गजबकी दुनिया देखी मैंने कथनी करनी एक नहीं
ईश्वर पर इल्ज़ाम लगाते खुद की करनी नेक नहीं।।
पन्नी में सब्जी लाते है किचन का कूड़ा पन्नी में
भर भर सड़क पर फेक रहे है गाये खाए पन्नी में।।
पन्नी खाकर गाये मरती नहीं सोचते लोग जरा
फर्जी गौ रक्षक बनकर के चिल्लाते है लोग यहां।।
कुछ लोग काटने पेड़ो को कुल्हाड़ी लेकर आये है
धूप बहुत कह कर बैठे है, उसी पेड़ के साये है।।
काट दिए है पेड़ करोड़ों घर सोफ़ा लगवाने को
खिड़की पल्ले दरवाजे को नक्शीदार बनाने को।।
फैक्ट्री का जहरीला धुआ वातावरण प्रदूषित करता
आदमी हो या कोई जानवर धुएं से दमघोट के मरता।।
धरती मां को दूषित करते केमिकल वाले पानी से
पत्तल कुल्हड़ छोड़, प्लास्टिक,मगवाते राजधानी से।।
तूतीकोरिन में ही देखो पैसा कैसे बोल रहा है
तांबे की फैक्ट्री का पानी जहर नदी में घोल रहा है।।
अगर नहीं तुमअब चेतोगे, फ्यूचर में पछताओगे
अपनी भावी पीढ़ी को तुम प्रदुषण से मरवाओगे।।
ले लो शपथ तुम आज यहां कि स्वच्छ रखेगे वातावरण
सही मायने में तब ही लगेगा आज है दिवस पर्यावरण।।
कवि डॉ पंकज कुमार सोनी
बस्ती (उ०प्र०)
मोबाइल 9335072806