सच है कि युद्ध और प्यार मे सब कुछ जायज है और राजनीति से बड़ा कोई युद्ध नही है जहां कब किस मोहरे को कहां इस्तेमाल करना है इस पर सारी बात निर्भर करती है। ईमानदारी वैसे तो एक शब्द है।
संपादकीय । राजनीति संभावनाओं का खेल है और भविष्य की संभावनाएं जिंदा रखने के लिए इस खेल को अंतिम क्षण तक खेलना सियासतदारों की मजबूरी भी है और जरूरी भी। इस नई संभावनाओं की प्रयोगस्थली बन रहा है दिल्ली। जहां होने वाले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ अमित शाह की साख भी दांव पर लगी हुई है। साल 2020 नया साल और नए साल का पहला चुनाव देश के दिल कहे जाने वाले दिल्ली में है।
सत्ता बदले या सरकार, मुद्दे बदले या विचार, चुनाव आयोग का नजरिया बदले या मीडिया के चुनाव कवरेज का तरीका, अगर नही बदला है तो सिर्फ़ मतदाताओ को उलझा कर उनको विकास के सपने दिखाकर, रोजगार के नये अवसरो को पैदा करने का आश्वासन देकर, मुफ़्त का राशन, पानी, बिजली देने का झांसा देकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटियों को सेंक सत्ता का भोग करना! राजनीति में आजकल फ्री का चल बहुत तेजी से फैल रहा है। और एक बार फिर दिल्ली के सबसे बड़े घमासान के लिए जमीन तैयार हो रही है और सबसे बड़ी जंग में हर महारथी अपना सबसे धारदार हथियार आजमाने की कोशिश में है...ऐसे में चर्चा ये भी चल पड़ी है कि आखिर किसके चुनावी वादों का रंग कितना चोखा होगा और किसके वादों का रंग सिर्फ और सिर्फ धोखा होगा।
ये सच है कि युद्ध और प्यार मे सब कुछ जायज है और राजनीति से बड़ा कोई युद्ध नही है जहां कब किस मोहरे को कहां इस्तेमाल करना है इस पर सारी बात निर्भर करती है। ईमानदारी वैसे तो एक शब्द है। लेकिन इस शब्द की ताकत के सहारे ही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी एक समय दिल्ली के दिलों को जीत कर सत्ता पर काबिज हुई थी। पिछले 5 साल से अरविंद केजरीवाल दिल्ली में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, बेहतर शिक्षा, फ्री बिजली, फ्री पानी के साथ बेहतर सड़कों की बात कर रहे हैं। यहां तक कि चुनाव के कुछ दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा और फ्री मेट्रो सेवा का प्रस्ताव भी रखा। केजरीवाल लगातार दिल्ली के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं जिसमें मोहल्ला क्लीनिक, बेहतर शिक्षा, हाईटेक स्कूल में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग, फ्री बिजली और फ्री पानी की बातें करते दिखे। दिल्ली में औपचारिक चुनाव प्रचार की शुरुआत भी केजरीवाल इन्हीं मुद्दों पर करते नजर आए। लेकिन पिछले चार-पांच दिनों से केजरीवाल दिल्ली की जनता में 'बेचारा' की छवि पेश करने में लगे हैं।
आखिर चुनाव के बीच में ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल अपने उन मुद्दों के साथ-साथ बेचारा की छवि से चुनाव लड़ना चाहते हैं। वहीं बीजेपी ने एकतरफा माने जाने वाले दिल्ली के चुनाव को शाहीन बाग और राष्ट्रवाद के सहारे अलग ही रूख दे दिया है। सियासत में हवा का रूख मोड़ कर उसे अपने मनचाही लहर का रूप देने में सक्षम अमित शाह ने प्रचार की कमान खुद अपने हाथों में थामी और देखते ही देखते दिल्ली की सियासत बदलने लगी। रही-सही कसर बीजेपी के नेताओं के अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी और नक्सली कहने भर से पूरी हो गई और केजरीवाल को बेचारा बनने का मौका मिल गया।
चुनाव में शुचिता की बात करना वैसे तो बेमानी होगी। लेकिन साफ और स्वच्छ छवि और अलग तरह की राजनीति की बात करने वाले दलों के लिए इसका भी उल्लेख कर आइना दिखाना जरूरी है। चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों को लेकर एक रिपोर्ट दी है। जिसके मुताबिक दिल्ली के लिए चुनाव लड़ने वाले 104 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें आम आदमी पार्टी के सबसे ज्यादा 36 उम्मीदवार शामिल हैं। एडीआर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कुल 672 उम्मीदवारों में 133 (20 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने शपथपत्र में अपने खिलाफ आपराधिक मामले का उल्लेख किया है। एडीआर के अनुसार, 'इस सूची में भाजपा दूसरे स्थान पर है, जिसके 67 उम्मीदवारों में से 17 (25 प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। कांग्रेस के 66 उम्मीदवारों में से 13 (20 प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में नेताओं के बिगड़े बोल बढ़ते जा रहे हैं। नेताओं के विवादित बयान अपने चरम पर है। वैसे तो सबसे सुस्त माने जाने वाले जीव को कछुआ कहते हैं। इसकी रफ्तार दुनियाभर में मशहूर है। लेकिन इसकी रफ्तार को भारत के एक आयोग ने मात दे दी। इस आयोग को चुनाव आयोग कहते हैं। बीजेपी नेता बयानबाजी में कहां पीछे रहने वाले थे। आम आदमी से बीजेपी में आए केजरीवाल के करीबी रहे कपिल मिश्रा ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए ट्वीट किया “केजरीवाल हनुमान चालीसा पढ़ने लगे हैं, अभी तो ओवैसी भी हनुमान चालीसा पढ़ेगा। ये हमारी एकता की ताकत है। ऐसे ही एक रहना है। इकट्ठा रहना है। एक होकर वोट करना है। हम सबकी एकता से 20% वाली वोट बैंक" की गंदी राजनीति की कब्र खुदकर रहेगी।”
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ये वही कपिल मिश्रा हैं जिनके विवादित बयानों की वजह से एक बार उन पर चुनाव आयोग बैन भी लगा चुका है। दिल्ली में चुनाव हुआ तो लगा कि नेतागण स्कूल की बात करेंगे, रोटी-रोजगार की बात करेंगे और अस्पताल की बात करेंगे। आदित्यनाथ तो योगी हैं जीभ, जुबान और जज्बात पर नियंत्रण के प्रवचन देते हैं फिर आखिर वो चुनावी सभा में बोलते-बोलते कैसे चूक गए। क्या कहा योगी ने भी सुन लीजिए।
भारत के गणतंत्र बनने के एक दिन पहले चुनाव आयोग का गठन किया गया था। जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त किया गया था। लेकिन 1950 से लेकर आज तक चुनाव आयोग की तरफ से बड़बोले नेताओं के प्रचार पर कुछ घंटे की रोक लगाने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं रहता है। हिंदुत्व, विकास या फिर अपने बिरादरी से आने वाले मतदाता जैसे कई बिंदु दिल्ली चुनाव का मुख्य मुद्दा बना हुआ है। अरविंद केजरीवाल के लिए भाजपा और कांग्रेस कड़ी चुनौती बनी हुई हैं। अरविंद केजरीवाल के फ्री बिजली-पानी, विकास जैसे मुद्दों के जवाब में भाजपा शाहीन बाग में चल रहे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन को अपने चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।
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इन सब के बीच जनता के मुख्य मुद्दे चुनावी परिधि से लगभग गुम हो गए हैं। अगला चुनाव आएगा, कब चुनावी घोषणा होने से पहले सड़कें ठीक हो जाएंगी। चौबीस घंटें बिजली और पानी की व्यवस्था हो जाएगी और फिर से शुरू हो जाएगाा किए गए कामों की गिनती कराना और आने वाली सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए नए वादों को परोसना क्योंकि किसी ने सच ही कहा है की चुनाव उस बारिश की तरह है जो आने के कुछ समय पहले अपनी भीनी खुशबू में लोगों को मदमस्म्त कर देती है और जब ये बारिश तेज होती है इसमें भीगने का मजा भी आता है। लेकिन बाद मे वैसा ही रहता है जैसा की बारिश के बाद का कीचड़।बहरहाल, दिल्ली देश की राजधानी है और यहां के चुनाव पर पूरे देश की नजर रहती है और इस चुनाव में जिस तरह की कटुता बयानों के जरिए देखने को मिली है इसका आने वाले अन्य राज्यों के चुनाव पर भी असर देखने को मिल सकता है।