बस्ती। पैगम्बरे-इस्लाम की बेटी हजरत फातिमा जहरा के जन्मदिवस के अवसर पर गांधी नगर स्थित इमामबाड़ा शाबान मंजिल में जश्ने-जहरा का आयोजन हुआ। शायरों ने अहलेबैत-ए-रसूल की शान में मनकबत पेश किया। वक्ताओं ने हजरत फातिमा के जीवन पर प्रकाश डाला और महिलाओं से उनके जीवन से प्रेरणा लेने को कहा।
जौनपुर से तशरीफ लाए शायर मुदस्सिर जौनपुरी ने सुनाया ‘और ऊंचा हुआ जमाने से-दर पे हैदर के सिर झुकाने से, मुश्किले दूर हो गई सारी-घर में फर्शे अजा बिछाने से’। उनके इस कलाम को लोगों ने खूब सराहा। डॉ. आफताब रजा जलालपुरी ने सुनाया ‘फलक नशीं जो खाते नहीं कभी रोटी-जमी से ले गए जहरा के हाथ की रोटी’। कलीम बिजनौरी जब कलाम सुनाने के लिए माइक पर पहुंचे तो अकीदतमंदों ने नारए-हैदरी से उनका स्वागत किया। उन्होंने सुनाया ‘सूरए कौसर तेरी तफसीर पाने के लिए-अश्र पर पहुंचे नबी जहरा को लाने के लिए’। रमीज बस्तवी ने सुनाया ‘ऐसी कोई शै नहीं दुनिया में जो फानी न हो- लाओ एक इंसान जिसने बात ये मानी न हो’। संचालन कर रहे सुहेल हैदर बस्तवी ने सुनाया ‘नबी इनसे, अली इनसे, हसन इनसे, हुसैन इनसे-अगर जहरा नहीं होती तो फिर दुनिया में क्या होता’।
मौलाना अली हसन ने अपने खिताब में कहा कि इस्लाम का संदेश अगर पैगम्बर लाए तो इसकी हिफाजत के लिए फातिमा जहरा और उनकी आल ने अपनी कुर्बानियां दी हैं। पैगम्बर ने समय-समय पर अपनी आल को दुनिया के सामने पहचनवा। हजरत फातिमा की अजमत का आलम यह था कि पैगम्बर खुद उनकी ताजीम को खड़े हो जाया करते थे। घर पर आए भूखे को रोटियां दे दीं तथा तीन दिनों तक पानी पीकर परिवार के साथ रोजा रख लिया। शादी के समय जो एक जोड़ा कपड़ा पिता ने दिया था, उसे एक जरूरतमंद महिला को दान कर दिया। एक बेटी, मां व पत्नी के रूप में उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया।
डॉ. बीएच रिजवी, जीशान रिजवी, अन्नू, सफदर रजा, हसनैन रिजवी, फरहत हुसैन, शमसुल हसन काजमी, मो. रफीक, जर्रार हुसैन, शम्स आबिद, सरवर हुसैन, मेंहदी हसन सहित अन्य कार्यक्रम में शामिल रहे।