(दीपक कौल) आप,15 वी शताब्दी के एक महान संत ,दर्शनशास्त्री,कवि ,समाज सुधारक ,और ईश्वर के अनुयायी थे |र्निगुण संप्रदाय अर्थात संत परम्परा मे एक चमकते नेतृत्वकर्ता और प्रसिद्ध व्यक्ति थे | उत्तरभारतीय भक्ति आन्दोलन को नेतृत्व देते थे |
गुरु रविदास का जन्म 1377 विक्रम संवत मे ,वाराणसी के गोवर्धनपुर गँ|व मे हुआ था | कुछ अध्येता इनके जन्म को लेकर अलग -अलग मत रखते है फिर भी सभी के मतानुसार गुरु जी का जीवन काल 15वी से ,16 वी शताब्दी ,अर्थात
1420 से 1520 के बीच रही, मानी जा रही है |
संत शिरोमणि रविदास के पिता का नाम संतोखदास जी तथा माता का नाम कालसा देवी जी था | पिता सरपंच थे और चमड़े के जूते बनाने का कार्य भी करते थे | बाद मे यही कार्य रविदास जी बड़ी लगन व ईमानदारी से किये |
बचपन मे पाठशाला मे दाखिला लेने के समय उच्च जाति के लोगो द्वारा विरोध किया गया | उसी पाठशाला के गुरु ने बच्चे की आभामंडल से यह पहचान गये थे कि यह साधारण बालक नही है ,और बालक रविदास का स्कूल मे प्रवेश हो गया |वह गुरु थे पं.शारदानंद | बाद मे शारदानंद जी के हमउम्र पुत्र से रविदास की मित्रता हो गई थी | दोनो खाली समय मे खेलते भी थे |
एक बार जब दोनो लुकाछिपी खेल रहे थे ,तो पहली बार रविदास जीते ,देसरी बार उनका मित्र जीता अगली बारी फिर रविदास जी का आया ,लेकिन अंधेरा होने के कारण वे आगले दिन जारी रखने के फैसले के साथ अपने -अपने घर चले गये |
अगले दिन रविदास जी उस स्थान पर समय पर पहुंच गये लेकिन उनका मित्र काफी देर इन्तजार के बाद भी नही आया ,तब वह खुद ही उस मित्र के घर की ओर चल पड़े | घर पहुंचने पर उन्होने देखा कि मित्र के माता -पिता सहित वहँ| मौजूद सारे लोग रोये जा रहे थे , पूछने पर उन्हे पता चला कि उनका मित्र मर चुका है ! वह विचलित नही हुए| मित्र के पिता पं.शारदानंद तब रविदास को अपने मृत पुत्र के पास ले गये |
शं|तचित्त रविदास जी अपने मृत, मित्र के चेहरे पर नजर डालते हुए बोले "तुम सो रहे हो ,यह सोने का समय नही है ,लुकाछिपी खेलने का समय है ,उठो और चलो "| और फिर चमत्कार हो गया ,उनका मित्र उठ खड़| हुआ !,आश्चर्य से सभी, बालक रविदास के संतमयी चेहरे को देखने -समझने का प्रयास करन लगे | तभी से रविदास जी संत के रूप मे लोगो की सेवा मे जुट गये और कालान्तर मे संत शिरोमणि बने|
सच्चे मन के स्वामी संत जी की ख्याति पूरे जगत मे है ,जिससेउन्हे जगत गुरु भी कहा जाता है | मीरा बाई इनकी शिष्या बनी और कृष्ण भक्ति मे लीन रही | वह भारत के एक प्रख्यात राजघराने की राजकुमारी और बाद मे रानी भी बनी ,अपनी शादी के बाद लेकिन संत रविदास की भक्ति तेज का ही असर रहा था जो गुरु रविदास के आशीर्वाद को प्राप्त करके कृष्ण की दीवानी कहलायी |
संत रविदास के कुछ दोहे .. .
जाति-जाति है ,जो के तन पात ,
रैदास मनुष ना जुड़ सके ,जब तक जाति न जात ||
मन चंगा तो कठौती मे गंगा |
मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊ सहज सरूप ||
ऐसे संत शिरोमणि के जयन्ती समारोह मे आज गँ|व ,शहर मे शोभा यात्राए व भजन - पाठ सहित विभिन्न कार्यक्रम हो रहे है | उल्लास व भक्तिमय माहौल मे चहुंओर जयन्ती समारोह मनाये जा रहे हैं |
जगतगुरु संत रविदास के 643 वे जयन्ती पर ,आपको कोटि-कोटि नमन
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February 10, 2020
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