नई दिल्ली। भारतीय मुस्लिमों में सीएबी (सीएए) और एनआरसी को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं, जिसे लगातार कांग्रेस समेत कई पार्टियां लगातार फैला रही हैं। सवाल यह है कि क्या सीएबी और एनआरसी भारतीय मुस्लिमों के हितों के खिलाफ है। तो जवाब है नहीं ! यह कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों की राजनीति का राजनीतिक हथकंडे से अधिक कुछ नहीं हैं।
क्योंकि राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून में तब्दील हो चुके सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA)हिंदुस्तान के 22 करोड़ से अधिक मुस्लिमों की नागरिकता को लेकर कोई बात नहीं करता हैं। एक्ट सीधे-सीधे चिन्हित बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी हितों को नागरिकता देने की बात करती है, जो पीड़ित है अथवा सताए गए हैं।
सीएए एक्ट में मुस्लिम का जिक्र नहीं है, जिसका राजनीतिक दल फायदा उठा रही हैं और मुस्लिम युवाओं को भ्रम में फंसाकर विरोध- प्रदर्शन के लिए उकसा रही हैं। इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान में वोट बैंक की राजनीति में मुस्लिम का पिछले 70 वर्षों में किस तरह इस्तेमाल किया गया है।
यही राजनीति सीएए और एनआरसी को लेकर भी विपक्षी दल कर रही हैं। खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संसद को दोनों सदनों में बिल का मसौदा रखते हुए यह बात साफ कर चुके हैं कि बिल में मुस्लिम का जिक्र इसलिए नहीं हैं, क्योंकि जिन तीन देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागिरकता देने का उल्लेख किया गया है उनमें मुस्लिम नहीं है, क्योंकि उल्लेखित तीनों देश इस्लामिक राष्ट्र हैं और वहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।
अमित शाह ने सदन में यह भी कहा कि सीएबी बिल में कही भी भारतीय मुस्लिमों की नागिरकता छीनने की बात नहीं कही गई है, लेकिन विपक्ष मुस्लिमों को भड़काने के लिए ऐसे मनगढ़ंत बातों को तूल दे रहा है, जिसका सीएबी बिल से कोई वास्ता ही नहीं हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने सदन को साफ-साफ यह भी बताया था कि अगर कोई मुस्लिम खुद को इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी प्रताड़ित पाता है और भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करता है, तो हिंदुस्तान उसकी नागरिकता पर विचार करेगा।
शाह के मुताबिक पिछले वर्ष 561 पाकिस्तान मुस्लिम नागरिकों को आवेदन के बाद हिंदुस्तान की नागरिकता दी गई है, जिनमें पाकिस्तान के मशहूर सिंगर अदनाम सामी शामिल हैं। यही वजह है कि खुद अदनान सामी भी सीएबी बिल का खुलकर समर्थन करते हुए ट्वीट किया है। उन्होंने कहा, सीएबी बिल के बावजूद मुसलमानों के नागरिकता लेने पर कोई असर नहीं पड़ रहा है, मुस्लिम पहले की तरह भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
अदनान सामी सीएबी पर पाकिस्तानी पीएम इमरान खान की टिप्पणी के बाद किए दूसरे ट्वीट में परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर हमला बोलते हुए कहा, 'किसी भी देश को भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। उदाहरण के लिए, 'यह मेरा घर है और यह मेरी पसंद है कि किसे मैं अंदर आने की इजाजत देता हूं। आपकी राय अहमियत नहीं रखती, न ही आपकी राय किसी ने मांगी है और न ही आपको इससे कुछ लेना देना है।
हिंदुस्तान में मुस्लिमों को भड़काने के पीछे राजनीतिक वजह है, जिसे हिंदुस्तान में रहे भारतीय मुस्लिमों को समझने की जरूरत है और इसे 1947 मे हुए भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद हिंदुस्तान में रह गए भारतीय मुस्लिमों के जीवन स्तर और उत्तरोत्तर बढ़ती मुस्लिमों की आबादी से अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उन्हें क्यूं बरगलाया जा रहा हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि सीएए ( राष्ट्रपति की मुहर के बाद सीएबी बना सीएए) का विरोध कहां हो रहा हैं। सीएबी के विरोध का केंद्र असम, पश्चिम बंगाल और दिल्ली हैं, जहां 2020, 2021 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जबकि पूरे देश में कहीं और सीएबी को लेकर चर्चा तक नहीं हैं। हालांकि विपक्षी दलों द्वारा विरोध को पैन इंडिया तक ले जाने की कवायद जरूर हो रही हैं।
कुछ ऐसी ही भ्रम एआरसी को लेकर भी विपक्ष दलों द्वारा फैलाया जा रहा है। एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑर सिटीजन ऑफ इंडिया के जरिए भारत सरकार उन लोगों की पहचान करेगी, जो जबरन अथवा बिना जरूरी दस्तावेज के भारत में घुस आए हैं। एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। एनआरसी में जिनके नाम इसमें शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है।
इसके हिसाब से 25 मार्च, 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है। असम पहला राज्य है जहां भारतीय नागरिकों के नाम शामिल करने के लिए 1951 के बाद एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है। एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी की रात जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।
असम में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेट करने को कहा था। पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था। ये रजिस्टर असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है। इस मुद्दे पर असम में कई बड़े और हिंसक आंदोलन हुए हैं।
1947 में बंटवारे के बाद असम के लोगों का पूर्वी पाकिस्तान में आना-जाना जारी रहा। 1979 में असम में घुसपैठियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने आंदोलन किया। इसके बाद 1985 को तब की केंद्र में राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया। इसके तहत 1971 से पहले जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
लोकसभा में अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि देश में रह रहे शरणार्थियों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने घुसपैठियों और शरणार्थियों में अंतर स्पष्ट किया। शाह ने कहा कि जो हिन्दू, बौद्ध, सिख, पारसी, इसाई और जैन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं।
इस हालत में वे भारत आते हैं तो शरणार्थी कहलाएंगे, ऐसे लोगों को नागरिकता संशोधन के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी। जबकि वे लोग जो बांग्लादेश की सीमा से भारत में घुसते हैं, चोरी-छुपे आते हैं वे घुसपैठिए कहे जाएंगे। अमित शाह ने कहा कि ऐसे लोगों को भारत स्वीकार नहीं करेगा।
उल्लेखनीय है भारत में एनआरसी इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि भारत में अवैध रूप से लाखों बांग्लादेशी और पाकिस्तान मुसलमान रह हे हैं, जिनकी पहचान होनी जरूरी हैं। पश्चिम बंगाल और असम में भारी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से रह हैं, जिन्हें राजनीतिक सरंक्षण प्राप्त हैं, क्योंकि वो बांग्लादेश वोट बैंक बने हुए हैं।
अगर पूरे देश में एनआरसी लागू हुए तो म्यानमांर से भगाए गए रोहिंग्या मुसलमानों को भी पकड़ा जा सकेगा, जो देश की विभिन्न हिस्सों में छिप कर रहे हैं। इनमें जम्मू प्रमुख हैं, जहां अभी 2 लाख से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम अवैध रूप से बसाए गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल के 52 विधानसभा क्षेत्रों में 80 लाख, असम में 40 लाख और बिहार के 35 विधानसभा क्षेत्रों में 20 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं।
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी डेढ़ करोड़ बांग्लादेशियों का घुसपैठ की बात स्वीकार की थी। इसके अलावा वैध तरीके से वीजा लेकर आए करीब 15 लाख बांग्लादेशी भी देश में गायब हैं। छह मई 1997 में संसद में दिए बयान में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने भी स्वीकार किया था कि देश में एक करोड़ बांग्लादेशी हैं।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में सिर्फ बांग्लादेश के ही कोई 2 करोड़ घुसपैठिये भारत में रह रहे हैं। ये संख्या समूचे ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या के बराबर है। बांग्लादेशियों के अलावा हिंदु्स्तान में 40 हजार से ज्यादा रोहिंगिया घुसपैठिये हैं।
वर्ष 2000 में किए गए एक अनुमान के अनुसार भारत में अवैध बांग्लादेशियों की तादाद डेढ़ करोड़ थी और प्रति वर्ष करीब 3 लाख बांग्लादेशियों का आना जारी था। आमतौर पर ये माना जाता है कि अगर एक अवैध व्यक्ति पकड़ा जाता है तो चार बच निकलते हैं।