आज एक मुकम्मल ग़ज़ल
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वो जब मुझसे बिछड़ा होगा ।
दर-दर कितना भटका होगा ।।
गठरी लोग टटोले होंगे ।
जब परदेशी लौटा होगा ।।
आज किसी पथ पर अबला ने ।
फिर से पत्थर तोड़ा होगा ।।
आईने में झांक रहा जो ।
चिहरा जाने किसका होगा?
सूरज सर पे आ जाने दे।
क़द तेरा भी बौना होगा ।।
खेत तिरे भी ये निगलेगा ।
जब रस्ता कल चौड़ा होगा ।।
ताड़ रहे हैं तुझको ताजिर ।
"ग़ैर " तिरा भी सौदा होगा ।।
(ताजिर-व्यापारी)
अनुराग मिश्र ग़ैर