कसमकस
अंदर एक कसमकस है
नौकरी में भी तरस है।
जिम्मेदारियों में दबी ये
जिन्दगी मेरी नीरस है।
दुःख सह लिया ज्यादा
अब फटती नस-नस है।
छटपटाया बहूत मैं तो
पर हालात जस का तस है।
टूट गयी उम्मीद अब तो
ये जिंदगी चार दिवस है।
दास्तां वयां करने में भी
अब कलम ये विवश है।।
-डॉ. राकेश ऋषभ
जिला पूर्ति अधिकारी
जनपद-बलरामपुर