बस्ती।नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पर देश के तमाम समाजशास्त्री, राजनीतिक पार्टियां व राष्ट्र विरोधी शक्तियां बिना समझे अनर्गल प्रलाप से जनता को गुमराह कर रही हैं। जगह-जगह यह भी प्रदर्शन हो रहा है कि यह कानून वापस लिया जाय। जनता को इससे बड़ा कोई धोखा क्या होगा, जब उनके जन-प्रतिनिधियों ने दोनों सदनों से बहुमत से उस कानून को पास कर दिया और उसने कानून का रूप अख्तियार कर लिया, उसे कैसे वापस लिया जा रहा है?
उक्त उद्गार पूर्वान्चल विद्त परिषद के अध्यक्ष राजेन्द्र नाथ तिवारी ने कहा कि ब्।। और छत्ब् पर राजनीतिक दल भ्रम फैला रहे हैं। ब्।। का अर्थ होता है सिटीजन अमेन्डमेन्ट एक्ट और छत्ब् का मतलब होता है नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन, दानों भिन्न चीजें हैं, ब्।। कानून बन चुका है और छत्ब् पर कोई विचार ही नहीं है, परन्तु गुटों के लालच के खातिर देश के नेता, जनता विशेषकर मुस्लिम समाज को गुमराह कर धोखा दे रहे हैं। किसी भी धर्म को मानने वाले को ब्।। या छत्ब् से कोई परेशानी है ही नहीं। ब्।। में कहीं यह नहीं लिखा है कि इस देश के अमुख नागरिक को देश से बाहर कर दिया जायेगा, और अमुख की नागरिकता समाप्त हो जायेगी, किसी भी धर्म से जो 1947 के बाद से 2014 तक भारत में रह रहे हैं या आ चुके हैं। देश की संसद के ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया है, जिससे देश के मुसलमानों को बाहर निकालने का प्राविधान हो। उन्होनें एक विज्ञप्ति में कहा है कि किसी भी मुसलमान से देश का संविधान और देश की संसद को किसी प्रकार का सबूत मांगने का अधिकार नहीं देती है और न ही ऐसा कोई नियम ही बना है। छत्ब् को आधारकार्ड को एक प्रकार के रूप में समझ सकते हैं। उन्होनें कहा कि ''नागरिकता अधिनियम 2019 के तहत किसी भी व्यक्ति की नागरिकता तय की जायेगी, जो नागरिकता कानून 2055 के आधार पर बना है''।
यह कानून चूंकि संसद ने पास किया है, इसलिए सबके सामने है। उन्होनें कहा कि देश में भारत की नागरिकता देने के पांच तरीके हैं, 1. जन्म के आधार पर नागरिकता, 2. वंश के आधार पर नागरिकता, 3. पंजीकरण के आधार पर नागरिकता, 4. देशीयकरण के आधार पर नागरिकता और 5. भूमि विस्तार के आधार पर नागरिकता। उन्होनें कि यदि किसी के पास अपने जन्म का विवरण उपलब्ध नहीं है, तो उसके माता-पिता के बारे में विवरण उपलब्ध कराना पर्याप्त होगा। जन्म की तारीख, जन्म स्थान से सम्बन्धित दस्तावेज नागरिकता साबित करती है। यद्यपि के अभी तक स्वीकार्य दस्तावेजों को लेकर निर्णय लेना बाकी है, लेकिन वोटर कार्ड, पास्पोर्ट, आधार, लाइसेन्स, बीमें का पेपर, जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र, जमीन या जायदाद, या घर के कागजात या सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी इसी प्रकार के अन्य दस्तावेजों को मान्यता देता है।
किसी भी भारतीय नागरिक को अनावश्यक रूप से परेशान न होना पड़े इसी के नागरिकता कानून भारतीय को पूरा व्याख्यायित करता है। उन्होनें कहा कि चूंकि 1947 में धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ था, इसलिए देश के अगल-बगल तीन राष्ट्रों ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने अपने को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया और वहां निरन्तर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भी किये। इसलिए अधिनियम 1955 का विस्तार देते हुए सरकार ने तय किया है कि 1947 और 1955 के भूल सुधार कर इन देशों से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय जिसमें पारसी, जैन, बौद्ध, सिक्ख, इसाई आदि शामिल हैं, को सरकार यहां की नागरिकता पर्याप्त दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद प्रमाणिक साक्ष्यों को देखते हुए उपलब्ध करायेगी। श्री तिवारी ने कहा है कि देश के किसी भी मुसलमान से देश की नागरिकता छीनने या उसे देश से बाहर करने का कोई अधिकार यह अधिनियम नहीं देता। अपने वोट की रोटी सेंकने के लिए संविधान विरोधी आन्दोलन कर रहीं हैं। उन्होनें कहा कि जिसको बिल और अधिनियम में अन्तर नहीं मालूम वह देश का नेता बनने का ख्वाब पाले हुए हैं। देश के बौद्धिक वर्ग को इस विषय में सोचना और विचारना चाहिए। उन्होनें समाज के अधिवक्ताओं, पत्रकारों, शिक्षाविद्ो, सामाजिक संस्थाओं, जागरूक नागरिकों से अपेक्षा की है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ हो कुप्रचार को बचाने और अपने राष्ट्रीय महत्व के दायित्व को निभाने।
नागरिकता पर विपक्ष का अनर्गल प्रलाप- राजेन्द्र नाथ तिवारी
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December 29, 2019
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