केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में बोडो संगठनों का केंद्र-असम सरकार के साथ समझौता हुआ। इसी के साथ इन संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात की और बोडोलैंड की मांग नहीं करने का दावा किया है।
संपादकीय। मोदी सरकार को असम से एक बहुत बड़ी कामयाबी मिली है। असम से बोडोलैंड की मांग कर रहे लोगों ने अपनी मांग छोड़ केंद्र के साथ समझौता कर लिया। सालों से हिंसा से जूझ रहे असम के लिए अच्छी खबर आई। दरअसल, इस नॉर्थ ईस्ट राज्य में स्थाई शांति की उम्मीदें बढ़ गई हैं। अलग बोडोलैंड की मांग करने वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन आफ बोडोलैंड और अन्य गुटों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने का फैसला किया है। इसे असम में शांति लाने के प्रयासों की दिशा में सरकार की बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में बोडो संगठनों का केंद्र-असम सरकार के साथ समझौता हुआ। इसी के साथ इन संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात की और बोडोलैंड की मांग नहीं करने का दावा किया है। केंद्र सरकार और बोडो समुदाय के बीच समझौते के कुछ तथ्यों को जान लीजिए।
समझौते में जो बोडो संगठन शामिल हुए हैं, वो असम में अंतिम सक्रिय गुटों में से एक हैं।
इस समझौते के बाद भारत सरकार को उम्मीद है कि एक संवाद और शांति प्रकिया के तहत उग्रवादियों का मुख्य धारा में शामिल करने का सिलसिला शुरू होगा।
पिछले एक महीने में पूर्वोत्तर समस्या से जुड़े तीन बड़े और ऐतिहासिक समझौते भारत सरकार ने किए हैं।
इसमें त्रिपुरा में 80 सशस्त्र आतंकियों का समर्पण, मिजोरम-त्रिपुरा के बीच ब्रू रियांग शरणार्थियों को स्थायी निवास देना और अब बोडो शांति समझौता होना शामिल है।
इस समझौते के तहत इस गुट के सदस्यों को आर्थिक मदद भी सरकार की तरफ से मुहैया करवाई जाएगी, इसकी मांग ये गुट पिछले कई दिनों से कर रहा था।
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भारत में 28 राज्य हैं जिनमें से असम भी एक है। असम की आबादी करीब 3 करोड़ दस लाख है। असम पूर्वोत्तर हिस्से का एक बड़ा राज्य है। आज हम बताने जा रहे हैं कि असम में क्या हुआ है और क्यों हुआ है। इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें इतिहास की गलियों से गुजरते हुए वर्तमान के दौर में कदम रखना होगा। तो आज हमने इतिहास के सहारे वर्तमान के प्रश्नों को समझने और तथ्यों के आधार पर आपको समझाने के लिए बोडोलैंड के पूरे मामले का एमआरआई स्कैन किया है। पहले 7 लाइनों में आपको बोडोलैंड के मुद्दे के बारे में समझाते हैं।
बोडो ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है
पूर्वोत्तर में अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर 60 के दशक में आंदोलन शुरू हुआ
असम में बोडो जनजाति की आबादी लगभग 28 फीसदी है
बोडो जनजाति की मुख्य शिकायत रही कि इनकी जमीन पर दूसरी समुदाय ने कब्जा किया
इसी के साथ असम में असंतोष भी बढ़ने लगा
1966 में बोडो आदिवासियों ने अलग केंद्र शासित प्रदेश उदयाचल की मांग की
कुछ सालों बाद ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन ने अलग बोडोलैंड राज्य की मांग कर डाली
1826 में अंग्रेजों ने पहली बार एंगलो-बर्मा युद्ध में जीत हासिल की और इसी के साथ ही अंग्रेजों को यहां राज करने का मौका मिला। भारत के पूर्वोत्तर इलाके पर दबदबा अंग्रेजों का रहेगा या बर्मा के राजा का इस युद्ध में ये फैसला हो गया और जीत अंग्रेजों को मिली। बोडो आंदोलन का इतिहास आजादी के पहले का है। 1920 में बोडो समुदाय के शिक्षित लोगों ने साइमन कमीशन से मुलाकात की थी और असम विधानसभा में अपने लिए आरक्षण की मांग की थी। 1930 में इन्होंने ट्राइबल लीग ऑफ असम का गठन किया। आजादी के बाद भी बोडो समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक और नस्लीय पहचान की सुरक्षा को लेकर आवाज बुलंद करते रहे। 1960 के दशक से वे अलग राज्य की मांग करते आए हैं। राज्य में इनकी जमीन पर दूसरे समुदायों को अनाधिकृत प्रवेश और भूमि पर बढ़ता दबाव ही इनके असंतोष की वजह है। लेकिन 1966 में बोडो आदिवासियों ने प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (PTCA) का गठन किया और अलग केंद्र शासित प्रदेश उदयाचल की मांग की।बोडो दरअसल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है।
ब्रह्मपुत्र घाटी में धान की खेती उन्होंने ही शुरू की। 1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन हिंसक होने के साथ तीन धाराओं में बंट गया। पहले का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने किया, जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ) जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की और गैर-बोडो समूहों को निशाना बनाने का कोई मौका भी उसने नहीं चूका। तीसरी धारा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी एबीएसयू की है, जिसने मध्यमार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की। 1993 से पहले तक बोडो और मुसलमानों के रिश्ते इतने तल्ख नहीं थे। उसी वर्ष बीटीएफ ने दूसरी जनजातियों और मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया, और उसी के बाद असम में हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया। बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर वर्चस्व चाहते थे, जो उन्हें 2003 में मिला। तब बोडो लिबरेशन टाइगर्स यानी बीएलटी ने हिंसा का रास्ता छोड़ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट नामक राजनीतिक पार्टी बनाई।
एनडीएफबी यानी नेशनल डिमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड एक ऐसा संगठन है जिसका मकसद असम से बोडो इलाके को अलग करके बोडोलैंड देश की स्थापना करना है। करीब 34 साल पहले 1986 में बना ये संगठन सामूहिक नरसंहार के लिए कुख्यात है। ये अबतक 1 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। भारत सरकार ने एनडीएफबी को आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है। अपने शुरूआती दौर में एनडीएफबी में आतंकवादियों की संख्या तीन हजार पांच सौ से ज्यादा थी। ये सुरक्षाबलों और गैर बोडो समुदाय पर हमला करते रहे थे। एनडीएफबी को अघोषित तौर पर चीनी मूल के संगठनों से मदद मिलती है। इस आतंकवादी संगठन का जाल भारत, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार में फैला है। वर्ष 2006 में एनडीएफबी और भारत सरकार के बीच संघर्ष विराम का समझौता भी हुआ था। लेकिन ये समझौता 6 महीने भी नहीं चला। वर्ष 2012 में एनडीएफबी दो गुटों में बंट गया था। एक गुट एनडीएफबी एस भारत सरकार के साथ शांति के लिए बातचीत के पक्ष में तो दूसरा गुट एनडीएफबी (आरबी) भारत सरकार के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष कर रहा। इस गुट को म्यांमार की चिन नेशनल लिबरेशन से हथियार मिलते हैं।
अब तक तीन समझौते हुए
पहला बोडो समझौता 1993 में सरकार और एबीएसयू के साथ हुआ। इसी के साथ ही बोडोलैंड ऑटोनामस काउंसिल (बीएसी) का गठन हुआ। ये इस आंदोलन का एक अहम पड़ाव था। बीएसी को सीमित राजनीतिक शक्ति दिया गया। 2003 में दूसरा समझौता सरकार और बोडो लिब्रेशन टाइगर्स के बीच हुआ। इस समझौते के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) का गठन हुआ। इसमें असम के चार जिले कोकराझार, चिरांग, बस्का और उदलगुरी को शामिल किया गया। बाद में इस इलाके को बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट कहा जाने लगा।
ऐसे में केंद्र के साथ हुए चौथे समझौते के साथ ही NDFB ने अलग राज्य या अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग को छोड़ दिया है। इसके एवज में केंद्र सरकार ने बोडो आदिवासियों को राजनीतिक और आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। जिसके बाद दशकों से हिंसा की आग में जले असम में शांति का नया सवेरा आने की उम्मीद जताई जा रही है।