कहानी । रोजाना की तरह सत्या अपनी ही धुन में थी तभी उसे ऐसा लगा जैसे बाहर काम करने वाली बाई जो उम्र में काफी बड़ी थी उसने आवाज़ लगाई ,”बिटिया, मा तुम्हे बुला रहीं हैं थोड़ा सुन लो “सत्या कोचिंग के लिए तैयार हो रही थी इसलिए जल्दी से जाकर मा के सिरहाने पर पूछा, “बोलो मा, कोई बात है, उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा “स्वेटर पहन लो काफी ठंड है” सत्या ने हांथ की तरफ इशारा करते हुए दिखाया कि हांथ में लिया है पहन लूंगी, सत्या शायद अनभिज्ञ थी आने वाले संकट से जो उसकी जिंदगी से ऐसे आंचल को छीन लेने वाला था जिसकी तलाश में शायद सारा जीवन वो भटकेगी लेकिन उस आंचल की छांव का शतांश भी कहीं नहीं मिलेगा। मा की तबीयत पिछले कई महीनों से खराब चल रही थी और सत्या की बोर्ड परीक्षाएं भी गिनती के दिनों पर ही थी। सत्या को मा के चेहरे पर उस दिन एक अजीब सा दर्द दिख रहा था ऐसा लग रहा था कि बहुत कुछ कहना चाहती हो वो उससे और एक हताशा भी दिख रही थी कि किस तरह ये लापरवाह लड़की उसके बिना सब कुछ संभालेगी, उसने मा से कहा की उसे कोचिंग के लिए निकलना होगा, मा ने सिर हिलाते हुए उसे जाने को कहा लेकिन हांथ अभी भी नहीं छोड़ रही थी, सत्या ने मा के हांथ को चूमते हुए कहा कि don’t worry कुछ नहीं होगा मुझे डाक्टर बन जाने दो तुम्हारी बीमारी गायब हो जाएगी और हांथ छुड़ाते हुए उसने अपनी मामी की तरफ इशारा किया जिन्होंने बचपन से सत्या को अपने बच्चों की तरह पाला पोशा था, उन्होंने सत्या को जाने के लिए इशारा किया, वो आगे बढ़ गई अपने छोटे भाई को कहते हुए कि स्वेटर पहन लो ऐसा जैसे उसकी जिम्मेदारियों का सिलसिला शुरू हो रहा हो,,, कोचिंग में उसका मन नहीं लग रहा था बार बार उसे मा की वो आंखें सामने दिख रही थी, उसके हसमुख चेहरे के बदले भाव सबको दिख रहे थे सबने उससे पूछा ” मा की तबीयत ठीक है ना ” उसने लंबी सांस ली और ना में सिर हिलाया और अपना बैग उठा कर घर की तरफ भागी जैसे कितना कम समय हो उसके पास घर पहुंचते उसे महसूस हुआ कि अफरा तफरी मची हुई है, उसका मन काफी व्याकुल हो रहा था अब मा होश में नहीं थी ना कुछ कहने लायक, सत्या को ग्लानि हुई कि क्यों छोड़ कर वो उसे चली गई शायद कुछ और उसे कहना रहा होगा लेकिन अब शायद समय नहीं था कुछ कहने और सुनने का, सब कुछ वैसा ही था जैसे पहले लेकिन जो हो रहा था उसकी वजह से सब कुछ भयावह सा लग रहा था, लेकिन फिर भी सत्या को यकीन था कि ऐसा भगवान नहीं कर सकता दो बच्चों के सिर से मा का साया इतनी जल्दी नहीं छीन सकता सत्या मा के साथ काफी देर तक कस्बे के हॉस्पिटल में थी, मा को जैसे ही होश आए वो उससे छोटे भाई जो अभी बहुत छोटा था उसके बारे में पूछती और यही कहती उसका ध्यान देना लड़ाई मत करना दोनों, सत्या को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे दिसंबर की कपकपाती ठंड में चारो तरफ उसे आग लगी हुई दिख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ खतम होने वाला हो और वो मा से यही कह रही थी बार बार तुम ठीक हो जाओ अब मै तुम्हारा सारा काम करूंगी तुम्हारी सारी बात मानूंगी लेकिन शायद अब समय उसकी नहीं सुन रहा था तबीयत और बिगड़ती गई, डॉक्टर ने शहर के लिए रेफर किया सबने सत्या को कहा कि तुम घर पर रहो भाई के साथ हम सब हैं। जैसे जैसे रात बीत रही थी सत्या की सांसे ऊपर नीचे हो रहीं थी घड़ी की सुइयां भी जैसे धड़कनों के साथ युद्ध कर रही हों। सुबह के 5बजे दरवाजे पर दो तीन गाड़ियों के रुकने की आवाज सुनाई दी, भय इतना कि सत्या अपनी जगह से हिल नहीं रही थी सांसे इतनी तेज मानो आंधियों से बातें कर रहीं हो, इंतजार उसे ये की कोई आए और ये कह दे कि एडमिट कर दिया गया है ठीक हो जाएंगी जैसा कि कई बार हुआ था। लेकिन इस बार नियति कुछ और ही सोच कर बैठी थी। गाड़ियों के रुकते ही रोने की आवाज आने लगी उसका ह्रदय जैसे उसके शरीर से बाहर निकल रहा हो, उसकी मासी ने दरवाजा खोलते उसे सीने से लगा लिया और रोने लगीं, सत्या समझ गई थी की आज वो साया उसके सिर से हट चुका था जिसके आंचल तले वो आकर छुप जाती थी, वो आंचल उसके सिर से हट चुका था जो कन्यादान करते समय एक मा अपने बेटी के सिर पर रखती है और उसे ये आश्वासन देती है कि दुनिया तुझे सिर छिपाने के लिए अगर जगह नहीं देगी तो मै तेरी मा इस दुनिया में जब तक हूं तब तक दुनियां की हर बला से तुझे छिपा लूंगी, वो साया ईश्वर ने छीन लिया था जो उसके सारे गमों के आंसुओं को जगह देने वाला था।शायद उसके पास प्यार करने वालों की कमी भी नहीं थी मा के रूप में उसकी तीन मामियां, चाची और एक मासी थीं जिनकी वो लाडली थी, वो उसे मा से ज्यादा प्यार करती लेकिन जिस शरीर से उसका शरीर बना था आज वो इस दुनियां में नहीं ये सच वो स्वीकार नहीं कर पा रही थी, उम्र का वो पड़ाव जहां एक लड़की को सबसे ज्यादा उसकी मा का साथ चाहिए होता है नसीब उससे छीन चुका था। वो लिपट कर मा के शरीर को जगा रही थी लेकिन अब सांसे उसे महसूस नहीं हो रही थी। छाती से लिपटने पर उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था वो चिल्लाए जा रही थी कि एक बार उठ जाओ मा, मत जाओ ऐसे छोड़ कर अब तुम्हे परेशान नहीं करूंगी जो कहोगी खाऊंगी पहनूंगी सब करूंगी लेकिन एक बार उठ जाओ, सबने उसे अपने सीने से लगा कर चुप करवाया लेकिन मा के छाती की वो गर्माहट, उसके शरीर की वो खुशबू जिसको उसने बचपन से महसूस किया कुछ देर में अग्नि की ज्वाला में राख होने वाली थी। लाश को देखने वालों की भीड़ लगी थी, सत्या के दिमाग में कुछ चल रहा था उसके पास समय बहुत कम था, मा के शरीर से आती महक को वो कैद करना चाहती थी, सबकी नज़रों से बच के वो फिर से मा के सीने से लिपट गई और उसके शरीर पे डले दुपट्टे को धीरे से सबकी नज़रों से छिपा कर शॉल में लपेट कर ऊपर सीढ़ियों की तरफ भागी और कमरा बन्द कर लेती है, उस दुपट्टे को दुनिया की नजर से बचा कर लाना उसके लिए मानो कितना बड़ा काम हो लेकिन अपनी मा को महसूस करते रहने का इससे अच्छा तरीका उसे नहीं दिखा, आंसू पोछने के बाद वो मा की अलमारी खोलती है जो रंग बिरंगी साड़ियों से भरी हुई थी, ऐसा लगा उसे जैसे मा पीछे से कह रही हो “अलमारी से दूर हटो, तुम्हे जो चाहिए मै देती हूं ” आज कोई आवाज उसके पीछे नहीं थी, उसने जल्दी जल्दी उस दुपट्टे को अलमारी में छिपा दिया और बाहर निकल गई,, नीचे क्रियाकर्म के लिए लाश को सजाया जा रहा था मा का चेहरा उतना ही खूबसूरत सजा था जितना वो सजने के बाद दिखती थी, सत्या का भाई अभी सो ही रहा था किसी ने कहा कि उसे भी जगा दो देख ले, सत्या सिर्फ यही सोच रही थी कि अगर पता होता मा की तुम छोड़ कर चली जाओगी उसे तो मै उसके लिए तुमसे लड़ाई ना करती, करने देती तुम्हे उसे ढेर सारा प्यार तुमसे कोई शिकायत ना करती कि तुम उसे ज्यादा और मुझे कम मानती हो और भाई को अपनी बाहों में समेट के रोने लगी तभी दुपट्टे को खोजने की आवाज उसके कानों में आई “जीजी का दुपट्टा नहीं मिल रहा है” ये सुनते ही उसका मन जैसे चोरों की तरह छुप रहा हो उसके शरीर में, सुनते ही वो सहम सी गई और भागी ऊपर उसी कमरे में जैसे कोई खजाना छिपा हो और दुनिया उसके पीछे पड़ी हो ,,, लाश को लेकर काशी निकल गए सब पूरे घर में मातम छाया था, सत्या की आंखो से आंसू बन्द नहीं हो रहे थे, सबकी नज़रों से छिप कर वो उसी कमरे की तरफ बढ़ी और कमरा बन्द करके दुपट्टे को सीने से लगा कर ऐसा रोने लगी जैसे मा से लिपट कर रो रही हो ,काम करने वाली ने उसकी मामी को बताया कि बच्ची बहुत देर से रो रही हैं खिड़की से उसकी मामी ने जो देखा उससे उनका कलेजा सहम सा गया जिस दुपट्टे को सब खोज रहे थे उस दुपट्टे को तकिए से लगा कर उससे लिपट कर सत्या रो रही थी। दरवाजा खुलवाने पर उसे सबने कहा कि ये गलत है जो मर गया है उसके शरीर का कपड़ा नहीं रखना चाहिए तुम उसे दे दो लेकिन सत्या किसी बात को नहीं मान रही थी उसने कहा “मै भी हूं उसके शरीर का अंश मुझे भी तब जला दो अगर कुछ भी नहीं रखना चाहिए तो ,लेकिन इस दुपट्टे की महक मुझे रखनी है” सभी रो रहे थे उसके बचपने और पागलपन पर लेकिन वो उस दुपट्टे को छोड़ नहीं रही थी उस महक से दूर जाना नहीं चाहती थी क्योंकि उस दुपट्टे से लिपटने पर उसे ऐसा लगता जैसे मा ने उसे अपनी बाहों में ले लिया हो ,,,, फिर भी दुनिया के बनाए कुछ नियम ऐसे हैं जिनके सामने भावनाओं को झुकना पड़ता है ,उसके नाना ने समझाया की वो तुम्हारी मा थी उसका साया उसकी महक तुम्हारी सांसों में है वो तुमसे कभी अलग नहीं हो सकती। इस तरह सत्या इस सत्य को मानते हुए अपने भाई को गले से लगा कर नाना के सीने से लिपट जाती है।
-प्रीति उपाध्याय