मंगलवार को दिल्ली विधानसभा के चुनाव का परिणाम आ जायेगा। कोई भी पार्टी सरकार बनाये लेकिन इस चुनाव ने राजनीति में कुछ नए विमर्श पैदा किया है और इसके बाद के चुनावों पर दिल्ली के विधानसभा चुनाव की छाया साफ़ दिखाई देगी। हाल के महीनों तक बीजेपी समर्थक अपने कार्यक्रमों में तिरंगा लेकर चल रहे थे और भारत माता की जय बोल रहे थे। बीजेपी के सभी छोटे-बड़े नेता, अपने भाषण में देश सुरक्षा, देशभक्ति और मज़बूत देश का ज़िक्र करते हुए विरोधियों को ललकार रहे थे। लेकिन गत दिसंबर माह से एनआरसी-एनपीआर के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के दौरान सभी स्थानों पर तिरंगा लगा हुआ है और कई जगह लोग संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर रहे हैं। तो इस तरह से तिरंगा अब बीजेपी समर्थकों के साथ-साथ, विपक्ष और विरोध करने वालों के हाथों में भी लहरा रहा है। यह देश के प्रतीकों के जरिया अपनी लड़ाई लड़ने और वर्चस्व बनाने का भी तरीका है। इसीलिए एनआरसी-एनपीआर के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में कहीं एक नारा यह भी है कि 'जीत गए तो वतन मुबारक, हार गए तो कफ़न मुबारक। आम आदमी पार्टी की चुनाव सभा में भी भारत माता की जय के साथ देश की मजबूती का ज़िक्र आता रहा।
दिल्ली चुनाव में बीजेपी नेताओं ने राम मंदिर और हिन्दू हितों की बात की, हिन्दू वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए बार-बार आतंकवाद और पाकिस्तान का डर दिखाया। बीजेपी के एक सांसद ने जहाँ आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल को आतंकवादी कह दिया, वहीँ एक केंद्रीय मंत्री की सभा में भीड़ द्वारा गोली मारने के नारे लगे। धार्मिक ध्रुवीकरण के इन तमाम प्रयासों के बीच अरविन्द केजरीवाल का एक टीवी चैनल पर हनुमान चालीसा पढ़ना और चुनाव पूर्व हनुमान मंदिर की तस्वीर मीडिया में आना महज एक संयोग नहीं है। हनुमान चालीसा और हनुमान मंदिर के ज़रिये अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली की चुनावी राजनीति को राम भक्त और हनुमान भक्त की नज़र से देखने का एक नया दृष्टिकोण दे दिया।
राहुल-प्रियंका गाँधी से लेकर कन्हैया कुमार तक, हिन्दू प्रतीकों का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं। आने वाले दिनों में विपक्ष की कोशिश होगी कि राजनीतिक बहस सनातन हिन्दू परम्परा और हिंदुत्व के बीच हो। कुछ विपक्ष के नेता अपने भाषणों में हिन्दू होने और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा बीजेपी के हिंदुत्व के बीच फर्क बताने लगे हैं। राजनितिक वर्चस्व की यह धार आने वाले दिनों में और तेज होगी। यह अनायास नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक बड़े नेता, भैयाजी जोशी ने कहा है कि बीजेपी का विरोध करने का मतलब हिन्दू विरोध नहीं है। शायद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हवा का रुख भांप लिया है।
दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी का मुख्य मुद्दा स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के सुधार पर केंद्रित था, वह अपने काम पर वोट मांग रहे थे। बीजेपी धारा 370, तीन तलाक के खात्मे पर वोट मांग रही थी। चुनाव के ठीक एक दिन पहले इस बारे में जब मैंने एक वोटर से पूछा तो उसका जवाब था- 'बीजेपी की केंद्र में सरकार है तो वह अपने काम पर वोट नहीं मांग रहे हैं, गुजरात के विकास मॉडल की कोई बात नहीं कर रहा है, उनके दो-तीन मुख्यमंत्री दिल्ली चुनाव के प्रचार में आते हैं लेकिन अपने प्रदेश का एक अच्छा काम क्या है इसका उदाहरण तक नहीं देते, तो जिसने हमारी आँख के सामने काम किया है, हम उसके साथ हैं ! इस तरह देखें तो यह चुनाव विचारधारा और विचारधारा के परे काम की राजनीति के बीच भी था।
इस चुनाव में सभी एग्जिट पोल्स आम आदमी पार्टी की तीसरी बार सरकार बनने की ओर संकेत कर रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने सभी एग्जिट पोल्स को खारिज करते हुए अपनी पार्टी के खाते में बहुमत आने का दावा किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि दिल्ली के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे। अब कुछ घंटो बाद यह साफ़ हो जायेगा कि दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी लेकिन दिल्ली चुनाव के विमर्श आने वाले दिनों में दूर तक सुनाई देंगे और राजनीति की भाषा को प्रभावित करेंगे।
-डॉ. संजीव राय