नयी दिल्ली । समाज सेवी बबिता शुक्ला ने दिल्ली हिंसा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा इस हिंसा में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. उन्होने कहा . नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर दिल्ली में भारी उपद्रव किया जा रहा है। उपद्रवी बड़ी बेरहमी के साथ आम लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोगों के घरों पर पत्थर फेंके गए, आग लगाई गई। यहां तक कि पेट्रोल पंप को भी आग के हवाले कर दिया गया। विरोध के नाम पर ये लोग इतने आक्रोशित हो गए हैं कि इन्हें किसी की जान लेने में भी गुरेज नहीं हो रहा है। उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग में हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की जान चली गई। हिंसा में मोहम्मद फुरकान नामक शख्स की भी जान चली गई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर विरोध प्रदर्शन के नाम पर उपद्रवियों की हिंसा को जायज कैसे ठहराया जा सकता है।
उन्होने कहा इन सारी बातों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि उपद्रव की भेंट चढ़े कॉन्स्टेबल रतन लाल की मौत का जिम्मेदार कौन है। आखिर वह तो भारत के नागरिक थे। वह तो अपनी सेवा दे रहे थे। ऐसे में भला तथाकथित तौर पर अपनी नागरिकता बचाने की लड़ाई लड़ने वालों ने कैसे उनकी जान ले ली।
उन्होने कहा हमारा संविधान सरकार के द्वारा बनाए गए किसी भी कानून या फैसले के प्रति विरोध जताने का अधिकार देता है। लेकिन विरोध के नाम पर किसी को नुकसान पहुंचाने की इजाजत कतई नहीं है। इस देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले महात्मा गांधी पूरे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंसा को हमेशा रोकने की कोशिश करते रहे। वे किसी भी सूरत में हिंसा का समर्थन करने को तैयार नहीं थे।
उन्होने कहा साल 1922 में जब उनके द्वारा छेड़ा गया असहयोग आंदोलन अंग्रेजों पर भारी पड़ रहा था तब उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक जगह पर आंदोलनकारियों ने पुलिस वालों के साथ हिंसा की थी, जिसके बाद गांधी ने आंदोलन को अचानक से बंद कर दिया था। उनका यह फैसला दर्शाता है कि वह स्वतंत्रता जैसी बड़ी सफलता के लिए भी हिंसा की एक घटना को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। गांधी से प्रेरित होकर हम विरोध तो करना सीख गए हैं, लेकिन उसके साथ अहिंसा के पाठ को अपनाना शायद भूल गए हैं।
उन्होने कहा उत्तर-पूर्वी जिले में सोमवार को हुई हिंसा में शहीद दिल्ली पुलिस के हवलदार रतनलाल (42) परिवार में कमाने वाले इकलौते थे। वे पत्नी और तीन बच्चों के साथ बुराड़ी में रहते थे। उनके शहीद होने की खबर के बाद रिश्तेदारों का उनके घर पहुंचना शुरू हो गया। उनके घर में मातम का माहौल है।
उन्होने कहा, रतन लाल मूल रूप से राजस्थान के सीकर में गांव तिहावली के रहने वाले थे। दिल्ली में वे बुराड़ी में अमृत विहार की गली नंबर 8 में पत्नी पूनम, दो बेटियों सिद्धि (13), कनक(10) और बेटे राम (5) के साथ रहते थे। पूनम गृहिणी हैं। सिद्धि 7वीं, कनक 5वीं और राम पहली कक्षा में पढ़ते हैं। तीनों बच्चे एनपीएल स्थित दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल में हैं। रतनलाल का छोटा भाई दिनेश गांव में रहता है और एक भाई मनोज बंगलूरू में नौकरी करता है।
उन्होने कहा रतनलाल वर्ष 1998 में दिल्ली पुलिस में सिपाही भर्ती हुए थे। फिलहाल वे एसीपी गोकलपुरी ऑफिस में तैनात थे। सोमवार को वे ड्यूटी पर थे तो पत्नी ने हालचाल जानने के लिए फोन किया था। पत्नी को टीवी से पता लगा था कि रतनलाल के साथ अनहोनी हो गई है। तभी से वे फोन कर रही थीं। फोन किसी ने नहीं उठाया। कुछ देर में पता चल गया कि रतनलाल शहीद हो गए हैं। यह खबर सुनकर पूनम बेहोश हो गई थीं।
रतनलाल के घर पहुची समाज सेवी बबिता शुक्ला ने कहा कि उन्हें टीवी से पता लगा है कि रतनलाल की मौत हो गई है। उनका कहना था कि पुलिसकर्मी कुछ बता नहीं रहे हैं। सुनने में आया है कि उनके सिर में गोली लगी थी, जबकि कुछ पुलिसकर्मी बता रहे थे कि रतनलाल के सिर में पत्थर लगा है।
उन्होने कहा सीएए के विरोध के नाम पर दिल्ली में हिंसा जारी है। एक हेड कॉन्स्टेबल की हत्या और डीसीपी को चोटिल कर दिया जाता है, लेकिन देश के राजनैतिक दल के नेता सोशल मीडिया पर बयान देकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जा रहे हैं।
हेड कॉन्स्टेबल की मौत पर बबिता शुक्ला ने कहा ‘पुलिस हेड कॉन्स्टेबल की मौत बेहद दुःखदायी है। वह भी हम सब में से एक थे। कृपया हिंसा त्याग दीजिए। इस से किसी का फ़ायदा नहीं। शांति से ही सभी समस्याओं का हल निकलेगा।’