घने जंगलों में ईसुरा पहाड़ की गुफा में बने इस शिवमंदिर में पट खुलते ही पुजारी को शिवलिंग का 21 मुखी, 11 मुखी 7 मुखी बेलपत्रों और चावल, फूलों से अभिषेक हुआ प्रतिदिन मिलता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच बसे ईश्वरा महादेव का रहस्य वर्षों बाद भी नहीं सुलझ सका है।
धर्म । धार्मिक दृष्टि से भारत विचित्रताओं का देश है। भगवान शिव मंदिरों के अनेक रहस्य, किवदंतियां, कथाएं देखने सुनने को मिलती हैं। भारत में हमें शिव भगवान शिव के कई मंदिर देखने को मिलते हैं। केदारनाथ, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, अमरनाथ, लिंगराज आदि शिव मंदिरों पर रोजाना अधिक भीड़ देखने को मिलती है। प्रत्येक मंदिर अपने-अपने इतिहास के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। लेकिन भगवान शिव के कुछ ऐसे मंदिर भी है जिनके बारे में लोगों को पता नहीं होगा। आज हम हमको ऐसे ही एक मंदिर के बताने जा रहे हैं जिसकी खासियत यह है कि यहां भोलेनाथ का जलाभिषेक साल के बारहों मास चौबीसों घण्टे होता है और इसे कोई और नहीं स्वयं गंगा जी द्वारा किया जाता है।
इस बार शिवरात्रि एवं सावन के महीने में आपको बताते हैं एक ऐसे रहस्यमयी शिव मंदिर के बारे में जहां प्रतिदिन कोई अदृश्य भक्त तड़के में आ कर शिव का अभिषेक करता है। लोगों को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं होता कि ऐसे कैसे होता है। इस भक्त को न तो किसी ने देखा और न कभी महसूस किया। वहां के लोग आज तक इस रहस्य को कोशिश करने पर भी जान नहीं पाए। इस चमत्कार को देखने लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।
आश्चर्यचित कर देने वाला यह शिव मंदिर मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना जिले में जिला मुख्यालय मुरैना से करीब 60 किमी.दूरी पर पहाड़गढ़ में स्थित है। यहां अदृश्य शिव भक्त ब्रह्म मुहूर्त में शिव की आराधना करता है लेकिन ऐसा सिर्फ सावन में नहीं होती बल्कि पूरे साल होती है।
घने जंगलों में ईसुरा पहाड़ की गुफा में बने इस शिवमंदिर में पट खुलते ही पुजारी को शिवलिंग का 21 मुखी, 11 मुखी 7 मुखी बेलपत्रों और चावल, फूलों से अभिषेक हुआ प्रतिदिन मिलता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच बसे ईश्वरा महादेव का रहस्य वर्षों बाद भी नहीं सुलझ सका है। ऐसा बताया जा रहा है कि ईश्वरा महादेव मंदिर पर सुबह चार बजे कोई अदृश्य शक्ति पूजा करती है। इसे जानने के लिए कई प्रयास किए गए लेकिन बार-बार रहस्य जानने की ये कोशिश विफल होती जा रही है।
यहां गुफा नुमा पहाड़ के नीचे शिवलिंग पर प्राकृतिक झरने से शिवलिंग के शीर्ष पर जलाभिषेक हो रहा है और ब्रह्म मुहूर्त में कोई सिद्ध शक्ति उपासना करती है। पहाडगढ़ के जंगलों में पहाड़ों के बीच बना ईश्वरा महादेव का ये सिद्ध मंदिर तो शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र तो बना ही हुआ है। इसके अलावा भी इस जगह कुछ ऐसा है जो लोगों को यहां आने के लिए प्रेरित करता है। बारिश के मौसम में यहां प्राकृतिक छटा देखने लायक होती है, इसलिए यह धार्मिक स्थल के साथ अच्छा पिकनिक स्पॉट भी माना जाता है।
ग्रामीण कहते हैं कि एक सिद्ध बाबा ने इन पहाड़ों के बीच शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी। तभी से शिवलिंग के शीर्ष पर प्राकृतिक झरना अविरल जलाभिषेक कर रहा है। जब भी ब्रह्म मुहूर्त में पुजारी मंदिर के पट खोलते हैं तो भौचक्के रह जाते हैं क्योंकि पट खोलते ही एक ऐसा नज़ारा देखने को मिलता है जो वहां मौजूद हर किसी के होश उड़ा देता है। हर रोज़ पुजारी के पट खोलने से पहले शिव शीर्ष पर 21 मुखी व 11 मुखी बेल पत्र, चावल और फूल चढ़े हुए मिलते हैं। लोगों का कहना है कि इस मंदिर के गर्भ गृह में रहस्यमयी पूजा को जानने के लिए किसी ने शिवलिंग के ऊपर हाथ रख लिया था लेकिन तभी अचानक तेज आंधी चली और उसका हाथ कुछ देर के लिए हटा और अदृश्य भक्त शिव का पूजन कर गया और जिसने हाथ रखा था वो कोढ़ी हो गया।
यहाँ शिवलिंग पर ब्रह्म मुहूर्त में बेलपत्र कौन चढ़ाता है इसका रहस्य जानने के लिए कई कोशिशें की गईं, जिसमें लगातार असफलता ही हाथ लग रही है। इसलिए वहां के संत-महात्माओं ने एक ठोक निर्णय लेते हुए किसी भी हाल में रहस्य को जानने की ठानी। संत महात्माओं ने मंदिर के अंदर ही अपना ढेरा जमा लिया। वहां मौजूद होने के बाद भी अबतक वो रहस्य नहीं जान पाए हैं क्योंकि हर रोज़ ब्रह्म मुहुर्त होने से कुछ समय पहले ही उनकी झपकी लग जाती है और इसी मौके की नज़ाकत को देखते हुए पल भर में ही अनजानी शक्ति शिवलिंग का विधिवत पूजा करके, कहीं गायब हो जाती है और एक बार फिर रहस्य, रहस्य ही रह जाता है। ऐसे में लोगों का कहना है कि लंका के राजा विभीषण को सप्त चिरंजीवियों में से एक माना गया है और इस शिवलिंग की स्थापना भी उन्होंने ही कराई थी। इसलिए माना जाता है कि वही आज भी यहां पूजा करने आते हैं।
पहाडगढ़ से 12 मील की दूरी पर 86 गुफाओं की श्रृंखला भी देखी जा सकती है। इन गुफाओं को भोपाल की भीमबेटका गुफाओं का समकालीन माना जाता है। सभ्यता के प्रारंभ में लोग इन गुफाओं में आश्रय लेते थे। गुफाओं में पुरूष, महिला, चिड़िया, पशु, शिकार और नृत्य से संबंधित अनेक चित्र देखे जा सकते हैं। यह चित्र बताते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में भी मनुष्य की कला चंबल घाटी में जीवंत थी।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल