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नईदिल्ली । दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में 8 फरवरी को सुबह 7 बजे से मतदान हो रहा है। मतदान की रफ्तार बेहद धीमी कही जा सकती है, क्योंकि सुबह से लेकर शाम 3 बजे तक महज 30-31 फीसदी मतदान ने पक्ष और विपक्ष दोनों की भावनाओ और संभावनाओं दोनों को आहत किया है। पारंपरिक रूप से औसत से कम मतदान को सत्तासीन दल के पक्ष में हुआ मतदान करार दिया जाता है।
लेकिन दिल्ली में ध्रुवीकरण की राजनीति इस कदर हावी रही है, उसकी तुलना में दिल्ली चुनाव में सुबह 7 बजे से 3 बजे तक हुए सुस्त मतदान की रफ्तार चुनावी विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। अगर मतदान खत्म होने तक ऐसा ही सुस्त रफ्तार कायम रहा तो नतीजे वाले दिन यान 11 फरवरी को ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।
गौरतलब है दिल्ली चुनाव में बीजेपी के आक्रामक रुख अख्तियार करने से पूर्व लग रहा था कि केजरीवाल एंड पार्टी बिना किसी अवरोध के दोबारा सत्ता में काबिज होने जा रही है, क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने केजरीवाल के मुकाबले पिछले 7 वर्षो में दिल्ली को कोई नेता तैयार नहीं किया थ।
यही कारण है कि दिल्ली में कांग्रेस पूर्व दिल्ली सीएम दिवंगत शीला दीक्षित के नाम पर वोट मांग रही थी और बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव अभियान में उतरी है। कांग्रेस और बीजेपी की इन्हीं कमियों को देखते हुए चुनावी रणनीतिकार और विश्लेषकों ने केजरीवाल बनाम कोई नहीं का नारा बुलंद किया और केजरीवाल ने भी खुद को जीता हुआ मान लिया।
लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव की अधिसूचना के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जब दिल्ली की बागडोर संभाली तो सुस्त पडी दिल्ली की राजनीतिक भट्टी ने आग उगलने शुरू कर दिए। शाहीन बाग में पिछले एक महीने से जारी सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और दिल्ली की जनता को हो रही परेशानी पर सवाल उठाते हुए अमित शाह ने केजरीवाल पर निशाना साधना शुरू किया।
देखते ही देखते दिल्ली की फि़जा बदल गई। फिर शाहीन बाग को लेकर शुरू हुए आरोप-प्रत्यरोप से तराजू के पाले पर ऊपर उठ हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का पलड़ा अमित शाह के जुबान और वजन के आगे नीचे झुकने को मजबूर हो गया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में तूफानी बदलाव हो चुका था और चुनाव बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी हो गया। बीजेपी राष्ट्रवाद को लेकर आक्रामक थी, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री हनुमान चालीसा पढ़ने लग गए। बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनमाव में अनुच्छेद 370, ट्रिपल तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक जैसे राष्ट्रवादी मुद्दों से केजरीवाल पर हमला कर रही थी।
बीजेपी के हमले से परेशान होकर और हिंदू वोटरों के छिटकने के डर से केजरीवाल टेंपल रन करने पहुंच गए। केजरीवाल पर आरोप लगता रहा है कि वो शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ धऱने की फंडिंग में शामिल हैं, क्योंकि दिल्ली चुनाव के हफ्ते पहले तक केजरीवाल ने शाहीन बाग को लेकर टिप्पणी करने से बचते रहे थे।
हालांकि उनके डिप्टी सीएम मनीष ऊहापोह में थे। कभी शाहीन बाग को सपोर्ट करते नजर आए तो कभी अलग खड़े होने का नाटक करते रहे। ये वही सिसोदिया हैं, जिन्होंने जामिया प्रदर्शन के दौरान भ्रामक ट्वीट करके दिल्ली पुलिस के एक जवान को बस में लगाने का आरोप लगाया था और जब वीडियो मे सच का खुलासा हो तो सिसोदिया को अपना ट्विट तक डिलीट करना पड़ा था।
जामिया में हुए सीएए के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन और सिसोदिया प्रकरण से सिसोदिया समेत पूरी आम आदमी पार्टी को फजीहत का सामना करना पड़ा। शाहीन बाग प्रदर्शन में आप नेता व राज्यसभा सासंद संजय सिंह पर पीएफआई से संपर्क का आरोप लगा है। आरोप है कि शाहीन बाग की फंडिंग में पीएफ का हाथ है।
ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में इस बार की जंग अनोखी होगी, ठीक वैसा ही जैसा वर्ष 2015 दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल एंड पार्टी ने रिकॉर्ड 67 सीट जीतकर इतिहास रचा था। इसलिए अभी किसी के लिए यह कह पाना मुश्किल होगा कि कौन सा दल 11 फरवरी को आने वाले नतीजे में बाजी मार सकता है।
हालांकि कुछ मीडिया चैनलों के ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी को जीता हुआ दिखाया गया है, लेकिन दिल्ली में मतदान के सुस्त रफ्तार को देखते हुए लग रहा है कि एक बार सर्वे, ओपनियन पोलों को पोल खुलने वाली है।
चुनाव में जीत और हार का दारोमदार काफी हद तक वोट शेयर निर्भर करता है कि किस पार्टी को कितना वोट मिला। वर्ष 2013 और वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों ने इन पैमानों पर पानी फेर दिया था। दोनों ही विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर के औसत में महज 1 फीसदी का अंतर था, लेकिन बीजेपी के सीटों में बड़ा अंतर देखा गया। वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव में 32 फीसदी वोटों पर कब्जा करने वाली बीजेपी नंबर वन पार्टी बनते हुए 31 सीटों पर कब्जा किया था और वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव में 31 फीसदी वोटों पर कब्जा करने के बावजूद बीजेपी 31 से 3 सीटों पर पहुंच गई थी। इसलिए यह पैमाना भी दिल्ली में फेल हो गया।
वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP)को 30 फीसदी वोट मिले थे और 2015 में उसके वोट शेयर बढ़कर 54 फीसदी हो गए थे, क्योंकि कांग्रेस के सारे वोट केजरीवाल एंड पार्टी को ट्रांसफर हो गए थे और बीजेपी के वोट शेयर का महज 1 फीसदी शेयर ही केजरीवाल एंड पार्टी को हासिल हुआ था। चूंकि वोटिंग ऐसी हुई थी कि बीजेपी को अपनी सीटों को बहुत कम अंतर से गंवाना पड़ गया था। कांग्रेस का वर्ष 2013 विधानसभा में वोट शेयर 25 फीसदी था जबकि 2008 विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर 40 फीसदी था और तब उसने 43 सीटों पर कब्जा किया था, लेकिन 2015 में 25 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस की सीटें 43 से घटकर 8 पर पहुंच गईं।
2014 लोकसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी का वोट शेयर 46 फीसदी था और उसने दिल्ली की कुल सातों सीटों पर कब्जा जमाया। इसी तरह 2019 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन इस बार उसका वोट शेयर 56 फीसदी पहुंच गया था, लेकिन यह चौंकाऊ था जब 2015 विधानसभा चुनाव में आप के वोट शेयर 24 फीसदी बढ़कर करीब 54 फीसदी हो गया उसने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 67 सीटें हासिल कर विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा, उसे 10 फीसदी से भी कम वोट मिले और उसे एक भी सीट नहीं मिली। भाजपा महज तीन सीटों पर सिमट गई।
वर्ष 2017 में दिल्ली नगर निगम चुनाव हुए और कांग्रेस का वोट शेयर 10 फीसदी से भी कम पर पहुंच गया, लेकिन 2017 के नगर निगम और 2019 लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर 20 फीसदी से ज्यादा रहा। दोनों चुनावों में आप को जबरदस्त झटका लगा। निगम चुनाव में आप को कांग्रेस ने तगड़ा नुकसान पहुंचाया। 2015 चुनाव में झटका खाने के बाद कांग्रेस ने जबरदस्त मेहनत करते हुए दमदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-आप के बीच गठबंधन की कोशिश हुई, लेकिन परवान नहीं चढ़ सकी, क्योकि कांग्रेस दिल्ली में नंबर टू की हैसियत से चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाहती थी, जिसका उसे फायदा भी मिला। वह पांच लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। आप दो सीटों पर नंबर दो पर आई। हालांकि तीन सीटों पर कांग्रेस और आप के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी और भाजपा ने सातों सीटों पर कब्जा जमाया।
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 22.5 फीसदी रहा था, लेकिन दो साल पहले हुए निगम चुनाव में आप का वोट शेयर 26 फीसदी से गिरकर 18 फीसदी पर पहुंच गया था जबकि भाजपा ने वोट शेयर में 10 फीसदी का इजाफा किया था और उसके वोट शेयर 46 से 56 फीसदी तक पहुंच गए थे। इस दौरान 70 विधानसभा सीटों में से 65 में भाजपा सबसे आगे रही जबकि बाकी पांच सीटों पर कांग्रेस आगे रही और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक चुकी थी। यही वह कारण है, जिससे ताल ठोंकते हुए पूर्व बीजेपी राष्ट्रीय अक्ष्यक्ष अमित शाह दिल्ली में मतदान की पूर्व संध्या पर बीजेपी के दिल्ली चुनाव में 45 सीट जीतने का दावा किया।
1 फरवरी को होगा दूध का दूध और पानी का पानी!
11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे और उस समय सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। अभी यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि किसका पलड़ा भारी रहेगा। हालांकि पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली की सियासत में काफी कुछ बदला है। पिछले पांच सालों में आम आदमी पार्टी में भारी उथलपुथल मची रही और कई बड़े चेहरे पार्टी से दूर हो गए। केजरीवाल पर तानाशाही और मनमानी के आरोप लगे, जिसे ढंकने के लिए केजरीवाल ने चुनाव के छह महीने पहले ही महिलाओ के लिए मुफ्त बस सेवा जैसे लोकप्रिय घोषणाओं से अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की। वहीं, भाजपा ने भी मुकाबले में लौटने की पूरी कोशिश करते हुए अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला और कमान मनोज तिवारी को दी। कांग्रेस ने भी रणनीति बदलते हुए प्रदेश अध्यक्ष को बदलकर पुराने दिनों की वापसी का पुरजोर प्रयास किया है।
हालांकि दिल्ली चुनाव के परिणामों को लेकर सर्वे, ओपनियन पोल ही नहीं, सट्टा बाजार के अनुमान ने भी रोचक बना दिया है। सट्टा बाजार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के हर सीट के अनुमान लगाया है, जो पूर्व बीजेपी अध्यक्ष और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह के दावों के बिल्कुल करीब हैं। अगर सट्टा बाजार के अनुमान को नतीजा मानें तो दिल्ली में इस बार केजरीवाल को 21 सीट और कांग्रेस को कुल 3 सीटें मिलती हुईं दिख रही हैं जबकि बीजेपी नंबर पार्टी बनकर उभर सकती है, जो कुल 46 सीटों पर विजय पताका फहरा सकती है। हालांकि यह सिर्फ अनुमान है और नतीजे तो दिल्ली के उंगुली से ही तय होंगे, जो 8 फरवरी शाम 6 बजे तक वैलेट ईवीएम में बंद हो जाएंगे और 11 फरवरी को असली नतीजे आएंगे।