हुई थी। उसे गोल्डबर्ग के अलावा अन्य लड़कों के यौन शोषण के लिए 25 साल की सज़ा सुनाई गई थी। बाद में वह मदर टेरेसा का आध्यात्मिक सलाहकार बन गया था।
बहरहाल, सबूतों या दस्तावेज़ों का न होना हो या मीडिया का झुकाव इस और ज्यादा न हो जिसकी वजह से इन आलोचनाओं को कभी बल नहीं मिल सका। नतीजतन मदर टेरेसा पर लगे सभी आरोप सिर्फ किताबों और दस्तावेजों में ही सिमट कर रह गए। जिसकी वजह से मदर टेरेसा के विरोधियों से ज़्यादा उनके समर्थक और प्रशंसक हमेशा बने रहे। -दीपक कौल