संपादकीय । कौन बनेगा करोड़पति में सितंबर 2019 के एक एपिसोड में एक करोड़ के लिए एक सवाल पूछा गया था- किनके द्वारा किये गए अनेक उपनिषदों के फारसी अनुवाद के संकलन को सिर्र-ए-अकबर के नाम से जाना जाता है? सही जवाब- दारा शिकोह था। कंटेस्टेंट को जवाब कंफर्म न होने के चलते, उसने इस सवाल पर क्विट करने का फैसला किया। इतिहास में औरंगजेब की तो खूब चर्चा हुई है पर दारा शिकोह को नजरअंदाज कर दिया गया है। इतिहास को न ही बदला जा सकता है, न ही उससे भागा जा सकता है। इसलिए आज हमने इस की सच्चाई जानने के लिए कुछ तथ्यों का सहारा लिया और स्कैन कर आपके सामने एक पूरा विश्लेषण तैयार किया है। जो कि आपको जानना बेहद ही जरूरी है। आज हमन तथ्यों के माध्यम से इतिहास को समझने की एक ईमानदार पहल करते हैं।
आज दारा शिकोह की कहानी सुनाउंगा। वो दारा शिकोह जिसे उसके पिता शाहजहां ने अगला बादशाह घोषित किया था। जिसके एक हाथ में पवित्र कुरान थी और दूसरे हाथ में उपनिषद। वो मानता था कि हिन्दू और इस्लाम धर्म की बुनियाद एक है। वो नमाज भी पढ़ता था और प्रभु नाम की अंगूठी भी पहनता था। मस्जिद भी जाता था और मंदिर में भी आस्था रखता था। लेकिन सत्ता की लड़ाई में उसे काफिर बताकर मार दिया गया। तभी से ये सवाल भी बना हुआ है कि क्या भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास अलग होता अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह भारत का बादशाह बनता।
दारा शिकोह वो मुगल शासक जिसके साथ इतिहास ने छलावा किया और गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया। उस दारा शिकोह को उसका वाजिब हक दिलाने के लिए मोदी सरकार आगे आई है। जिस दारा शिकोह ने हिन्दू धर्म ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया था। उस दारा शिकोह को इतिहास के दफ्न पन्नों से बाहर निकालने का बीड़ा मोदी सरकार ने उठाया है। जिस दारा शिकोह के साथ उसके सगे भाई औरंगजेब ने क्रूरता की हदें पार कर दी थी और उसका सिर कलम करवा दिया था,
उस दारा शिकोह की कब्र खोजने में मोदी सरकार जुट गई है। केंद्र सरकार ने दारा शिकोह की कब्र खोजने के लिए सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इस कमेटी को 3 महीने में दारा शिकोह की कब्र खोजने का जिम्मा दिया गया है। इस कमेटी में एएसआई के साथ-साथ इतिहासकारों को भी रखा गया है।
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टीम में कौन-कौन
दारा शिकोह की कब्र की सटीक जानकारी जुटाने के लिए सरकार ने एएसआई के निदेशक स्मारक टीजे अलोन के नेतृत्व में सात सदस्यों की टीम का गठन किया है। कमेटी में वो केके मोहम्मद भी शामिल हैं जिन्होंने अयोध्या में मंदिर होने के सबूत खोजे थे। टीम में मशहूर पुरातत्वविद आरके बिष्ट, सय्यद जमाल हसन, केएन दिक्षित, बीआर मणि,सतीष चंद्रा और बीएम पाण्डे भी शामिल हैं। सरकार ने इस काम के लिए टीम को तीन महीने का समय दिया है।
क्या करेगी कमेटी
सरकार ने इस काम के लिए टीम को तीन महीने का समय दिया है। संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल के अनुसार किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए तीन महीने के समय को आगे बढ़ाया जा सकता है। टीम कब्र की सटीक पहचान के लिए उस समय की शिल्पविद्या का इस्तेमाल करेगी। इसके अलावा लिखित इतिहास और अन्य जानकारी जिसे सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्यों ढूंढ़ी जा रही कब्र?
दारा शिकोह की इमेज लिबरल मुस्लिम की मानी जाती है। हिंदू और इस्लामिक ट्रेडिशन को साथ लेकर चलने वाला मुगल। दारा ने ही भगवद्गीता और 52 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया था। कहा-लिखा तो ये भी गया है कि दारा के सभी धर्मों को साथ लेकर चलने के ख्याल के कारण ही कट्टरपंथियों ने उन्हें इस्लाम-विरोधी करार दे दिया था। इन्हीं हालातों का फायदा उठाकर औरंगज़ेब ने दारा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था।
दारा के उपनिषद अनुवाद को ओबामा ने भी सराहा
पैनल के सदस्य केके मुहम्मद के मुताबिक दारा शिकोह अपने दौर का बड़ा फ्री थिंकर (स्वतंत्र विचारक) था। उसने उपनिषदों का महत्व समझा और अनुवाद किया। तब इसे पढ़ने की सुविधा सवर्ण हिंदुओं तक सीमित थी। उपनिषदों के दारा के किए फारसी अनुवाद से आज भी फ्री थिंकर्स को प्रेरणा मिलती है। यहां तक कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसको स्वीकार किया है।
1628 से 1658 पांचवें मुगल बादशाह शाहजहां का काल। ये वो काल था जब दिल्ली में लालकिला बना अपनी बेगम मुमताज महल की याद में शाहजहां ने विश्वप्रसिद्ध ताजमहल बनवाया। ये वो दौर था जब शाहजहां ने अकबर की धार्मिक उदारता और मजहबों के बीच बराबरी की नीति को बदलना शुरू किया। लेकिन उसी दरबार और महल में बैठकर शाहजहां का बेटा भारत के लिए बिल्कुल अलग किस्म की राजनीति की बात कर रहा था। वो शहजादा था सुल्तान मोहम्मद दारा शिकोह। दारा शिकोह का ध्यान पढ़ाई की तरफ ज्यादा था। आगे चलकर दारा को पढ़ाई की ऐसी लत लगी कि वो कभी धार्मिक पुस्तकों के ध्यान में डूबा रहता तो कभी जामी और रूमी जैसे महान सूफी संतों के शेर औऱ रूपाईयों में खो जाता। मुगल बादशाह शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह में भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर भरी हुई थी। वो उदारवादी और बेहद नम्र मुगल शासक थे। जो एक बड़ा लेखक भी था। दारा शिकोह सूफीवाद से बेहद प्रभावित थे। उनके मन में हर धर्म के प्रति सम्मान था। दारा शिकोह ने श्रीमत् भगवत गीता का फारसी मे्ं अनुवाद किया था। इसके अलावा उन्होंने 52 उपनिषेदों का भी फारसी में अनुवाद किया था।
दारा शिकोह की खूबियों की वजह से पिता शाहजहां उन्हें बेहद पसंद किया करते थे और अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। लेकिन दारा शिकोह के भाई औरंगजेब को ये कतई मंजूर नहीं था। दिल्ली सल्तनत हासिल करने के लिए औरंगजेब ने दारा शिकोह के साथ तीन-तीन युद्ध लड़े और तीनों में उसकी मात हुई। बाद में औरंगजेब दारा शिकोह को मौत की सजा देकर जबरन बादशाह बन गया।
इतिहास में औरंगजेब की खूब चर्चा हुई है और दारा शिकोह को नजरअंदाज कर दिया गया है। सच्चे मायने में एक धर्मनिरपेक्ष मूर्त वाले दारा शिकोह को काफिर तक करार दिया गया था। इतिहासकारों ने भी औरंगजेब का ही महिमामंडन किया। लेकिन दारा शिकोह को वो पहचान नहीं दी जिसका वो हकदार था। देशभर में औरंगजेब के नाम से तमाम सड़के मिल जाएंगी। लेकिन दारा शिकोह के नाम पर एक स्मारक तक नहीं बना। हालांकि 2017 में दिल्ली के डलहौजी मार्ग का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड जरूर कर दिया गया था।
औरंगजेब ने जब साल 1659 में एक भरोसेमंद सिपाही के जरिए दारा शिकोह कलम करवा दिया था तब सिर आगरा में दफ्नाया गया था और धड़ को दिल्ली में। शाहजहांनामा के मुताबिक औरंगजेब से हारने के बाद दारा शिकोह को जंजीरों से जकड़कर दिल्ली लाया गया और उसके सिर को काटकर आगरा फोर्ट भेजा गया, जबकि उनके धड़ को हुमायूं के मकबरे के परिसर में दफनाया गया था।
यहां ऐसी तकरीबन 140 कब्रें हैं लेकिन कौन किसकी कब्र है ये लिखा हुआ नहीं है। इसलिए दारा शिकोह की कब्र की तलाश करना कोई आसान काम नहीं है। बहरहाल, भले ही कब्र तलाशने का काम मुश्किलों भरा हो लेकिन इस बहाने मोदी सरकार दारा शिकोह को एक सच्चे मुस्लिम के तौर पर पहचान दिलाने के मिशन में जुट गई है।