बस्ती।दुबौलिया ब्लॉक क्षेत्र के हनुमान मंदिर विशुनपुरा में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन शुक्रवार कथा वाचक संतोष शरण महराज ने भगवान श्रीकृष्ण व रुक्मिणी के विवाह की कथा सुनाई गई।
कथावाचक ने बताया कि विदर्भ के राजा भीष्मक के घर रुक्मिणी का जन्म हुआ। बाल अवस्था से भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे हृदय से पति के रूप में चाहती थी। लेकिन उसका भाई रूक्मी अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह गोपल राजा शिशुपाल के साथ कराना चाहता था। रुक्मिणी ने अपने भाई की इच्छा जानी तो उसे बड़ा दुख हुआ। अत: शुद्धमति के अंतपुर में एक सुदेव नामक ब्राह्मण आता-जाता था। रुक्मिणी ने उस ब्राह्मण से कहा कि वे श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती हैं। सात श्लोकों में लिखा हुआ मेरा पत्र तुम श्रीकृष्ण तक पहुंचा देना।
कथावाचक ने बताया कि रुक्मिणी ने स्वयं को प्राप्त करने के लिए उपाय भी बताया। पत्र में रुक्मिणी ने बताया कि वह प्रतिदिन पार्वती की पूजा करने के लिए मंदिर जाती हैं, श्रीकृष्ण आकर उन्हें वहां से ले जायें। पत्र के माध्यम से रुक्मिणी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप इस दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं हजारों जन्म लेती रहूंगी। मैं किसी और पुरुष से विवाह नहीं करना चाहती हूं, बेशक सौ जन्म लेने पडे़ं।कथावाचक ने कहा कि पार्वती के पूजन के लिए जब रुक्मिणी आई, उसी समय प्रभु श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गए। अत: रुक्मिणी के पिता ने रीति रिवाज के साथ दोनों का विवाह कर दिया। इंद्र लोक से सभी देवताओं द्वारा पुष्पों की वर्षा की तथा खुशियां लुटाई।