गज़ल
जबसे तेरा आना जाना बंद हुआ ।
मेरी गलियों का इतराना बंद हुआ ।।
तूने जबसे चिहरे पर डाला परदा ।
मेरा तो दिलकश मयख़ाना बंद हुआ ।।
उससे मिलने को आई इक बार नहीं ।
थाने में जबसे दीवाना बंद हुआ ।।
गुलशन में जबसे तुम आये वापस हो।
फूलों का झरना-मुरझाना बंद हुआ ।।
खुशियाँ भी उस दिन से हुई हैं "ग़ैर "ख़फा ।
जिस दिन से वो पाई-आना बंद हुआ ।।
अनुराग मिश्र " ग़ैर "