नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गुरुवार को महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने 'निर्भया फंड' से 100 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। यह योजना राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू की जाएगी। इसके तहत देशभर के सभी थानों में महिला डेस्क बनाए जाएंगे। निर्भया फंड की शुरुआत 2013 में की गई थी। इसे शुरू करने का फैसला दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप और हत्या के मामले के बाद किया गया। उस समय रेप पीड़िता को निर्भया नाम दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय और महिला बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से सभी थानों में महिला सहायता डेस्क और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की स्थापना की जाएगी। इसके लिए 100 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया था। ये महिला हेल्प डेस्क पुलिस स्टेशनों में स्थापित की जाएंगी ताकि उन्हें अधिक महिला-अनुकूल बनाया जा सके। कोई भी महिला जो शिकायत दर्ज करना चाहती है, वह अन्य पुलिस से संपर्क करने के बजाय महिला हेल्प डेस्क से संपर्क कर सकती है।
इन डेस्क को मुख्य रूप से महिला अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा। डेस्क पर काम करने वाली महिला पुलिस अधिकारियों को शिकायतकर्ताओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। वकील, मनोवैज्ञानिक और एनजीओ भी महिला हेल्प डेस्क का हिस्सा होंगे। वकील और मनोवैज्ञानिक शिकायतकर्ताओं को मानसिक और कानूनी सहायता प्रदान करने में सक्षम होंगे।
निर्भया फंड के तहत केंद्र की ओर से राज्यों को पैसे दिए जाते हैं, जिसका इस्तेमाल महिला सुरक्षा के उपायों में किया जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय निर्भया फंड के खर्चों को नोडल एजेंसी है। पहले तो यही मंत्रालय फंड जारी करता था, लेकिन अब पहले राज्यों की तरफ से निर्भया स्कीम के तहत प्रोग्राम मंत्रालय को दिए जाते हैं, जिसे मंत्रालय अप्रूव करता है और फिर उसे इकोनॉमिक अफेयर्स मंत्रालय को भेज दिया जाता है, जहां से फंड जारी होता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से जारी फंड में से सिर्फ 20 फीसदी ही राज्यों ने इस्तेमाल किया है। गृह मंत्रालय के रिपोर्ट की बात करें तो उसका सिर्फ 9 फीसदी निर्भया फंड के तहत इस्तेमाल किया गया है। यानी पिछले 5 सालों में गृह मंत्रालय की ओर से जारी कुल 1656.71 करोड़ रुपए का सिर्फ 9 फीसदी, जो महज 146.98 करोड़ रुपए आता है।