पचास साल पहले जब पहला जनसंख्या दिवस मनाया गया था तो पता है दुनिया की आबादी कितनी थी। 3 अरब 55 करोड़ जो आज 7 अरब साठ करोड़ यानी दोगुनी से भी ज्यादा है। सिर्फ बैंक में रखा पैसा ही इतनी तेजी से बढ़ता है और कुछ नहीं।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लिलिया नाम की एक महिला से मिले। इस महिला को आर्डर आफ पैरेंटल ग्लोरी के अवार्ड से नवाजा गया। इसके हाथ में नौंवा बच्चा था। रूस की सरकार घटती जनसंख्या से परेशान थी तो ज्यादा बच्चे पैदा करने को उत्साहित करने के लिए 2008 में ये अवार्ड शुरू किया था। आप कह रहे होंगे विदेशी बात है हमें इससे क्या। हम तो रोटी-कपड़ा और मकान इन्हीं तीन जिंदगी की जरूरतों में अपना पूरा जीवन निकाल देते हैं। तो अब आते हैं भारत पर। हमारे हिन्दुस्तान में नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन को लेकर घमासान मचा है। इन सब के बीच मोदी सरकार नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी NPR की ओर कदम बढ़ा रही है।
स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था, “लगातार बढ़ती जनसंख्या हमारे और हमारी अगली पीढ़ी के लिए कई समस्याएं और चुनौतियां लाने वाली हैं।”
जनसंख्या को लेकर अक्सर ये कहा जाता है कि ये एक दोधारी तलवार है और बढ़ती हुई जनसंख्या दुनिया का सबसे बड़ा विरोधाभास है। जनसंख्या बढ़ने का एक अर्थ ये लगाया जाता है कि इंसान ने मृत्यु को हराने की कोशिश की है और उसे पीछे धकेल दिया है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि दुनिया के 200 करोड़ लोगों के पास पर्याप्त भोजन नहीं है खाने के लिए। इसलिए आज जनसंख्या और उसके प्रभावों पर बात करना बेहद जरूरी है।
पचास साल पहले जब पहला जनसंख्या दिवस मनाया गया था तो पता है दुनिया की आबादी कितनी थी। 3 अरब 55 करोड़ जो आज 7 अरब साठ करोड़ यानी दोगुनी से भी ज्यादा है। सिर्फ बैंक में रखा पैसा ही इतनी तेजी से बढ़ता है और कुछ नहीं। देश की लेटेस्ट जनसंख्या तकरीबन 1 अरब 37 करोड़ बताई जा रही है। जनसंख्या के मामले में अभी हम दूसरे नंबर पर हैं। हमसे आगे चीन है जिसकी जनसंख्या एक अरब 39 करोड़ है। लेकिन हम चीन को जल्द ही पछाड़ देंगे। अगर चीन इसी रफ्तार से घटता रहा और हम इसी रफ्तार से बढ़ते रहे। 12 साल में हम चीन की जनसंख्या से 8 फीसदी ज्यादा हो जाएंगे। थोड़ा और आपको डराते हैं और आंकड़ों के जरिए हकीकत से रूबरू करवाते हैं।
2050 में हमारी जनसंख्या चीन से 25 फीसदी ज्यादा हो जाएगी। ये आंकड़ें पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो से आए हैं। आज की तारीख में हजार लोगों में 20 बच्चें पैदा होते हैं और छह लोग मरते हैं। यूरोप में उल्टा होता है वहां जब 10 बच्चे पैदा होते हैं 11 सयाने चल बसते हैं। हमारे यहां तो बच्चा पैदा होता है तो बुजुर्ग चट से आशीर्वाद देते हैं जुग-जुग जियो। कितना जीते हैं ये भी जान लीजिए। भारत में पुरूष 67 साल जीते हैं महिलाएं 70 साल। आज की तारीख में देश की 28 फीसदी आबादी पंद्रह साल या इससे कम उम्र की है। 65 या उससे ज्यादा उम्र के लोगों की आबादी सिर्फ 6 फीसदी है। अब इसमें गौर करने वाली बात ये है कि ये 15 से कम उम्र के बच्चे और 65 साल से ज्यादा के बड़े डिपेंडेंट एज कैटगरी में आते हैं। इस ग्रुप में 34 फीसदी आबादी है। बाकी के 66 फीसदी लोग हैं जिनके बूते हम आंखों में आंखे डाले किसी भी देश के समक्ष खड़े होने की बातें करते हैं। 2050 में आज से दोगुने बुजुर्ग इस देश में होंगे। 13 फीसदी आबादी की उम्र 65 साल या उससे ज्यादा होगी।
जनसंख्या कोई लैंप की रोशनी तो है नहीं कि उसकी फ्लेम रेगुलेटर को घुमा कर कम कर दें। ये सूरज की ताप के समान है जिसे कम नहीं किया जा सकता। लेकिन जनसंख्या की ईकाई पर काम किया जा सकता है। ये ईकाई क्या है? परिवार, कब शादी करनी है, कितने बच्चे पैदा करने हैं और उन्हें किस तरह की पढ़ाई देनी है। हिन्दुस्तान की गाड़ी ठीक वहीं फंसी है। हिन्दुस्तान उन सबसे पहले मुल्कों में था जिसने सबसे पहले जनसंख्या और परिवार नियोजन के लिए नीतियां बनाई। लेकिन वो बुरी तरह से फेल हुई। सही समय पर हम सेक्स, फैमली प्लानिंग और मेडिकल से जुड़े एजेकुशन नहीं देते।
शादी होती है तो सबसे शाश्वत सवाल कि खुशखबरी कब सुना रहे हो। फिर बच्चों में भी सबको लड़की नहीं लड़का चाहिए। जनसंख्या बढ़ने के सबसे बड़े कारणों में से एक ये भी है।
मध्यप्रदेश के होशांगाबाद से बीजेपी सांसद उदयप्रताप सिंह ने 125 सांसदों और एक एनजीओ के साथ मिलकर एक रिपोर्ट तैयार कर संसद और राष्ट्रपति को सौंपा थी। जिसमें ये था कि जनसंख्या नियंत्रण पर सख्त कानून बनना चाहिए जो देश के सभी नागरिकों पर लागू हो। दो बच्चों के बाद तीसरे बच्चे पर दंडात्मक कार्यवाई बॉयोलॉजिकल माता पिता पर हो। तीसरा बच्चा पैदा करने वालों की सब्सिडी बंद हो, सरकारी अनुदान समाप्त हो। देश में सिर्फ 2 बच्चों की नीति लागू हो। तीसरा बच्चा पैदा करने वाले माता पिता को सरकारी नौकरी ना मिले। तीसरा बच्चा पैदा करने वालों को आजीवन मताधिकार से वंचित किया जाए। चौथा बच्चा पैदा करने वालों पर इन सजाओं के साथ साथ 10 साल की जेल का प्रावधान हो।
अब आते हैं वर्तमान पर। पहले आपको पांच लाइनों में बता देते हैं कि क्या है NPR
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के जरिए सरकार देश के हर नागरिक की जानकारी रख सकेगी।
- इसके तहत हर भारतीय नागरिक का बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लिया जाएगा और उनकी वंशावली भी दर्ज की जाएगी।
- वैसे निवासी जो छह महीने या उससे ज्यादा समय से किसी क्षेत्र में रह रहा है, उसके लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य हो जाएगा।
- एनपीआर को सरकार राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर, जिला, उप जिला व स्थानीय स्तर पर तैयार करेगी।
- एनपीआर तीन चरणों में तैयार किया जाएगा - पहला चरण एक अप्रैल 2020 से लेकर 30 सितंबर 2020 के बीच होगा। इसमें केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों द्वारा घर-घर जाकर जरूरी आंकड़े जुटाए जाएंगे।
आखिर नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को लाने के पीछे क्या है उद्देश्य
- सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत दिया जाने वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे और व्यक्ति की पहचान की जा सके।
- नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के द्वारा देश की सुरक्षा में सुधार किया जा सके और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त हो सके।
- देश के सभी नागरिकों को एक साथ जोड़ा जा सके।
इन राज्यों ने किया विरोध
CAA और NRC की तरह गैर-बीजेपी शासित राज्य इसका भी विरोध कर रहे हैं और इसमें सबसे आगे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। CAA और NRC को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वालीं ममता बनर्जी ने तो बंगाल में एनपीआर पर जारी काम को भी रोक दिया है। इसके अलावा केरल की लेफ्ट सरकार ने भी एनपीआर से संबंधित सभी कार्यवाही रोकने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सरकार ने एनपीआर को स्थगित रखने का फैसला किया है क्योंकि आशंका है कि इसके जरिए एनआरसी लागू की जाएगी।
आखिर जनगणना क्यों करवाई जाती है?
देश के प्रत्येक नागरिक की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आकलन करने और इसके आधार पर किसी क्षेत्र विशेष में विकास कार्यों को लेकर सरकारी नीतियों का निर्धारण करने के लिए लोगों की गिनती यानी जनगणना हर 10 साल में की जाती है। इसमें गांव, शहर में रहने वालों की गिनती के साथ साथ उनके रोज़गार, जीवन स्तर, आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक स्थिति, उम्र, लिंग, व्यवसाय इत्यादि से जुड़े आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इन आंकड़ों का इस्तेमाल केंद्र और राज्य सरकारें नीतियां बनाने के लिए करती हैं। इसे वैधानिक दर्जा देने के लिए 1948 में जनगणना अधिनियम पारित किया गया था। आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी। 10 साल में होने वाली जनगणना अब तक 7 बार हो चुकी है। भारत सरकार ने इससे पहले अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के दौरान जनगणना 2011 के लिए घर-घर जाकर सूची तैयार करने तथा प्रत्येक घर की जनगणना के चरण में देश के सभी सामान्य निवासियों के संबंध में विशिष्ट सूचना जमा करके इस डेटाबेस को तैयार करने का कार्य शुरू किया था।
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसकी आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक भारत हर वर्ष ऑस्ट्रेलिया जितना बड़ा देश पैदा करता है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी की भारत हर राज्य की जनसंख्या दुनिया के किसी न किसी देश की जनसंख्या के बराबर है या उससे ज्यादा है। यानी हम कह सकते हैं कि दुनिया के ज्यादातर देश हिन्दुस्तान के आंगन में खेलते हैं। भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राजील के बराबर है। भारत के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य महाराष्ट्र की जनसंख्या जापान की जनसंख्या के बराबर है। इसी तरह राज्स्थान की जनसंख्या थाईलैंड के बराबर है तो मध्य प्रदेश की जनसंख्या लगभग ईरान की आबादी के बराबर है। पंजाब की बात करें तो उसमें मलेशिया की आबादी समा सकती है। उत्तराखंड की बात करें तो एक पुर्तगाल उत्तराखंड में समा जाएगा। कर्नाटक की आबादी फ्रांस के बराबर है जबकि केरल और कनाडा की आबादी लगभग एक समान है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत पर जनसंख्या का कितना दबाव है।
आज हमने दिल्ली के दंगल और आप सरकार के पांच साल के कार्यकाल का पूरा विशलेषण किया। कल फिर रिलाइबेल यानी विश्वसनीय जानकारी और तथ्यों के साथ किसी बड़ी खबर का MRI स्कैन करेंगे। आज के लिए दें इजाजत। और ऐसे ही रिपोर्ट्स को देखने के लिए प्रभासाक्षी के साथ लगातार बने रहे। वीडियो को देखने के लिए फेसबुक और ट्वीटर पर हमें फालो करें और यूट्यूब पर प्रभासाक्षी को सब्सक्राइब करे। नोटिफिकेशन के लिए नीचे दिए गए गई बेल आइकन को दबाएं।