अब करोड़ों मजदूरों को न्यूनतम वेतनमान मिलने लगा है, क्योंकि मोदी सरकार ने वेतन संहिता 2019 बनाकर चार पुराने श्रम कानूनों की सभी खास विशेषताओं को इसमें शामिल करते हुए कुछ नए प्रावधान भी जोड़ दिए हैं, जिससे इसकी उपयोगिता और दायरा दोनों बढ़ चुका है। बता दें कि पहली बार साल 2017 में पेश हुए इस विधेयक को इसी वर्ष केंद्र सरकार की ओर से हरी झंडी मिली, जिसके बाद जारी हुई वेतन संहिता 2019 की अधिसूचना के साथ ही देश के तकरीबन 50 करोड़ मजदूरों को एक समान न्यूनतम वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है। कहना न होगा कि श्रम सुधारों की दिशा में इसे बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है। क्योंकि इसके लागू होने के बाद देश के तमाम मजदूरों को अब सुनिश्चित किए गए न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना अपराध माना जाएगा। यही नहीं, अब एक समान काम के बदले एक जैसा वेतन देना भी जरूरी होगा। क्योंकि ये नया कानून ही अब पुराने श्रम कानूनों की जगह ले चुका है।
गौरतलब है कि श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने 'कोड ऑन वेजेस' बिल को लोकसभा में 23 जुलाई 2019 को पेश किया था। जिसके बाद 30 जुलाई को ये लोकसभा से और 2 अगस्त को राज्यसभा से पारित हुआ था। उसके बाद 8 अगस्त 2019 को इस पर राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद पिछले महीनों में सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी होने के बाद ये देशभर में लागू हो गया। बताया गया है कि इस अधिनियम का उद्देश्य श्रम कानूनों में सुधार करने के साथ ही देश के तमाम श्रमिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना है। आपके लिए यह जानना जरूरी है कि पहली बार साल 2017 में यह विधेयक पेश हुआ था। 'कोड ऑन वेजेस' नामक यह बिल पहली बार 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश हुआ था। इसके बाद 21 अगस्त, 2017 को यह बिल संसद की स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया। फिर, कमेटी ने 18 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। लेकिन 16वीं लोकसभा के भंग होने के कारण यह विधेयक पास नहीं हो पाया था।
बता दें कि 'कोड ऑन वेजेस' बिल का मकसद सभी क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी को तय करना है, चाहे वो मजदूर उद्योग, व्यापार, निर्माण या अन्य किसी भी क्षेत्र का क्यों न हो। इसलिए अधिसूचना जारी होने के साथ ही ये विधेयक लागू हो गया और अब ये नया कानून चार पुराने कानूनों... मजदूरी भुगतान कानून 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 की जगह ले चुका है। इस विधेयक के दायरे में निजी, सरकारी, संगठित और गैर-संगठित सभी तरह के क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारी आएंगे। यहां यह स्पष्ट कर दें कि इस बिल के तहत रेलवे, खदान, ऑइल जैसे क्षेत्रों से जुड़े कर्मचारियों के वेतन से जुड़े फैसले जहां केंद्र सरकार लेगी, वहीं अन्य कर्मचारियों के मामलों में फैसले राज्य सरकारें लेंगी। अब मजदूरी में वेतन, भत्ते और मुद्रा के रूप में बताए गए अन्य सभी घटक शामिल रहेंगे। हालांकि, इसमें कर्मचारी को मिलने वाला बोनस या कोई यात्रा भत्ता शामिल नहीं होगा।
तय होगी न्यूनतम मजदूरी सीमा, हर 5 साल में होगी बढ़ोतरी की समीक्षा
इस अधिनियम के मुताबिक, केंद्र सरकार देशभर में न्यूनतम मजदूरी तय करने में आने वाली दिक्कतों को दूर करते हुए उसे मजदूरों के जीवनस्तर में सुधार करने लायक बनाएगी। साथ ही, उसे अलग-अलग इलाकों के मुताबिक एक समान बनाया जाएगा। न्यूनतम वेतन तय करने के लिए ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों की त्रिपक्षीय समिति बनेगी, जो देशभर में कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन तय करेगी। वहीं, नए अधिनियम के मुताबिक, नियोक्ता अपने कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान नहीं कर सकता। वहीं, न्यूनतम मजदूरी की राशि मुख्य तौर पर क्षेत्र और कुशलता के आधार पर काम के घंटे या वस्तु निर्माण की संख्या को देखते हुए तय की जाएगी। इस अधिनियम के मुताबिक, हर पांच साल या उससे कम वक्त में केंद्र या राज्य सरकार द्वारा त्रिपक्षीय समिति के माध्यम से न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा और पुनर्निधारण किया जाएगा। यही नहीं, इसे तय करने के दौरान कर्मचारी की कार्यकुशलता और काम की मुश्किलों जैसी बातों को भी ध्यान में रखा जाएगा। इसके अलावा, केंद्र या राज्य सरकार सामान्य कार्य दिवस के लिए काम के घंटे भी तय कर सकती है। जबकि सामान्य कार्य दिवस के दौरान अगर कर्मचारी तय घंटों से ज्यादा काम करता है तो वो ओवरटाइम मजदूरी का हकदार होगा। यहां यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अतिरिक्त कार्य के लिए उसे मिलने वाली मजदूरी की दर, आम दर के मुकाबले कम से कम दोगुनी होगी।
वेतन देने के तौर तरीके और उसमें कटौती के प्रावधानों को किया गया है स्पष्ट, लैंगिक भेदभाव किया खत्म, रखा सजा का भी प्रावधान
इस नए विधेयक के अनुसार, कर्मचारियों को सिक्कों, करेंसी नोट, चेक, बैंक अकाउंट में ट्रांसफर या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मजदूरी का भुगतान किया जा सकता है। हालांकि, भुगतान का वक्त नियोक्ता द्वारा तय किया जाएगा, जोकि रोजाना, साप्ताहिक, पखवाड़े में या फिर मासिक, कोई भी हो सकता है। इस विधेयक में ये भी सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा। इसके अलावा, जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम कर रहे हैं, उन्हें हफ्ते के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना सुनिश्चित होगा। नए श्रम अधिनियम में कर्मचारी को दिए जाने वाले वेतन में निम्न आधार पर कटौती का प्रावधान भी रखा गया है, जिसमें जुर्माना, ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, नियोक्ता द्वारा दिए गए रहने के स्थान या कर्मचारी को दिए गए एडवांस के आधार पर वेतन में कटौती की जा सकती है। हालांकि ये कटौती कर्मचारी के कुल वेतन के 50 प्रतिशत से ज्यादा कदापि नहीं हो सकती है। इस अधिनियम के जरिए लैंगिक आधार पर एक समान कार्य या एक समान प्रकृति वाले काम के लिए वेतन-भत्ते और भर्ती के मामले में लैंगिक भेदभाव को खत्म कर दिया गया है। बहरहाल, अब एक जैसे काम के लिए महिलाओं को भी उतना ही वेतन मिलेगा, जितना कि एक पुरुष को दिया जाता है।
इस नए अधिनियम में नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के लिए जुर्माने तथा सजा का प्रावधान भी रखा गया है। जिसके मुताबिक, न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने या अधिनियम के अन्य किसी प्रावधान का उल्लंघन करने पर उस पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा। यदि पांच साल के दौरान वो दोबारा ऐसा करता है तो उसे कम से कम 3 माह तक का कारावास और 1 लाख रुपए तक जुर्माना या फिर दोनों तरह की सजा दी जा सकेगी। इससे सरकार को उम्मीद है कि अब श्रमिकों को काफी राहत मिलेगी और उनके जीवन स्तर में उत्तरोत्तर सुधार आएगा।
-कमलेश पांडेय