चिंताजनक है कि एक ओर जहां देश भुखमरी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी हो रही है। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद हो जाता है, जोकि देश के उत्पादन का चालीस फीसदी है।
आज खाने की बर्बादी एक वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। दुनियाभर में खाने की बर्बादी पर रोक लगाने के लिए विभिन्न तरह के प्रयास भी किये जा रहे हैं। हाल ही में सऊदी अरब में किया गया एक ऐसा ही प्रयास चर्चा के केंद्र में रहा। दरअसल, प्रति घर सालाना 260 किलोग्राम एवं वैश्विक औसत 115 किलोग्राम खाना बर्बाद करने वाले सऊदी अरब ने इस भयावह समस्या के निजात के लिए एक विशेष तरह की थाली का निर्माण किया है। इस थाली को लेकर कहा जा रहा है कि इसका नया डिजाइन खाने की बर्बादी 30 प्रतिशत तक कम करता है। इस थाली के निर्माण की बड़ी वजह खाड़ी देशों में ज्यादा मात्रा में खाना परोसने का चलन है।
निःसंदेह अगर इस तरकीब से खाने की बर्बादी में कमी आती है तो यह एक बड़ी सफलता मानी जाएगी। आज इसी तरह खाने की बर्बादी को रोकने के लिए भारत में भी उपाय किये जाने की सख्त दरकार है। क्योंकि भारत में हर आदमी को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता। अभी तक भूख से होने वाली मौतों की खबर आती रहती है। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 102वें नंबर पर है। जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान (94वें), बांग्लादेश (88वें), नेपाल (73वें) और श्रीलंका (66वें) भारत से बेहतर स्थिति में हैं। 2017 की सीएसआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल जितना यूनाइटेड किंगडम खाता है, उतना हम बर्बाद कर देते हैं। भारत जैसे देश में जहां लाखों लोग भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं, वहां खाने की बर्बादी के ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं। भारत में खाने की बर्बादी सबसे ज्यादा नॉर्थ और सेंट्रल पार्ट्स के सार्वजनिक समारोहों में होती है। शादी-विवाह, सोशल और फैमिली फंक्शन, कैंटीन और होटलों में खाने की बर्बादी सबसे ज्यादा होती है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्पादन का करीब 40 फीसदी फूड बर्बाद चला जाता है। भारत के कुल गेहूं उत्पादन में करीब 2 करोड़ टन गेहूं बर्बाद हो जाता है। इतने बड़े पैमाने पर अन्न की बर्बादी हैरान करने वाली है। खुद कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में करीब 50 हजार करोड़ की कीमत का अन्न हर साल बर्बाद होता है। इतना अन्न बिहार जैसे राज्य की कुल आबादी को एक साल तक भोजन उपलब्ध करवा सकता है।
नए शोध से पता चला है कि खाने की बर्बादी की वजह से ग्रीन हाउस गैसों में 8 फीसदी का इजाफा होता है। इसकी वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या बढ़ रही है। खाने की बर्बादी को लेकर ये आंकड़े वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट ने रॉकफेलर फाउंडेशन की मदद से जारी किए हैं। यही नहीं खाने की बर्बादी को लेकर कुछ दिलचस्प तथ्य पता चले हैं। मसलन भारत जैसे विकासशील और लोअर इनकम वाले देशों में खाने की बर्बादी फार्म के स्तर पर होती है। यानी अन्न के उत्पादन के वक्त खेत से मार्केट में पहुंचने तक अन्न बर्बाद होता है। वहीं अमेरिका जैसे विकसित देशों में खाने की बर्बादी खाने की प्लेट में होती है। यानी खाना प्लेट तक तो पहुंच जाता है लेकिन प्लेट में खाना छोड़कर लोग उसे बर्बाद करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के 2007 के एक आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा बर्बादी कंद और जड़ों की होती है। करीब 62 फीसदी कंद और जड़ें बर्बाद हो जाती हैं। फल और सब्जियों का स्थान दूसरा है। कुल उत्पादन का करीब 41 फीसदी फल और सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। उसी तरह से कुल उत्पादन का करीब 25 फीसदी दालें बर्बाद चली जाती हैं। 22 से 23 फीसदी फिश और सीफूड भी बर्बाद होते हैं।
चिंताजनक है कि एक ओर जहां देश भुखमरी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी हो रही है। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद हो जाता है, जोकि देश के उत्पादन का चालीस फीसदी है। इस अपव्यय का दुष्प्रभाव हमारे देश के प्राकृतिक संसाधानों पर पड़ रहा है। हमारा देश पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में 230 क्यूसेक पानी व्यर्थ चला जाता है। अगर इस पानी को अपव्यय होने से बचा लिया जाए तो दस करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। एक आकलन के मुताबिक अपव्यय से बर्बाद होने वाली धनराशि से पांच करोड़ बच्चों की जिंदगी सवारी जा सकती है, उनका कुपोषण दूर कर उन्हें अच्छी शिक्षा दी जा सकती है। चालीस लाख लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और पांच करोड़ लोगों के लिए आहार सुरक्षा की गारंटी तय की जा सकती है। अन्न भंडार के समुचित प्रबंधन के अभाव में बारिश के समय बड़ी मात्रा में अनाज बहकर चला जाता है और पानी के संपर्क में आने के कारण अपनी गुणवत्ता खो देता है। खेतों से आने वाले अन्न के रख-रखाव को लेकर मंत्रालय ध्यानाकर्षण कर गंभीरता बरतता तो शायद लाखों लोगों को भूखे पेट सोने की नौबत नहीं आतीं। देश में खाद्य अपव्यय से होने वाली क्षति बहुदैशिक है और इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 750 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है, जो कि स्विट्जरलैण्ड के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
समझना होगा की खाने की बर्बादी पर नियंत्रण साझा प्रयासों से ही संभव है। इसलिए इसके लिए सभी को मिलकर सामाजिक चेतना लानी होगी। हमें अपने दर्शन और परंपराओं के पुर्नचिंतन की आवश्यकता है, जिसमें अन्न को ब्रह्म और उसके अपव्यय को पाप माना गया है। धर्मगुरुओं एवं स्वयंसेवी संगठनों को आगे आकर जनमानस में खाने की बर्बादी को जागरूकता लाने की पहल करनी चाहिए। साथ ही अनाज भंडारण एवं वितरण प्रणाली प्रबंधन को लेकर सावधानी बरतनी होगी। क्योंकि भारत में भंडारण की पर्याप्त क्षमता नहीं होने की वजह से भी अनाज बर्बाद होता है। अनुमान के मुताबिक चावल के मामले में 1.2 किलो प्रति क्विंटल और गेहूं के मामले में 0.95 किलो प्रति क्विंटल का नुकसान होता है। अगर सरकार को 2030 तक भारत को भूखमुक्त करने का संकल्प साकार करना है तो दीर्घकालीन योजनाओं को और भी सख्ती से लागू करना होगा व सुनिश्चित क्रियान्वयन के लिए एक पारदर्शी मशीनरी बनाने पर ध्यान देना होगा।